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Hanuman ji birth Story: जानिए, पवन पुत्र हनुमान के जन्म की कहानी

Hanuman Ji Kiske Avtar Hai: एक तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में जबकि दूसरी तिथि को जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली तिथि के अनुसार इस दिन हनुमानजी सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए दौड़े थे, उसी दिन राहु भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया हुआ था।

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Published on: 23 April 2023 4:15 AM IST
Hanuman ji birth Story: जानिए, पवन पुत्र हनुमान के जन्म की कहानी
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Hanuman ji birth Story (Pic: Newstrack)

Hanuman ji birth Story: ज्योतिषियों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 115 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 06:03 बजे हुआ था। वाल्मीकि रचित रामायण (मतान्तर से) के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (छोटी दीपावली) मंगलवार के दिन हनुमान का जन्म हुआ था। हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्‍ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च या अप्रैल के बीच और दूसरी कार्तिक कृष्‍ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को अर्थात सितंबर-अक्टूबर के बीच। इसके अलावा तमिलनाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है। आखिर सही क्या है?

चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में प्रातः 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। मतलब यह कि चैत्र माह में उनका जन्म हुआ था। फिर चतुर्दर्शी क्यों मनाते हैं? वाल्मिकी रचित रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था।

हनुमान जी जन्म को लेकर मतभेद

एक तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में जबकि दूसरी तिथि को जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली तिथि के अनुसार इस दिन हनुमानजी सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए दौड़े थे, उसी दिन राहु भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया हुआ था। लेकिन हनुमानजी को देखकर सूर्यदेव ने उन्हें दूसरा राहु समझ लिया। इस दिन चैत्र माह की पूर्णिमा थी। जबकि कार्तिक कृष्‍ण चतुर्दशी को उनका जन्म हुआ हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार माता सीता ने हनुमानजी की भक्ति और समर्पण को देखकर उनको अमरता का वरदान दिया था। यह दिन नरक चतुर्दशी का दिन था। हालांकि वाल्मिकीजी ने जो लिखा है उसे सही माना जा सकता है।

हनुमान जी की माता अंजनि के पूर्व जन्म की कहानी

कहते हैं कि माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। ‘बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी। एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी। गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा।

तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।

श्री हनुमानजी की बाल्यावस्था

ऋषि के श्राप से त्रेता युग मे अंजना में नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पड़ा। इंद्र जिनके हाथ में पृथ्वी के सृजन की कमान है, स्वर्ग में स्थित इंद्र के दरबार (महल) में हजारों अप्सरा (सेविकाएं) थीं, जिनमें से एक थीं अंजना (अप्सरा पुंजिकस्थला) अंजना की सेवा से प्रसन्न होकर इंद्र ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा, अंजना ने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें। इंद्र ने उनसे कहा कि वह उस श्राप के बारे में बताएं, क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें।

अंजना ने उन्हें अपनी कहानी सुनानी शुरू की, अंजना ने कहा ‘बालपन में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा, मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी, इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी। क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे।

मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊंगी। मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी मांगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा।’ अपनी कहानी सुनाने के बाद अंजना ने कहा कि अगर इंद्र देव उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी। इंद्र देव ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए अंजना को धरती पर जाकर वास करना होगा, जहां वह अपने पति से मिलेंगी। शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।

इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर आईं और केसरी से विवाह

इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर चली आईं, एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अंश को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। और एक शिकारन के तौर पर जीवन यापन करने लगीं। जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा। उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं, अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया। अंजना जोर-जोर से रोने लगीं, जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजना ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं। अंजना ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था। लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।

अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजना का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया।

केसरी एक शक्तिशाली वानर थे। जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह। उन्हे "कुंजर सुदान"(हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।

पंपा सरोवर

अंजना और मतंग ऋषि - पुराणों में कथा है कि केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे। अंजना अपनी इस पीड़ा को लेकर मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा (कई लोग इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं) सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है। वहाँ जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

अंजना को पवन देव का वरदान

मतंग रामायण कालीन एक ऋषि थे, जो शबरी के गुरु थे। अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था। बारह वर्ष तक केवल वायु पर ही जीवित रही, एक बार अंजना ने “शुचिस्नान” करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उस समय पवन देव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर उसे वरदान दिया कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा।

