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पाप और पुण्य, यहां खुल जाता है इसका खाता, होता है हिसाब

चाहे धर्म कोई भी हो, उसमें पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रहता है। जैसे देव-कार्य और दानव-कार्य होता है, जैसे सुख-दुख का अनुभव होता है, उसी प्रकार पाप और पुण्य भी मन के भाव हैं। मतलब ये कि जो काम खुलेआम किया जाए, वह पुण्य है और जो काम छिपकर किया जाए, वह पाप है।

suman
Published on: 2 May 2020 2:56 AM GMT
पाप और पुण्य, यहां खुल जाता है इसका खाता, होता है हिसाब
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लखनऊ: रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आएगा। हंस चुभेगा दाना तिनका ,कौवा मोती खायेगा। यानि जो अच्छे लोग हैं ,उनको दाना नसीब होगी ,और जो कौवे जैसे लोग हैं ,वह मोती खाएंगे ,यानि धन -दौलत उनके पास होगी ,कौवे की तरह काले कमाई की।

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चाहे धर्म कोई भी हो, उसमें पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रहता है। जैसे देव-कार्य और दानव-कार्य होता है, जैसे सुख-दुख का अनुभव होता है, उसी प्रकार पाप और पुण्य भी मन के भाव हैं। मतलब ये कि जो काम खुलेआम किया जाए, वह पुण्य है और जो काम छिपकर किया जाए, वह पाप है।

प्राचीन इतिहास, धर्मग्रंथ नहीं

विद्वान लोग कहते हैं कि जीवन को धर्मग्रंथ अनुसार ढालना चाहिए। इन्हें जानकर धर्मग्रंथों वेदों का संक्षिप्त है उपनिषद और उपनिषद का संक्षिप्त है गीता। स्मृतियां उक्त तीनों की व्यवस्था और ज्ञान संबंधी बातों को स्पष्ट तौर से समझाती है। पुराण, रामायण और महाभारत हिंदुओं का प्राचीन इतिहास है धर्मग्रंथ नहीं।

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥-मनु स्मृति 6/92

इन धर्म ग्रंथों के अनुसार पाप और पुण्य कुछ ऐसे है जिन्हें जानना हर मनुष्य का कर्तव्य हैं।

*मन से पाप जो लोग पाप करते हैं ,तो वह सबसे बड़ी पाप मानी जाती है। लोग जो मन से दूसरों को बद्दुआ देते हैं या जो व्यक्ति इस तरह का भाव अपने अंदर रखता है ,वह दुनिया का सबसे बड़ा पापी है।

*वचन से पाप इसका अर्थ है ,किसी को अपने बोली से दुःख देना। जैसे किसी को गाली दे दिया ,झूठ बोल दिया ,मज़ाक उड़ाना ,बेइज्जत करना इत्यादि। तो वो भी पापी की श्रेणी में आते हैं

*कर्म से पाप ऐसे काम करना जिससे लोगों को हानि होती हो ,दुःख पहुंचता हो। जैसे किसी की हत्या कर देना ,चोरी करना ,लूटमार करना ,बलात्कार करना इत्यादि। तो वो भी महापापी होते हैं।

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क्या है पुण्य

ऐसा काम जिससे लोगों को सुख मिलता हो और खुद की आत्मा प्रसन्न होती है, वह काम पुण्य कहलाता है।

*मन से पुण्य मतलब मन से सभी के प्रति दुआ ही निकले। जैसे -सबका कल्याण हो ,दुश्मन को भी दुआ देना ,इत्यादि। वो लोग धार्मिक होते हैं सब का अच्छा सोचते हैं।

*वचन से पुण्य सबके प्रति एक जैसी बोली बोलना। ना बोली में कठोरता हो और ना तेज़। कम बोलना ,धीरे बोलना ,मीठा बोलना यह पुण्य कर्म करने वालों की निशानी है। क्योंकि बोली दुनिया का सबसे बड़ा हथियार है आप इस हथियार से किसी को भी जीत सकते हैं।

*कर्म से पुण्य ऐसा व्यक्ति हमेशा सच्चा ही बोलेगा ,और ईमानदारी से अपना काम करेगा। उसके लिए पैसा नहीं ईमान बड़ा होगा। वह जो भी कार्य करेगा ,उससे लोगों की भलाई जरूर होगी।

पाप - पुण्य में अंतर

पाप पश्चिम है तो पुण्य पूरब ,पाप आकाश है तो पुण्य पृथ्वी।मतलब ये कि पाप और पुण्य में बड़ा अंतर है ,पुण्य लोगों को अच्छा बनाती है , पुण्य दुनिया को खराब बनाती है।

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कलयुग में आज के समय में 90 % लोग पाप कर रहे हैं। सभी लोग भ्रष्ट हो गए हैं। चाहे पुलिस हो या जज हो ,सब पैसे के आगे सर झुकाये हुए हैं। जिधर देखो उधर बुराई की परछाई दिखाई देती है। पाप और पुण्य यह आधार है कुछ लोग जीने के लिए पाप पसंद करता है तो कोई पुण्य , कोई पाप का साथ देता है तो कोई पुण्य का।

ऐसे तो पाप के कई प्रकार है। और इसकी सजा भी भयावह है। इन सभी पापों में सबसे खराब पाप जीव हत्या है।जिसके लिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है -जीव हत्या महापाप है। और इस पाप की सजा भी सबसे खतरनाक है

कोई तिथि नहीं

लेकिन वह उस पाप का फल कब भोगता है इसकी कोई तिथि नहीं है, जब भी वह पाप का फल भोगेगा तब उसे एहसास हो जायेगा , कि आज दुख, वह उसके पुराने पापों का परिणाम है। ऐसा लोग मानते हैं कि पाप की सजा भगवन देते है लेकिन भगवान कहते हैं स्वयं मनुष्य की प्रकृति बनाते हैं और जो जैसा कर्म करेगा उसको वैसा ही फल मिलता है। जैसे ये प्रकृति स्वयं चलती है , आप जैसा प्रकृति को करेंगे तो प्रकृति भी आपको वैसा ही देगी। उसी तरह पाप और पुण्य भी है ,आप जैसा करेंगे उसके अनुसार ही आपके पाप और पुण्य बनेंगे।

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