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जरूरी होता है ये सातवां संस्कार, जानें इस रिवाज से बच्चे का भविष्य
हिंदूधर्म में मनुष्य के लिए 16 संस्कारों का विधान है। इन सभी संस्कारों का अपना अलग-अलग महत्व है। संस्कारों की श्रेणी में सातवां संस्कार अन्नप्राशन होता है।इस संस्कार में शिशु को पहली बार ठोस अन्न खिलाया जाता हैं। शिशु को जन्म से 6 महीने तक मां का दूध दिया जाता है,
लखनऊ: हिंदूधर्म में मनुष्य के लिए 16 संस्कारों का विधान है। इन सभी संस्कारों का अपना अलग-अलग महत्व है। संस्कारों की श्रेणी में सातवां संस्कार अन्नप्राशन होता है।इस संस्कार में शिशु को पहली बार ठोस अन्न खिलाया जाता हैं। शिशु को जन्म से 6 महीने तक मां का दूध दिया जाता है, लेकिन इसके बाद बच्चे को हल्का आहार दिया जाता है। अगर बच्चे को पहला आहार शुभ मुहूर्त में दिया जाए तो उसे कई तरह के रोगों से बचाया जा सकता है। ज्योतिष के मुताबिक बच्चों का अन्नप्राशन जन्म से 1 वर्ष के भीतर संपन्न किया जाता है।
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क्या है अन्नप्राशन
‘अन्नप्राशन’ संस्कृत का एक शब्द है जिसका अर्थ है ‘अनाज का सेवन करने की शुरुआत’। हिन्दू धर्म में कई संस्कारों में से यह भी एक संस्कार है जिसमें माता-पिता पूरी विधि, पूजा संस्कार के साथ अपने बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत करते हैं। यह संस्कार बच्चे को पहली बार चावल खिलाकर किया जाता है। अक्सर माता-पिता अपने बच्चे के लिए इस संस्कार को पूरे परिवार के साथ करते हैं जिसे उसका का एक महत्वपूर्ण विकास भी माना जाता है। यह वह समय होता है जब बच्चा, माँ के दूध के साथ-साथ ठोस खाद्य पदार्थ का सेवन करना भी शुरू कर देता है।
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प्रतीकात्मक
रिवाज
अन्नप्राशन एक का एक रिवाज है देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे पश्चिम बंगाल में इसे मुखेभात, केरल में चोरूणु, गढ़वाल में भातखुलाई और इत्यादि। इस अनुष्ठान के बाद बच्चे को स्तनपान कराना धीरे-धीरे छुड़ाया जाता है और उसे ज्यादातर ठोस आहार ही दिया जाता है।
किस मुहूर्त में करें अन्नप्राशन
संस्कार व रिवाजों के अनुसार, यह विधि बच्चे की 5 से 9 माह की आयु के बीच की जाती है। परंपरा के हिसाब से, यह संस्कार चार महीने से कम या एक वर्ष से ऊपर के बच्चे का नहीं किया जाता है। कई जगहों पर अन्नप्राशन संस्कार को पूरी महत्वता दी जाती है। धर्मग्रंथों के अनुसार पुत्र और पुत्री के अन्नप्राशन का समय अलग-अलग होता है। सम महीने में (6,8,10,12) में पुत्र और विषम महीने (5,7,9,11) में पुत्री को अन्न देना उत्तम माना जाता हैं। इस संस्कार को शुक्ल पक्ष में ही करना चाहिए। मंगल और शनिवार का दिन इस कार्य के लिये वर्जित है। द्वादशी, सप्तमी और अष्टमी को छोड़कर सभी तिथियां उत्तम मानी गई है।
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कौन सा नक्षत्र, राशि और लग्न है उत्तम
नक्षत्र मृदु, लघु, चर, स्थिर संज्ञक होने चाहिए। तीनों पूर्वा, अश्लेषा, आर्द्रा, शतमिषा नक्षत्र वर्जित है। मतान्तर से अनुराधा, शतमिषा, स्वाती और जन्म-नक्षत्र को शुभ नहीं माना गया है।मीन, मेष, वृश्चिक लग्न, जन्म लग्न, राशि से अष्टम लग्न और नवांश को छोड़कर शेष सभी लग्न (वृष, कन्या, मिथुन ) श्रेष्ठ माना गया हैं। इस संस्कार में दशम में कोई ग्रह लग्न कुण्डली में न हो और न ही उस पर कोई कुदृष्टि हो। सूर्य होने पर मृगी, मंगल होने पर दुबलापन तथा शनि होने पर पक्षाघात की संभावना रहती है। ऊपर बताए गए मुहूर्त में भगवान की पूजा करने के बाद माता-पिता और दादा-दादी को सोने या चांदी के चम्मच से नीचे दिए मंत्र उच्चारण के साथ शिशु को कोई भी मीठी वस्तु खिलानी चाहिए।
ह्यह्यशिवो ते स्तां ब्रीहियवावबलासावदोमधौ।
एतौ यक्ष्मं वि वाधेते, एतौ मुच्चतो अहंस:।। (अथवर्वेद 8/2/18)
अन्नपूर्णा मन्त्र:-
ॐ क्रीं क्रुं क्रों हूं हूं ह्रीं ह्रीं ॐॐॐॐ अन्नपूर्णायै नम:
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प्रतीकात्मक
जानते है इस प्रक्रिया से बच्चे का भविष्य
अन्नप्राशन घर सभी सदस्य बच्चे को अन्न खिलाकर इस विधि पूर्ण करते है। इस प्रक्रिया के अंतिम में बच्चे के सामने कुछ सामग्री रखी जाती है जैसे मिट्टी, सोने के आभूषण, कलम, किताबें, भोजन व इत्यादि। अब इन चीजों में से बच्चे को किसी एक चीज का चुनाव करना होता है। रिवाज के अनुसार बच्चे का चयन ही उसके भविष्य का प्रतीक माना जाता है।
*बच्चा यदि सोने के आभूषण चुनता है तो माना जाता है कि वह भविष्य में धनवान बनेगा।
*यदि बच्चा कलम का चयन करता है तो इसका मतलब है कि वह बुद्धिमान होगा।
*बच्चे के पुस्तक चुनने पर माना जाता है कि वह ज्ञानी होगा।
*यदि वह मिट्टी चुनता है तो इसका मतलब है कि वह जायदाद के मामले में भाग्यशाली है।
*यदि बच्चे ने भोजन को चुना है तो मान्यता है कि वह सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति व दानवीर होगा।