अंजना को भगवान शिव का वरदान

अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ के पास, अपने आराध्य शिव की तपस्या में मग्न थीं। शिव की आराधना कर रही थीं तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, अंजना ने शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।

(कर्नाटक राज्य के दो जिले कोप्पल और बेल्लारी में रामायण काल का प्रसिद्ध किष्किंधा)

‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए। इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और दूसरी तरफ अयोध्या में, इक्ष्वाकु वंशी महाराज अज के पुत्र और अयोध्या के महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए, श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' के साथ यज्ञ कर रहे थे।

यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्नि देव ने प्रकट होकर श्रृंगी को खीर का एक स्वर्ण पात्र (कटोरी) दिया और कहा "ऋषिवर! यह खीर राजा की तीनों रानियों को खिला दो। राजा की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।" जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस खीर की कटोरी में थोड़ा सा खीर अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया। अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया। हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना के पुत्र के रूप मे, चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा की महानिशा में हुआ।

अन्य कथा अनुसार हनुमान अवतार

सामान्यत: लंकादहन के संबंध में यही माना जाता है कि सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे और रावण के पुत्र सहित अनेक राक्षसों का अंत कर दिया। तब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्री हनुमान को ब्रह्मास्त्र छोड़कर काबू किया। रावण ने श्री हनुमान की पूंछ में आग लगाने का दण्ड दिया। तब उसी जलती पूंछ से श्री हनुमान ने लंका में आग लगा रावण का दंभ चूर किया। किंतु पुराणों में लंकादहन के पीछे भी एक ओर रोचक कथा जुड़ी है, जिसके कारण श्री हनुमान ने पूंछ से लंका में आग लगाई।

श्री हनुमान शिव अवतार है। शिव से ही जुड़ा है यह रोचक प्रसंग। एक बार माता पार्वती की इच्छा पर शिव ने कुबेर से सोने का सुंदर महल का निर्माण करवाया। किंतु रावण इस महल की सुंदरता पर मोहित हो गया। वह ब्राह्मण का वेश रखकर शिव के पास गया। उसने महल में प्रवेश के लिए शिव-पार्वती से पूजा कराकर दक्षिणा के रूप में वह महल ही मांग लिया। भक्त को पहचान शिव ने प्रसन्न होकर वह महल दान दे दिया।

दान में महल प्राप्त करने के बाद रावण के मन में विचार आया कि यह महल असल में माता पार्वती के कहने पर बनाया गया। इसलिए उनकी सहमति के बिना यह शुभ नहीं होगा। तब उसने शिवजी से माता पार्वती को भी मांग लिया और भोलेभंडारी शिव ने इसे भी स्वीकार कर लिया। जब रावण उस सोने के महल सहित मां पार्वती को ले जाना लगा। तब अचंभित और दुखी माता पार्वती ने विष्णु को स्मरण किया और उन्होंने आकर माता की रक्षा की।

जब माता पार्वती अप्रसन्न हो गई तो शिव ने अपनी गलती को मानते हुए मां पार्वती को वचन दिया कि त्रेतायुग में मैं वानर रूप हनुमान का अवतार लूंगा उस समय तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में इसी सोने के महल यानी लंका जाऊंगा तो तुम पूंछ के रूप में लंका को आग लगाकर रावण को दण्डित करना।

हनुमान जी की प्रसिद्धि कथा

अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है।

जिसका अर्थ होता है 'अंजना द्वारा उत्पन्न'। माता श्री अंजनी और कपिराज

श्री केसरी हनुमानजी को अतिशय प्रेम करते थे।

श्री हनुमानजी को सुलाकर वो फल-फूल लेने गये थे । इसी समय बाल हनुमान भूख एवं अपनी माता की अनुपस्थिति में भूख के कारण आक्रन्द करने लगे। इसी दौरान उनकी नजर क्षितिज पर पड़ी। सूर्योदय हो रहा था। बाल हनुमान को लगा की यह कोई लाल फल है। (तेज और पराक्रम के लिए कोई अवस्था नहीं होती)।

