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'चट मंगनी पट ब्याह' के लिए खास है फुलैरा दूज, जानिए कब और क्यों मनाते हैं ये पर्व

फुलैरा दूज 25 मंगलवार को मनाई जाएगी। हर साल ये त्यौहार फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। फुलैरा दूज को फाल्गुन मास में सबसे शुभ और धार्मिक दिन माना जाता है। पूरे फुलैरा दूज के समय को काफी मांगलिक माना जाता है।

suman
Published on: 24 Feb 2020 7:38 AM GMT
चट मंगनी पट ब्याह के लिए खास है फुलैरा दूज, जानिए कब और क्यों मनाते हैं ये पर्व
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लखनऊ: फुलैरा दूज 25 मंगलवार को मनाई जाएगी। हर साल ये त्यौहार फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। फुलैरा दूज को फाल्गुन मास में सबसे शुभ और धार्मिक दिन माना जाता है। पूरे फुलैरा दूज के समय को काफी मांगलिक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण पवित्र होली के त्यौहार में भाग लेते हैं और रंगों की जगह रंगबिरंगे फूलों से होली खेलते हैं। यह त्यौहार लोगों के जीवन में ख़ुशी और उम्र लेकर आता है।

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ऐसे मनाते हैं...

हिंदू धर्म में अमूमन लोग शादी विवाह से पहले शुभ मुहूर्त विचारना अनिवार्य मानते हैं। बिना किसी मुहूर्त के शादी करना शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फुलैरा दूज एक ऐसा समय है जब हर समय ही शुभ और हर घड़ी मंगल होती है। इस पवित्र समय में आप कभी भी विवाह करें तो शुभ ही होगा। इस दिन किसी भी तरह के हानिकारक प्रभावों और दोषों से प्रभावित नहीं होता है और इसे अबूझ मुहूर्त माना जाता है। सर्दी के मौसम के बाद इसे शादियों के सीजन का अंतिम दिन माना जाता है।

इसलिए इस दिन रिकॉर्ड तोड़ शादियां होती हैं। इसका अर्थ है कि विवाह, संपत्ति की खरीद इत्यादि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने के लिए दिन अत्यधिक पवित्र है। शुभ मुहूर्त पर विचार करने या किसी विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंडित की आवश्यकता नहीं है। उत्तर भारत के राज्यों में, ज्यादातर शादी समारोह फुलेरा दूज की पूर्व संध्या पर होते हैं। लोग आमतौर पर इस दिन को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सबसे समृद्ध पाते हैं।फुलैरा दूज के दिन लोग अपने पूजाघर में भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद उन्हें होली पर खेला जाने वाला गुलाल अर्पित किया जाता है। इस दिन लोग राधा और कृष्ण की मूर्ति को फूलों से सजाते हैं और कई घरों में फूलों से मनमोहक रंगोली भी बनाई जाती है।

इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में संध्या के समय घरों में रंगोली सजाई जाती है। इसे घर में होली रखना कहा जाता है। होली आने वाली है इसलिए खुशियां मनाई जाती हैं। दूज के दिन किसान घरों के बच्चे अपने खेतों में उगी सरसों, मटर, चना और फुलवारियों के फूल तोड़कर लाते हैं। इन फूलों को भी घर में बनाई गई होली यानी रंगोली पर सजाया जाता है। यह आयोजन उत्तर भारत के कई राज्यों के कई इलाकों में फुलैरा दूज से होली के ठीक एक दिन पहले तक लगातार होता रहता है। होली वाले दिन रंगोली बनाए जाने वाले स्थान पर ही गोबर से बनाई गई छोटी-छोटी सूखी गोबरीलों से होली तैयार की जाती है। होली के दिन हर घर में यह छोटी होली जलाई जाती है। इस होली को जलाने के लिए गांव की प्रमुख होली से आग लाई जाती है।

प्रसाद

फुलैरा दूज का त्यौहार उत्तर भारत के कुछ इलाकों में काफी जोर शोर से मनाया जाता है। इस दिन ब्रजभूमि और मथुरा में भी मंदिरों को फूलों से बहुत खूबसूरती के साथ मनाया जाता है। पूरे दिन मंदिरों में भगवान कृष्ण के भजन कीर्तन चलते हैं।पवित्र भोजन (विशेष भोग) फुलेरा दूज के दिन को शामिल किया जाता है जिसमें पोहा और विभिन्न अन्य विशेष सेव शामिल होते हैं। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में वितरित किया जाता है। इस दिन किए जाने वाले दो प्राथमिक अनुष्ठान समाज में रसिया और संध्या आरती हैं।

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इस दिन घर में भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है और अपने ईष्ट देव को गुलाल चढ़ाया जाता है। इस दिन मिष्ठान बनाया जाता है और उन्हें भगवान को भोग लगाया जाता है। यह दिन नए काम की शुरुआत के लिए बहुत शुभ है। नए काम की शुरुआत इस दिन से कर सकते हैं। इस दिन राधा-कृष्ण को अबीर-गुलाल अर्पित किया जाता है। इस दिन से लोग होली के रंगों की शुरुआत भी करते हैं। यह दिन सभी दोषों से मुक्त माना जाता है। भक्त घरों और मंदिरों दोनों जगह में देवता की मूर्तियों या प्रतिमाओं को सुशोभित करते हैं और सजाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान जो किया जाता है वह भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है। ब्रज क्षेत्र में, इस विशेष दिन पर, देवता के सम्मान में भव्य उत्सव होते हैं।

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