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गंगा दशहरा: पापों से मुक्ति का दिन, जानिए इसका महत्व व शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता हैं क्योंकि इसी दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस साल यह पर्व 1 जून 2020, सोमवार को पड़ रहा हैं। इस दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व माना जाता हैं जो सभी पाप को हरने वाला होता हैं। स्नान के साथ-साथ इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

suman
Published on: 29 May 2020 1:49 AM GMT
गंगा दशहरा: पापों से मुक्ति का दिन, जानिए इसका महत्व व शुभ मुहूर्त
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जयपुर : ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता हैं क्योंकि इसी दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस साल यह पर्व 1 जून 2020, सोमवार को पड़ रहा हैं। इस दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व माना जाता हैं जो सभी पाप को हरने वाला होता हैं। स्नान के साथ-साथ इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महत्व

मान्यता के अनुसार, गंगा मां की आराधना करने से व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।

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मुहूर्त

दशमी तिथि आरंभ: 31 मई 2020 को शाम 05:36 बजे से

दशमी तिथि समापन: 1 जून 2020 को दोपहर 02:57 बजे तक

मंत्र

"नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:"

अर्थ - हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को को मेरा नमन।

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कहानी

पदमपुराण की कथानुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा-''हे देवी! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो,मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा''। ब्रह्मा जी के कहने पर मूलप्रकृति-गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं 'पराप्रकृति धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डलु में धारण कर लिया। राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ, उस समय अपने कमण्डलु के जल से ब्रह्माजी ने श्री विष्णु के चरण का पूजन किया। पदमपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा-''हे देवी! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो,मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा''। ब्रह्मा जी के कहने पर मूलप्रकृति-गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं 'पराप्रकृति धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डलु में धारण कर लिया। राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ, उस समय अपने कमण्डलु के जल से ब्रह्माजी ने श्री विष्णु के चरण का पूजन किया।

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