यहां पर तो श्री हनुमान जी के रुप में माताश्री अंजनी के गर्भ से प्रत्यक्ष शिवशंकर अपने ग्यारहवें रुद्र में लीला कर रहे थे और श्री पवनदेव ने उनके उड़ने की शक्ति भी प्रदान की थी। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उस लाल फल को लेने के लिए हनुमानजी वायुवेग से आकाश में उड़ने लगे। उनको देखकर देव, दानव सभी विस्मयतापूर्वक कहने लगे कि बाल्यावस्था में ऐसा पराक्रम दिखाने वाला यौवनकाल में क्या नहीं करेगा। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था।हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"

राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये। उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें सचेत किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की।

तभी श्री ब्रह्माजी ने श्री हनुमानजी को वरदान दिया कि इस बालक को कभी ब्रह्मशाप नहीं लगेगा, कभी भी उनका एक भी अंग शस्तर नहीं होगा, ब्रह्माजीने अन्य देवताओं से भी कहा कि इस बालक को आप सभी वरदान दें तब देवराज इंन्द्रदेव ने हनुमानजी के गले में कमल की माला पहनाते हुए कहा कि मेरे वज्रप्रहार के कारण इस बालक की हनु (दाढ़ी) टूट गई है । इसीलिए इन कपिश्रेष्ठ का नाम आज से हनुमान रहेगा और मेरा वज्र भी इस बालक को नुकसान न पहुंचा सके ऐसा वज्र से कठोर होगा। श्री सूर्यदेव ने भी कहा कि इस बालक को में अपना तेज प्रदान करता हूं और मैं इसको शस्त्र-समर्थ मर्मज्ञ बनाता हुं ।

हनुमानजी के कुछ नाम एवं उनका अर्थ

हनुमानजी को मारुति, बजरंगबली इत्यादि नामों से भी जानते हैं। मरुत शब्द से ही मारुति शब्द की उत्पत्ति हुई है। महाभारत में हनुमानजी का उल्लेख मारुतात्मज के नाम से किया गया है। हनुमानजी का अन्य एक नाम है, बजरंगबली। बजरंगबली यह शब्द व्रजांगबली के अपभ्रंश से बना है। जिनमें वज्र के समान कठोर अस्त्र का सामना करनेकी शक्ति है, वे व्रजांगबली है। जिस प्रकार लक्ष्मण से लखन, कृष्ण से किशन ऐसे सरल नाम लोगों ने अपभ्रंश कर उपयोगमें लाए, उसी प्रकार व्रजांगबली का अपभ्रंश बजरंगबली हो गया।

हनुमानजी की विशेषताएं

अनेक संतों ने समाज में हनुमानजी की उपासना को प्रचलित किया है। ऐसे हनुमान जी के संदर्भ में समर्थ रामदास स्वामी कहते हैं, ‘हनुमानजी हमारे देवता हैं ।’ हनुमानजी शक्ति, युक्ति एवं भक्ति का प्रतीक हैं। इसलिए समर्थ रामदास वामी ने हनुमानजी की उपासना की प्रथा आरंभ की। महाराष्ट्र में उनके द्वारा स्थापित ग्यारह मारुति प्रसिद्ध हैं। साथ ही संत तुलसीदास ने उत्तर भारत में मारुति के अनेक मंदिर स्थापित किए तथा उनकी उपासना दृढ की। दक्षिण भारत में मध्वाचार्य को मारुति का अवतार माना जाता है। इनके साथ ही अन्य कई संतों ने अपनी विविध रचनाओं द्वारा समाज के समक्ष मारुति का आदर्श रखा है।

1. शक्तिमानता

हनुमानजी सर्वशक्तिमान देवता हैं। जन्म लेते ही हनुमानजी ने सूर्यको निगलनेके लिए उडान भरी। इससे यह स्पष्ट होता है कि, वायुपुत्र अर्थात वायुतत्त्वसे उत्पन्न हनुमानजी, सूर्यपर अर्थात तेजतत्त्वपर विजय प्राप्त करनेमें सक्षम थे। पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश तत्त्वोंमेंसे तेजतत्त्वकी तुलनामें वायुतत्त्व अधिक सूक्ष्म है अर्थात अधिक शक्तिमान है। सर्व देवताओंमें केवल हनुमानजीको ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं। लंकामें लाखों राक्षस थे, तब भी वे हनुमानजीका कुछ नहीं बिगाड पाएं। इससे हम हनुमानजीकी शक्तिका अनुमान लगा सकते हैं।

