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Hiranyakashyap Vadh: जानें हिरण्यकश्यप को मारने के लिए कितना जुगत करना पड़ा

Hiranyakashyap Vadh Story: हिरण्य कश्यप को कोई मार नहीं सकता था, क्योंकि उसने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि ‘आपके बनाए किसी प्राणी, मनुष्‍य, पशु, देवता, दैत्‍य, नागादि किसी से मेरी मृत्‍यु न हो।

Kanchan Singh
Published on: 9 Aug 2023 2:24 AM GMT
Hiranyakashyap Vadh: जानें हिरण्यकश्यप को मारने के लिए कितना जुगत करना पड़ा
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Hiranyakashyap Vadh (Photo- Social Media)

Hiranyakashyap Vadh: हिरण्य कश्यप को कोई मार नहीं सकता था, क्योंकि उसने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि ‘आपके बनाए किसी प्राणी, मनुष्‍य, पशु, देवता, दैत्‍य, नागादि किसी से मेरी मृत्‍यु न हो। मैं समस्‍त प्राणियों पर राज्‍य करूं। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न बाहर। यह भी कि कोई न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार मार सके। न भूमि पर न आकाश में, न पाताल में न स्वर्ग में।'

इस घटना के बाद हिरण्‍यकश्यप ने प्रहलाद को एक खंभे से बांध दिया। फिर भरी सभा में प्रहलाद से पूछा, ‘किसके बलबूते पर तू मेरी आज्ञा के विरुद्ध कार्य करता है?’ प्रहलाद ने कहा, ‘आप अपना असुर स्वभाव छोड़ दें। सबके प्रति समता का भाव लाना ही भगवान की पूजा है।'

हिरण्‍यकश्यप ने क्रोध में कहा, ‘तू मेरे सिवा किसी और को जगत का स्‍वामी बताता है। कहां है वह तेरा जगदीश्‍वर? क्‍या इस खंभे में है जिससे तू बंधा है?’

यह कहकर हिरण्यकश्यप ने खंभे में घूंसा मारा। तभी खंभा भयंकर आवाज करते हुए फट । उसमें से एक भयंकर डरावना रूप प्रकट हुआ जिसका सिर सिंह का और धड़ मनुष्‍य का था।

‘नृसिंह अवतार'

पीली आंखें, बड़े-बड़े नाखून, विकराल चेहरा और तलवार-सी लपलपाती जीभ। यही ‘नृसिंह अवतार’ थे। उन्होंने तेजी से हिरण्‍यकश्यप को पकड़ लिया और संध्या की वेला में (न दिन में, न रात में), सभा की देहली पर (न बाहर, न भीतर), अपनी जांघों पर रखकर (न भूमि पर, न आकाश में), अपने नखों से (न अस्‍त्र से, न शास्‍त्र से) उसका कलेजा फाड़ डाला। हजारों सैनिक जो प्रहार करने आए,उन्‍हें भगवान नृसिंह ने हजारों भुजाओं और नखरूपी शस्‍त्रों से खदेड़कर मार डाला।

फिर क्रोध से भरे नृसिंह भगवान सिंहासन पर जा बैठे।तब प्रहलाद ने दंडवत होकर उनकी प्रार्थना-पूजा की।प्रहलाद का राजतिलक करने के बाद नृसिंह भगवान चले गए।

Kanchan Singh

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