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Geeta Ka Updesh: पहले स्थान पर है आर्त भक्त
Geeta Updesh In Hindi: आइए ! यह जानने का प्रयास करते हैं कि भगवान ने आर्त्त भक्त को प्रथम स्थान पर क्यों रखा है ? इसका कारण यह है कि सांसारिक सुखद स्थिति की अपेक्षा विपत्ति के प्रसंग भक्त के हृदय को बहुत उत्कटता के साथ ईश्वर की ओर प्रेरित करते हैं।
Geeta Ka Updesh: भगवान श्री कृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन एक ही श्लोक के अर्द्धाली में इस प्रकार किया है :-
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आर्त्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च
अर्थात् आर्त्त,जिज्ञासु, अर्थार्थी एवं ज्ञानी भक्त।
इसमें आर्त्त को प्रथम स्थान पर रखा गया है। तो आइए ! यह जानने का प्रयास करते हैं कि भगवान ने आर्त्त भक्त को प्रथम स्थान पर क्यों रखा है ?इसका कारण यह है कि सांसारिक सुखद स्थिति की अपेक्षा विपत्ति के प्रसंग भक्त के हृदय को बहुत उत्कटता के साथ ईश्वर की ओर प्रेरित करते हैं।
ईश्वर जिसको तारना चाहते हैं, उसको विशेष कष्ट की अग्नि में तपाकर शुद्ध और निर्मल बना लेते हैं। इस स्थिति को समझने वाले भक्त कभी भी संकट से नहीं डरते, अपितु उसका स्वागत करते हैं।
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श्रीमद्भागवत में माता कुन्ती भगवान श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहती हैं :-
विपद: सन्तु न: शश्वत् तत्र तत्र जगद्गुरो।
भवतो दर्शनं यत् स्यादपुनर्भवदर्शनम्।।
अर्थ :- हे जगद्गुरो ! हम पर सदा सब जगह विपत्ति ही आया करे, जिससे जिनके दर्शन से संसार का आवागमन बंद हो जाता है, ऐसी अपार महिमा वाले प्रभु ! आपका दर्शन हम पा सके।
माता कुन्ती ने यह प्रार्थना अपने सुखमय दिनों में नहीं की थी। पांडवों के वनवास के बाद, कुरुक्षेत्र के युद्ध में उभय पक्ष के सर्वनाश के बाद, पांडव-कुल के एकमात्र आशा रूप उत्तरा के गर्भ तक को अश्वत्थामा के द्वारा हानि पहुंचाने के यत्न के बाद की यह प्रार्थना है।
जीवन भर संकट-के-ऊपर-संकट सहने के बाद इस प्रकार ऐसी विपत्ति की स्वेच्छा पूर्वक प्रार्थना करते हुए ईश्वर की अपार महिमा का गान करने वाले भक्त-ह्रदय में परमात्म-दर्शन की कितनी उत्कट अभिलाषा होगी ? साधारण मनुष्य तो इसकी केवल कल्पना ही कर सकता है !
विपत्ति और संकट भक्तों के लिए ईश्वर की शाश्वत परम गहन महत्व को प्रत्यक्ष प्रदर्शित करने वाले प्रसंग होते हैं। ऐसे प्रसंगों में सच्चे भक्त की ईश्वर में लगी हुई वृत्ति विशेष दृढ़ हो जाती है।
अब हम समझ गए होंगे कि "आर्त्त भक्त" को भगवान ने भक्तों की श्रेणी में प्रथम स्थान पर क्यों रखा है ?
अंतिम स्थान पर ज्ञानी भक्त
भगवान श्रीकृष्ण ने अंतिम स्थान पर ज्ञानी भक्त को रखा है। ज्ञानी भक्त - जो परमात्मा को प्राप्त कर चुके हैं, जिनकी दृष्टि में परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं और इस प्रकार परमात्मा को प्राप्त कर लेने से जिनकी समस्त कामनाएं नि:शेषरूप से समाप्त हो चुकी हैं तथा ऐसी स्थिति में जो सहज भाव से ही परमात्मा का भजन करते हैं, वे ज्ञानी भक्त होते हैं।
ज्ञानी भक्त को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थिति, व्यक्ति, वस्तु आदि सभी भगवत् स्वरूप ही दिखते हैं अर्थात् उसको अनुकूल-प्रतिकूल स्थिति केवल भगवत् - लीला ही दिखती है। अपने आप को सर्वथा भगवान को अर्पित करने पर भक्त में कभी कुछ भी पाने की अभिलाषा नहीं रहती, एवं उस भक्त की सत्ता भगवान से किंचित मात्र भी अलग नहीं रहती अपितु उसकी जगह केवल परमात्म-सत्ता ही रह जाती है।