2. भूतों के स्वामी

हनुमानजी भूतों के स्वामी माने जाते हैं। किसी को भूत बाधा हो, तो उस व्यक्ति को हनुमानजी के मंदिर ले जाते हैं। साथ ही हनुमानजी से संबंधित स्तोत्र जैसे हनुमत्कवच, भीमरूपी स्तोत्र अथवा हनुमानचालीसा का पाठ करनेके लिए कहते हैं ।

3. भक्ति

साधना में जिज्ञासु, मुमुक्षु, साधक, शिष्य एवं भक्त ऐसे उन्नति के चरण होते हैं। इसमें भक्त यह अंतिम चरण है। भक्त अर्थात वह जो भगवानसे विभक्त नहीं है। हनुमानजी भगवान श्रीराम से पूर्णतया एकरूप हैं। जब भी नवविधा भक्ति में से दास्य भक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना होता है, तब हनुमानजी का उदाहरण दिया जाता है। वे अपने प्रभु राम के लिए प्राण अर्पण करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । प्रभु श्रीराम की सेवा की तुलना में उन्हें सब कुछ कौडी के मोल लगता है। हनुमान सेवक एवं सैनिक का एक सुंदर सम्मिश्रण हैं। स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे, अपने-आपको श्रीरामजीका दास कहलवाते थ। उनकी भावना थी कि उनकी शक्ति भी श्रीरामजी की ही शक्ति है। मान अर्थात शक्ति एवं भक्तिका संगम।

4. मनोविज्ञान में निपुण एवं राजनीति में कुशल

अनेक प्रसंगों में सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, वरन् राम भी हनुमानजी से परामर्श करते थे। लंका में प्रथम ही भेंट में हनुमानजी ने सीता के मन में अपने प्रति विश्वास निर्माण किया। इन प्रसंगों से हनुमानजी की बुद्धिमानता एवं मनोविज्ञान में निपुणता स्पष्ट होती है। लंकादहन कर हनुमानजी ने रावण की प्रजा में रावणके सामर्थ्य के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया। इस बातसे उनकी राजनीति-कुशलता स्पष्ट होती है।

5. जितेंद्रिय

सीता को ढूंढने जब हनुमानजी रावण के अंतःपुर में गए, तो उस समय की उनकी मनः स्थिति थी, उनके उच्च चरित्र का सूचक है। इस संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं, ‘सर्व रावण पत्नियों को निःशंक लेटे हुए मैंने देखा; परंतु उन्हें देखने से मेरे मन में विकार उत्पन्न नहीं हुआ।’

वाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड 11.42-43

इंद्रियजीत होने के कारण हनुमानजी रावणपुत्र इंद्रजीत को भी पराजित कर सके। तभी से इंद्रियों पर विजय पाने हेतु हनुमानजी की उपासना बतायी गई।

6. भक्तों की इच्छा पूर्ण करने वाले

हनुमानजी को इच्छा पूर्ण करने वाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत रखने वाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमानजी की मूर्ति की श्रद्धापूर्वक निर्धारित परिक्रमा करते हैं। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्या का विवाह निश्चित न हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानजी की उपासना करने के लिए कहा जाता है। वास्तव में अत्युच्च स्तर के देवताओं में ‘ब्रह्मचारी’ या ‘विवाहित’ जैसा कोई भेद नहीं होता। ऐसा अंतर मानव-निर्मित है। मनोविज्ञान के आधार पर कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि, सुंदर, बलवान पुरुष से विवाह की कामना से कन्याएं हनुमानजी की उपासना करती हैं। परंतु वास्तविक कारण कुछ इस प्रकार है। लगभग 30 प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह भूतबाधा, जादू-टोना इत्यादि अनिष्ट शक्तियों के प्रभावके कारण नहीं हो पाता। हनुमानजी की उपासना करने से ये कष्ट दूर हो जाते हैं एवं उनका विवाह संभव हो जाता है।

7. हनुमान जन्मोत्सव कैसे मनाया जाता है ?

