कौन हैं भगवान अयप्पा, क्या है सबरीमाला मंदिर का इतिहास और मान्यताएं?

भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है विश्वा प्रसिद्ध सबरीमाला का मंदिर। यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। इसमें सऊदी अरब के मक्का के बाद सबसे ज्यादा शृद्धालु आते हैं।

Aditya Mishra
Published on: 14 Nov 2019 8:29 AM GMT
कौन हैं भगवान अयप्पा, क्या है सबरीमाला मंदिर का इतिहास और मान्यताएं?
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लखनऊ: भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है विश्वा प्रसिद्ध सबरीमाला का मंदिर। यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। इसमें सऊदी अरब के मक्का के बाद सबसे ज्यादा शृद्धालु आते हैं। पिछले साल इस मंदिर में 3.5 करोड़ लोग दर्शन के लिए आए थे। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 2016-17 के उत्सव के दौरान मंदिर में 243.69 करोड़ रुपये का दान आया था।

कौन थे अयप्पा?

1.भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है।

इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया। इस दौरान राजा राजशेखरा ने उन्हें 12 सालों तक पाला। बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया।

2.अय्यप्पा के बारे में किंवदंति है कि उनके माता-पिता ने उनकी गर्दन के चारों ओर एक घंटी बांधकर उन्हें छोड़ दिया था। पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में पाला। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और उन्हें वैराग्य प्राप्त हुआ तो वे महल छोड़कर चले गए। कुछ पुराणों में अयप्पा स्वामी को शास्ता का अवतार माना जाता है।

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सबरीमाला की मान्यताएं

इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं। बताया जाता है कि जब-जब ये रोशनी दिखती है इसके साथ शोर भी सुनाई देता है। भक्त मानते हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे खुद जलाते हैं। इसे मकर ज्योति का नाम दिया गया है।

इस मंदिर में महिलाओं का आना वर्जित है। इसके पीछे मान्यगता ये है कि यहां जिस भगवान की पूजा होती है (श्री अयप्पाग), वे ब्रह्माचारी थे इसलिए यहां 10 से 50 साल तक की लड़कियां और महिलाएं नहीं प्रवेश कर सकतीं। इस मंदिर में ऐसी छोटी बच्चिोयां आ सकती हैं, जिनको मासिक धर्म शुरू ना हुआ हो। या ऐसी या बूढ़ी औरतें, जो मासिकधर्म से मुक्तश हो चुकी हों।

यहां जिन श्री अयप्पात की पूजा होती है उन्हेंर 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है। यानी विष्णु और शिव के पुत्र. यहां दर्शन करने वाले भक्तोंं को दो महीने पहले से ही मांस-मछली का सेवन त्यादगना होता है. मान्यता है कि अगर भक्तस तुलसी या फिर रुद्राक्ष की माला पहनकर और व्रत रखकर यहां पहुंचकर दर्शन करे तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है।

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