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मकर संक्रांति अब 14 की जगह हर साल 15 को क्यों हो रही है, जानिए इसकी वजह

मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन इस साल देशभर में 15 जनवरी को मनाया जायेगा। 15 जनवरी इसलिए क्योंकि देर रात 2.07 मिनट को सूर्य मकर राशि में आगमन करने वाला है। इसलिए शास्त्र नियम के अनुसार मध्यरात्रि में संक्रांति होने के वजह से पुण्य काल अगले दिन पर होता हैं।

suman
Published on: 14 Jan 2020 11:17 PM IST
मकर संक्रांति अब 14 की जगह हर साल 15 को क्यों हो रही है, जानिए इसकी वजह
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लखनऊ: मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन इस साल देशभर में 15 जनवरी को मनाया जायेगा। 15 जनवरी इसलिए क्योंकि देर रात 2.07 मिनट को सूर्य मकर राशि में आगमन करने वाला है। इसलिए शास्त्र नियम के अनुसार मध्यरात्रि में संक्रांति होने के वजह से पुण्य काल अगले दिन पर होता हैं। इस दिन सुबह उठकर सूर्य देवता को जल, तिल और लाल चन्दन अर्पणा करना अच्छा होता है। मकर संक्रांति के पर्व को सूर्य के राशि परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इसलिए मकर संक्रांति को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहा जाता है।

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मकर संक्रांति के पर्व में खासकर तिल का भी बहुत अधिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति से ही दिन भी एक तिल के समान बढ़ाने लगता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माघ मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो यह पर्व मकर संक्रांति के नाम से अभिहित किया जाता है। मकर संक्रांति के पर्व को जिस प्रकार भारत के विभिन्न भागों में अन्य नामों से जाना जाता है। ठीक उसी प्रकार इस पर्व के अवसर पर तिल का भी महत्व है। मकर संक्रांति के दिन तिल का खास महत्त्व माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के अवसर पर तिल का सेवन करना ही चाहिए। इस दिन पर तिल का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी खास महत्व है।

क्यों 14 जनवरी को ही संक्रांत

साल 2008 से 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को होगी।विगत 72 सालों से 1935 तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को पड़ती रही है। 2081 से अगले 72 सालों(2153) तक मकर संक्रांति 16 जनवरी को होगी। जब सूर्य धनु से मकर में जाते है तो उस दिन को मकर संक्रांति के रुप में मनाते है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन हो जाते है।

सूर्य का धनु से मकर में जाना हर साल 20 मिनट देर से होता है। गणना के अनुसार 3 सालों में यह अंतर 1 घंटे का होता है। 72 सालों में 24 घंटों का होता है। यही कारण है कि अंग्रेजी तारीखों के अनुसार मकर संक्रांति 72 साल में एक दिन बढ़ जाता है। इसलिए 14 को ही मकर संक्रांति होती है यह अवधारणा भ्रामक है।

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मकर संक्रांति के दिन तिल का दान करने अशुभ ग्रह कट जाते हैं। शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन तिल का दान करने से शनि के कुप्रभाव कम होते हैं। इस दिन तिल के सेवन से पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मकर संक्रांति के दिन तिल मिश्रित जल के स्नान करने से विभिन्न रोगों का नाश होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसी मान्यता है कि माघ मास में तिल और जल मिलकर भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के समस्त कष्टों का नाश हो जाता है। साथ ही राहु और शनि के दोष का भी नाश होता है। इसके अलावे भी तिल का अत्यधिक महत्व है।



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