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जानिए दानव गजमुख से गणेश जी का प्रिय वाहन चूहा बनने की कथा, जो दूर करेगी हर व्यथा
गणेश चतुर्थी 2019का त्योहार गणेशजी के धरती पर आगमन का पर्व है , लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस तरह चूहा गणेशजी की सवारी बना। इसके पीछे भी एक कथा हैं जो बताने जा रहे हैं। तो जानते हैं कैसे चूहा, गणेशजी की सवारी बना।
जयपुर:गणेश चतुर्थी 2019का त्योहार गणेशजी के धरती पर आगमन का पर्व है और इसलिए ही भक्तगण गणेश चतुर्थी के दिन गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना करते हैं। लेकिन इसी के साथ उनकी सवारी मूषक को रखना भी शुभ माना गया हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस तरह चूहा गणेशजी की सवारी बना। इसके पीछे भी एक कथा हैं जो बताने जा रहे हैं। तो जानते हैं कैसे चूहा, गणेशजी की सवारी बना।
बहुत समय की बात है, एक बहुत ही भयंकर असुरों का राजा था – गजमुख। वह बहुत ही शक्तिशाली बनना और धन चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए हमेशा भगवान् शिव से वरदान के लिए तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़ कर जंगल में जा कर रहने लगा और शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए, बिना पानी पिए भोजन खाए रात-दिन तपस्या करने लगा।
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कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। शिवजी नें खुश हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान किया जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी ने उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग करने लगा और देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा।मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी ने गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा।
गणेश जी ने गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। उस राक्षक ने स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के मुस में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया। बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र भी बन गया।
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