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शिव को प्रिय है कांवड़, जानिए सावन में होने वाले कांवड़ यात्रा के पीछे का धार्मिक कारण
भगवान शिव शंकर का प्रिय महिना यानी सावन का महीना शुरु हो चुका है। हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्या में लोग कांवड़ लेकर पदयात्रा करते हैं। कांवड़ यात्रा की पंरपरा की शुरुआत किसने और कब की थी। हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्या में लोग भारतभर से कांवड़ में गंगाजल लेकर पदयात्रा
जयपुर: सावन के महिने में वैद्यनाथ धाम में कांवडियों की भीड़ रहती है लोगों यहां कई किलोमीटर की यात्रा करके आते है। भगवान शिव शंकर का प्रिय महिना यानी सावन का महीना शुरु हो चुका है। हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्या में लोग कांवड़ लेकर पदयात्रा करते हैं। कांवड़ यात्रा की पंरपरा की शुरुआत किसने और कब की थी। हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्या में लोग भारतभर से कांवड़ में गंगाजल लेकर पदयात्रा करके भगवान भोलेनाथ के मंदिर जा कर उन पर जल चढ़ाते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोलते हैं और इन लोगों को कांवड़िया कहां जाता है।
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हर कांवड़िया केसरी रंग का वस्त्र पहने गौमुख, इलाहाबाद, हरिद्वार और गंगोत्री जैसे पवित्र तीर्थस्थलों से गंगाजल भर कर लाते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ में भरे जल को जमीन पर रखने की मनाही होती है। देशभर में प्रचलित इस कांवड़ यात्रा की पंरपरा बहुत पुरानी है। जातने हैं कि इस पवित्र यात्रा की शुरुआत किसने और कहां से शुरू की थी। पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने शिव जी की पूजा के लिए भोलेनाथ के मंदिर की स्थापना की ।जिसके लिए उन्होंने कांवड़ में गंगा जल भरा और जल से शिव जी का अभिषेक किया था। इसी दिन से कांवड़ यात्रा की पंरपरा की शुरुआत हो गई।
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परशुराम की कहानी के अलावा एक अन्य कहानी के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ तब उसमें से निकले विष को शिव जी ने पी लिया था। मां पार्वती जी को यह पता था कि यह विष बेहद खतरनाक है इसलिए उन्होंने शिव जी के गले में ही इसे रोक दिया।फिर इस विष को कम करने के लिए गंगा जी को बुलाया गया था तभी से सावन के महीने में शिव जी को गंगा जल चढ़ाने की पंरपरा बन गई।