हनुमान जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में विविध स्थानों पर धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रात: 4 बजे से ही भक्तजन स्नान कर हनुमान जी के देवालयों में दर्शन के लिए आने लगते हैं। प्रात: 5 बजे से देवालयों में पूजा विधि आरंभ होती हैं । हनुमानजी की मूर्ति को पंचामृत स्नान करवा कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है। सुबह ६ बजे तक अर्थात हनुमान जन्म के समय तक हनुमान जन्म की कथा, भजन, कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति को हिंडोले में रख हिंडोला गीत गाया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति हाथ में लेकर देवालय की परिक्रमा करते हैं। हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में कुछ जगह यज्ञ का आयोजन भी करते हैं। तत्पश्चात हनुमानजी की आरती उतारी जाती है। आरती के उपरांत कुछ स्थानों पर सौंठ अर्थात सूखे अदरक का चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियल का चूरा मिलाकर उस मिश्रणको या कुछ स्थानों पर छुहारा, बादाम, काजू, सूखा अंगूर एवं मिश्री, इस पंचखाद्य को प्रसाद के रूप में बांटते हैं । कुछ स्थानों पर पोहे तथा चने की भीगी हुई दाल में दही, शक्कर, मिर्ची के टुकडे, निम्ब का अचार मिलाकर गोपाल काला बनाकर प्रसाद के रूप में बाटते है। कुछ जगह महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है।

8. हनुमान जी की अतुलित शक्तियों का राज?

रामभक्त हनुमान रामभक्त हनुमान को हम नाजाने कितने ही नामों से पूजते हैं। कोई उन्हें पवनपुत्र कहता है तो कोई महावीर, कोई अंजनीपुत्र बुलाता है तो कोई कपीश नाम से उनकी अराधना करता है। भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए, जिनमें से सर्वश्रेष्ठ हैं महावीर हनुमान। शिवपुराण के अनुसार त्रेतायुग में दुष्टों का संहार करने के लिए हनुमान ने शिव के वीर्य से जन्म लिया था।

शिवपुराण में हुए उल्लेख के अनुसार समुद्रमंथन के बाद देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत का बंटवारा करने के लिए विष्णु जी ने मोहिनी का आकर्षक रूप धारण किया था। मोहिनी को देखकर कामातुर शिव ने अपनी लीला रचते हुए वीर्यपात किया जिसे सप्तऋषियों ने सही समय का इंतजार करते हुए संग्रहिहित कर लिया था।

शिव का वीर्य जब वक्त आया तब सप्तऋषियों ने शिव के वीर्य को वानराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से उनके गर्भ तक पहुंचाया। शिव के इसी वीर्य से अत्यंत पराक्रमी और तेजस्वी बालक हनुमान का जन्म हुआ था।

बाल्यकाल में हनुमान वाल्मिकी रामायण के अनुसार हनुमान अपने बाल्यकाल में बेहद शरारती थी। एक बार सूर्य को फल समझकर उसे खाने दौड़े तो घबराकर देवराज इन्द्र ने उनपर वार किया। इन्द्र के वार से हनुमान बेहोश हो गए, जिसे देखकर वायु देव अत्याधिक क्रोधित हो उठे। उन्होंने समस्त संसार को वायु विहीन कर दिया। चरों ओर त्राहिमाम मच गया। तब स्वयं ब्रह्मा ने आकर हनुमान को स्पर्श किया और हनुमान जीवित हो उठे। उस समय स भी देवतागण हनुमान के पास आए और उन्हें भिन्न-भिन्न वरदान दिए।

सूर्यदेव का वरदान

सूर्यदेव द्वारा दिए गए वरदान की वजह से ही हनुमान सर्वशक्तिमान बने। सूर्यदेव ने उन्हें अपने तेज का सौवा भाग प्रदान किया और साथ ही यह भी कहा कि जब यह बालक बड़ा हो जाएगा तब स्वयं उन्हीं के द्वारा ही शास्त्रों का ज्ञान भी दिया जाएगा। सूर्य देव ने उन्हें एक अच्छा वक्ता और अद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी भी बनाया। सूर्यदेव ने पवनपुत्र को नौ विद्याओं का ज्ञान भी दिया था।

