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Maa Durga Ka Rahasya: इक्यावन शक्तिपीठों में प्रमुख देवी विंध्यवासिनी माता कौन थीं, जानिए छह रहस्य...

Maa Durga Ka Rahasya in Hindi: योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था। इनके जन्म के समय यशोदा गहरी निद्रा में थीं। उन्होंने इस बालिका को देखा नहीं था। जब आंख खुली तो उन्होंने अपने पास पुत्र को पाया जो कि कृष्ण थे।

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 30 March 2023 12:38 PM GMT
Maa Durga Ka Rahasya: इक्यावन शक्तिपीठों में प्रमुख देवी विंध्यवासिनी माता कौन थीं, जानिए छह रहस्य...
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Chaitra Navratri 2023 (Image credit : social media)

Maa Durga Ka Rahasya: भारत में मां विंध्यवासिनी की पूजा और साधना का प्रचलन है। देवी विंध्यवासिनी माता कौन थीं? कहां है उनका मुख्य शक्तिपीठ और क्या है उनका रहस्य जानिए महत्वपूर्ण 6 रहस्य।

1. भगवान श्री कृष्ण की माता का नाम देवकी था। जब मथुरा के कारागार में देवकी के गर्भ से अष्टम पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो उसी दौरान गोकुल में यशोदा मैया के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ। वसुदेवजी बालकृष्ण को लेकर कारागार से निकलकर यमुना पार कर गोकुल पहुंचे और उन्होंने उसी रात को बालकृष्ण को यशोदा मैया के पास सुला दिया और वे उनकी पुत्री को उठाकर ले आए। यह कार्य भगवान की माया से हुआ। गर्गपुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की मां देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ। बाद में योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था।

2. भगवान विष्णु की आज्ञा से माता योगमाया ने ही यशोदा मैया के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था। इसका बाद में नाम एकानंशा रखा गया था। कंस से बालकृष्ण को बचाने के लिए ही योगमाया ने जन्म लिया था। श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्रीकृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी को पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुंचा दिया था तथा वहां यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। कहते हैं कि योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था। इनके जन्म के समय यशोदा गहरी निद्रा में थीं। उन्होंने इस बालिका को देखा नहीं था। जब आंख खुली तो उन्होंने अपने पास पुत्र को पाया जो कि कृष्ण थे।

3. बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि पुत्र की जगह कन्या का जन्म कैसे हुआ? आकाशवाणी में तो देवकी के आठवें पुत्र द्वारा मेरे वध की बात कही गई थी । फिर यह पुत्री कैसे हो गई? कंस ने सोचा यह विष्णु का छल हो सकता है इसलिए उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य योगमाया स्वरूप प्रदर्शित कर कंस से कहा रे मूर्ख तेरा वध करने के लिए देवकी की आठवीं संतान तो कभी की जन्म ले चुकी है। मुझे मारने से क्या होगा।

4. बाद में देवताओं ने योगमाया से कहा कि हे देवी आपका इस धरती पर कार्य पूर्ण हो चुका है तो अत: अब आप देवलोक चलकर हमें कृतघ्न करें। तब देवी ने कहा कि नहीं अब मैं धरती पर ही भिन्न भिन्न रूप में रहूंगी। जो भक्त मेरा जैसा ध्यान करेगा मैं उसे उस रूप में दर्शन दूंगीं। अत: मेरी पहले स्थान की आप विंध्यांचल में स्थापना करें। तब देवताओं ने देवी का विंध्याचल में एक शक्तिपीठ बनाकर उनकी स्तुति की और देवी वहीं विराजमान हो गई। श्रीमद्भागवत पुरा में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है जबकि शिवपुराण में उन्हें सती का अंश बताया गया है।

शिव पुराण अनुसार मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है। सती होने के कारण उन्हें वनदुर्गा कहा जाता है। कहते हैं कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं। लेकिन विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।

मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। यहां लोग सिद्धि प्राप्त करने के लिए साधना करने आते हैं । जहां संकल्प मात्र से साधकों को सिद्धि प्राप्त होती है। मार्कण्डेय पुराण श्री दुर्गा सप्तशती की कथा अनुसार ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी भगवती की मातृभाव से साधना और उपासना करते हैं, तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं।

5. श्रीमद्भागवत में उन्हें ही नंदजा देवी कहा गया है । इसीलिए उनका अन्य नाम कृष्णानुजा है। इसका अर्थ यह की वे भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं। इस बहन ने श्रीकृष्ण की जीवनभर रक्षा की थी। इन्हीं योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर और मुष्टिक आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया, जो कंस के प्रमुख मल्ल माने जाते थे।

6. भारत में विंध्यवासिनी देवी का चमत्कारिक मंदिर विंध्याचल की पहाड़ी श्रृंखला के मध्य (मिर्जापुर, उत्तर) पतित पावनी गंगा के कंठ पर बसा हुआ है। प्रयाग एवं काशी के मध्य विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां मां विंध्यवासिनी निवास करती हैं।

यह तीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है । जो गंगा तट पर स्थित हैं। यहां तीन किलोमीटर के दायरे में अन्य दो प्रमुख देवियां भी विराजमान हैं। निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं। हालांकि कुछ विद्वान इसे 51 शक्तिपीठों में शामिल नहीं करते हैं । लेकिन 108 शक्तिपीठों में जरूर इनका नाम मिलता है।

Suman Mishra। Astrologer

Suman Mishra। Astrologer

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