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राखी का त्योहारः मुहूर्त और उससे जुड़ी कहानी, सब कुछ जानिये यहां

माता लक्ष्मी के इसके साथ जुड़े होने के कारण ही रक्षा बांधते समय ये मंत्र भी पढ़ा जाता है। ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।। 

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Published on: 29 July 2020 4:05 PM IST
राखी का त्योहारः मुहूर्त और उससे जुड़ी कहानी, सब कुछ जानिये यहां
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तीन अगस्त को रक्षा बंधन का पर्व है। बाजार रंग बिरंगी राखियों से सज गए हैं। बहनों ने अपने भाइयों के लिए राखी खरीदकर उन्हें भेजना शुरू कर दिया है। ताकि वह रक्षाबंधन के दिन इसे अपनी कलाई पर बांध सकें। रक्षाबंधन का रक्षा सूत्र के इस त्योहार पर तमाम फिल्में भी बनीं। लेकिन यह त्योहार स्थिर गति से आगे बढ़ता गया। प्रत्येक भाई को अपनी बहन के हाथ से राखी बंधवाना पसंद होता है। चूंकि रक्षा सूत्र या राखी से रक्षा शब्द जुड़ा है। इसलिए इस कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त आवश्यक है।

खुशियों का त्योहार

राखी मूलतः भाई बहन की खुशियों का त्योहार है। राखी की तैयारियां तो काफी पहले से होने लगती हैं। राखी के दिन लड़कियाँ और महिलाएँ अलस्सुबह नहा धोकर पूजा की थाली सजा लेती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। भाई भी नहाधोकर नये वस्त्र पहनकर तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठ जाते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है, सिर पर छिड़का भी जाता है, भाई की आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है, भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाई जाती हैं। भाई बहन एक दूसरे का मुंह मीठी कराते हैं। भाई बहन को उपहार या धन देता है।

ये हैं मुहूर्त

पहला मुहूर्त सुबह 9 बजकर 30 मिनट से शुरू हो जाएगा।

दूसरा मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 35 मिनट तक

तीसरा मुहूर्त शाम को 7 बजकर 30 मिनट से लेकर रात 9.30 तक

विष्णु के वामन अवतार से नाता

रक्षा से स्पष्ट है कि हम जिसको बांधते हैं उसकी रक्षा की भावना निहित होती और सांसारिक दृष्टिकोण में जिसके बांधा जाता है उससे अपनी रक्षा का वचन लिया जाता है।

वैसे देखा जाए तो भारत की प्राचीन संस्कृति में राखी का त्योहार सावन की पूर्णिमा के दिन होता अवश्य रहा है लेकिन उसमें बहनों की भूमिका नहीं रही। पौराणिक कहानियों के हिसाब से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा भगवान विष्णु के वामन अवतार से मिलती है।

उस युग के महादानी राजा बली को उन्होंने रक्षा सूत्र बांधकर तीन पग भूमि दान में लेने का वचन लिया था। एक पग में पूरी सृष्टि दूसरे पग में पूरा आकाश और तीसरे पग के लिए राजा बली खुद जमीन पर लेट गए थे तो विष्णु ने उन्हें पाताल पहुंचा दिया था।

राजा बली पाताल में चला गया लेकिन उसने भगवान विष्णु जो कि वामन अवतार में थे उनसे एक वचन लिया कि वह हमेशा उसके सामने रहेंगे। माता लक्ष्मी को जब यह बात पता चली तो वह बहुत परेशान हुईं फिर वह सावन की पूर्णिमा के दिन राजा बली के पास गईं और भाई बनाकर उसके हाथ में रक्षा सूत्र बांधा। बली ने जब मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान विष्णु को मांग लिया।

रक्षा सूत्र

ब्राह्मण से इस रक्षा सूत्र को सावन पूर्णिमा के दिन अपने यजमान को इस मंत्र के साथ बांधते थे- 'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल। अर्थात दानवों के महाबली राजा बली जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।

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इसका अर्थ यह निकाला गया कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना रहा है।

माता लक्ष्मी के इसके साथ जुड़े होने के कारण ही रक्षा बांधते समय ये मंत्र भी पढ़ा जाता है। ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।

पं. रामकृष्ण वाजपेयी



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