यमराज का वरदान

यमराज ने हनुमान को यह वरदान दिया था कि वह उनके दंड से मुक्त रहेंगे और साथ ही वह कभी यम के प्रकोप के भागी भी नहीं बनेंगे। कुबेर का वरदान- कुबेर ने हनुमान जी को यह वरदान दिया था कि युद्ध में कुबेर की गदा भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। कुबेर ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों के प्रभाव से हनुमान को मुक्त कर दिया।

भोलेनाथ का वरदान

महावीर का जन्म शिव के ही वीर्य से हुआ था। महादेव ने कपीश को यह वरदान दिया कि किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु नहीं हो सकती।

विश्वकर्मा का वरदान

देवशिल्पी विश्वकर्मा ने हनुमान को ऐसी शक्ति प्रदान की जिसकी वजह से विश्वकर्मा द्वारा निर्मित किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु नहीं हो पाएगी, साथ ही हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्रदान किया।

देवराज इन्द्र का वरदान

इन्द्र देव ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि उनका वज्र भी महावीर को चोट नहीं पहुंचा पाएगा। इन्द्र देव द्वारा ही हनुमान की हनु खंडित हुई थी, इसलिए इन्द्र ने ही उन्हें हनुमान नाम प्रदान किया।

वरुण देव का वरदान

वरुण देव ने हनुमान को दस लाख वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया। वरुण देव ने कहा कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने के बाद भी जल की वजह से उनकी मृत्यु नहीं होगी।

ब्रह्मा का वरदान

हनुमान को अचेत अवस्था से मुक्त करने वाले परमपिता ब्रह्मा ने भी हनुमान को धर्मात्मा,परमज्ञानी होने का वरदान दिया। साथ ही ब्रह्मा जी ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि वह हर प्रकार के ब्रह्मदंडों से मुक्त होंगे और अपनी इच्छानुसार गति और वेश धारण कर पाएंगे।

तपस्या में लीन मुनी

पौराणिक कथाओं के अनुसार सभी देवी-देवताओं ने हनुमान जी को अपनी शक्तियां और वरदान प्रदान किए थे, जिसके परिणामस्वरूप पवनपुत्र बेरोकटोक घूमने लगे थे। उनकी शैतानियों के कारण सभी ऋषि-मुनी परेशान हो गए थे। वे तपस्या में लीन मुनियों को भी तंग किया करते थे।

शक्तियों की याद

जिसकी वजह से एक बार अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि वे अपनी सभी शक्तियां और बल भूल जाएं और इसका आभास उन्हें तभी हो, जब कोई उन्हें याद दिलाए।

समुद्र लांघना

इस घटना के बाद हनुमान बिल्कुल सामान्य जीवन जीने लगे। उन्हें अपनी कोई भी शक्ति स्मरण नहीं थी। भगवान राम से मुलाकात के बाद जब सीता को खोजने के लिए लंका जाना था, तब समुद्र लांघने के समय स्वयं प्रभु राम ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था।

सीता का वरदान

जब सीता की खोज करते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे तब बड़ी मशक्कत करने के बाद आखिरकार उन्हें मां सीता दिखाई दीं। जब हनुमान जी ने सीता मां को अपना परिचय दिया तब सीता मां उनसे अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्हंं अमरता के साथ यह भी वरदान दिया कि वे हर युग में राम के साथ रहकर उनके भक्तों की रक्षा करेंगे।

कलयुग में हनुमान की अराधना

हनुमान चालीसा की पंक्तियां “अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता” का अर्थ है कि मां देवी सीता ने महावीर को ऐसा वरदान प्राप्त हुआ जिसके अनुसार कलयुग में भी वह किसी को भी आठ सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर सकते हैं। आज भी यह माना जाता है कि जहां भी रामायण का गान होता है, हनुमान जी वहां अदृश्य रूप में उपस्थित होते हैं।

भगवान राम का वरदान

रावण की मृत्यु और लंका विजय करने के बाद भगवान राम ने हनुमान को यह वरदान दिया था “जब तक इस संसार में मेरी कथा प्रचलित रहेगी, तब तक आपके शरीर में भी प्राण रहेंगे और आपकी कीर्ति भी अमिट रहेगी

(कंचन सिंह)



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