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गुरुनानक देव की 550वीं जयंती पर जानते हैं उनके जीवन के मूल मंत्र

कार्तिक  मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव की जयंती होती हैं। इस साल गुरुनानक देव की 550वीं जयंती हैं। 12 नवंबर को पूरे देश में हर्षोल्लास से  मनाई जा रही है।

suman
Published on: 7 Nov 2019 6:11 PM GMT
गुरुनानक देव की 550वीं जयंती पर जानते हैं उनके जीवन के मूल मंत्र
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जयपुर: कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव की जयंती होती हैं। इस साल गुरुनानक देव की 550वीं जयंती हैं। 12 नवंबर को आज पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाई जा रही है। गुरुनानक देव सिखों के प्रथम गुरु थें। इनके जन्म ‌दिवस को गुरुनानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। सिखों के गुरु व सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म लाहौर के पास तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। वह स्थान आज उन्हीं के नाम पर अब ननकाना के नाम से जाना जाता है। ननकाना पाकिस्तान में है।

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नानक जी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था और माता का नाम तृप्ती देवी था। 16 वर्ष की उम्र में गुरुनानकजी का विवाह गुरदासपुर जिले के लाखौकी नाम स्‍थान की रहने वाली कन्‍या सुलक्‍खनी से हुआ। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थें।दोनों पुत्रों के जन्म के बाद गुरुनानक देवी जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के स्थानों पर गए।

गुरुनानक जी के विचारों से समाज में परिवर्तन हुआ। नानक जी ने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्‍थान पर एक नगर को बसाया और एक धर्मशाला भी बनवाई। नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 ईस्वी को हुआ। इन्‍होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।

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नानक जी के मूल मंत्र

उस वक्त नानक जी का परिवार कृषि करके आमदनी करते थे। उनके चेहरे पर बाल्यकाल से ही अद्भुत तेज दिखाई देता था। गुरु नानक जी के दिए गए मूल मंत्र आज भी प्रासंगिक हैं। गुरु नानक देव जी के नौ मूल मंत्र जो जनमानस के लिए बहुत ही उपयोगी है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी का आरंभ मूल मंत्र से होता है। ये मूल मंत्र हमें उस परमात्मा की परिभाषा बताता है जिसकी सब अलग-अलग रूप में पूजा करते हैं।

*एक ओंकार अकाल पुरख (परमात्मा) एक है। उसके जैसा कोई और नहीं है। वो सब में रस व्यापक है। हर जगह मौजूद है।

*सतनाम अकाल पुरख का नाम सबसे सच्चा है। ये नाम सदा अटल है, हमेशा रहने वाला है।

*करता पुरख वो सब कुछ बनाने वाला है और वो ही सब कुछ करता है। वो सब कुछ बनाके उसमें रस-बस गया है।

* निरभऊ अकाल पुरख को किससे कोई डर नहीं है।

*निरवैर अकाल पुरख का किसी से कोई बैर (दुश्मनी) नहीं है।

*अकाल मूरतन प्रभु की शक्ल काल रहित है। उन पर समय का प्रभाव नहीं पड़ता। बचपन, जवानी, बुढ़ापा मौत उसको नहीं आती। उसका कोई आकार कोई मूरत नहीं है।

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*अजूनी वो जूनी (योनियों) में नहीं पड़ता। वो ना तो पैदा होता है ना मरता है।

*स्वैभं (स्वयंभू) उसको किसी ने न तो जनम दिया है, न बनाया है वो खुद प्रकाश हुआ है।

* गुरप्रसाद गुरु की कृपा से परमात्मा हृदय में बसता है। गुरु की कृपा से अकाल पुरख की समझ इनसान को होती है।इन्हीं सभी मंत्रों को उन्होंने अपने जीवन में अमल किया और चारों ओर धर्म का प्रचार कर स्वयं एक आदर्श बने।

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