×

इस दिन करें मां सीता की पूजा, बढ़ेगा प्यार, वे खुद श्रीराम के चरण चिह्नों में नहीं रखी पैर

 माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को माता सीता के पूजन का दिन है। इस दिन माता सीता धरती पर अवतरित हुईं थी। इस दिन को सीता अष्टमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। माता सीता एक आदर्श स्त्री का उदाहरण हैं

suman
Published on: 15 Feb 2020 8:44 AM GMT
इस दिन करें मां सीता की पूजा, बढ़ेगा प्यार, वे खुद श्रीराम के चरण चिह्नों में नहीं रखी पैर
X

जयपुर: 16 फरवरी को सीता जयंती का पर्व है। कहते हैं कि ये दिन हर साल फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पड़ता है। इस दिन माता सीता धरती पर अवतरित हुई यानि कि जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता के व्यक्तित्व और गुणों के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है। राजा जनक की पुत्री के रुप में जन्मी सीता माता का विवाह हुआ तो वनवास भी हुआ, वनवास हुआ तो अपहरण भी हुआ। अपरहण हुआ तो अग्नि परीक्षा देना पड़ी और अग्नि परीक्षा के बाद भी गृह त्याग कर आश्रम में रहकर ही दो पुत्रों को जन्म दिया और उनका पालन पोषण किया। इसी तरह उनके जीवन से जुड़ी कुछ ओर बातों के बारे में जानते हैं।

भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र से जुडी अनेकों बातों को संस्कृत भाषा में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित श्रीरामचरितमानस में कहा गया है। इन दोनो धार्मिक ग्रंथों में सबसे प्रमाणिक 'रामायण' को माना गया है। लेकिन इन दोनों ग्रंथों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि इनमें भगवान श्रीराम की पत्नी सीता जी के बारे में बहुत सी भावपूर्ण बातों को बताया गया है।वाल्मीकि रामायण में यह वर्णन मिलता है कि, 'जब भगवान श्री राजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए उस भूमि को हल से जोत रहे थे, उसी समय उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई. हल के नुकीले हिस्से को सीत कहते हैं। इससे टकराने पर सीता जी मिलीं इसलिए उनका नाम सीता रखा गया। सीता जी पृथ्वी से प्रगट हुई थी।

यह भी मान्यता है कि राजा जनक, यज्ञ के लिए भूमि तैयार कर रहे थे। भूमि से ही उन्हें कन्या मिलीं, हल के फल को सीता कहा जाता है। इस कारण कन्या का नाम सीता रखा गया। मां सीता ने बचपन में ही भगवान शिव का धनुष खेल-खेल में उठा लिया था। इसलिए राजा जनक ने उनके स्‍वयंवर के समय धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखी थी। राजा जनक का यह प्रण पूरा हुआ और माता सीता का विवाह श्रीराम से हुआ। भगवान शिव के इस धनुष का नाम पिनाक था।

यह पढ़ें....ब्रह्माजी के 5 सिर थे, जानिए भगवान शिव ने एक सिर को क्यों काट दिया था…

माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को माता सीता के पूजन का दिन है। इस दिन माता सीता धरती पर अवतरित हुईं थी। इस दिन को सीता अष्टमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। माता सीता एक आदर्श स्त्री का उदाहरण हैं। माता सीता को सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी के अवतार पद्या के रूप में माना जाता है।एक स्त्री का पति के लिए समर्पण माता सीता से ही सीखने को मिलता है।

माना जाता है कि मां सीता, वेदवती का अवतार हैं। एक बार रावण पुष्पक विमान से जा रहा था। तभी उसकी नजर एक सुंदर स्त्री पर पड़ी। उनका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थीं। रावण ने बाल पकड़कर उन्हें खींचा। तब उन्होंने श्राप दिया कि रावण का अंत किसी स्त्री के कारण ही होगा। रावण को श्राप देकर वह अग्नि में समा गईं और माना जाता है कि वेदवती ने ही माता सीता के रूप में जन्म लिया।

यह पढ़ें....महाशिवरात्रि से पहले होने लगे ये सब तो मिल रहे हैं भविष्य के अच्छे-बुरे संकेत

प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता।।

सीय राम पद अंक बराएं। लखन चलहिं मगु दाहिने लाएं।।

मां सीता ने अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाए। मान्यता है कि सीताजी के हरण के बाद उसी रात देवराज इंद्र, भगवान ब्रह्मा के कहने पर अशोक वाटिका में माता सीता के लिए खीर लेकर आए। माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से माता सीता को जब तक लंका में रहीं भूख-प्यास नहीं लगी। मान्यता के अनुसार माता सीता को महज 18 साल की आयु में वनवास का कष्ट भोगना पड़ा। वन गमन के दौरान माता सीता भगवान श्रीराम की छाया शक्ति रहीं। यदि माता सीता अशोक वाटिका में वैराग्यणी के रूप में तप नहीं करतीं तो रावण को मार पाना असंभव था। श्रीरामचरित मानस के अनुसार वनवास के दौरान श्रीराम के पीछे-पीछे सीता चलती थीं। चलते समय वह इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से भी उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों पर न रख जाए।श्रीराम के चरण चिह्नों के बीच-बीच में पैर रखती हुई सीताजी चलती थीं।

यह पढ़ें....1903 के बाद, 21 फरवरी को होंगे इतने सारे दुर्लभ योग, व्रत-पूजा का मिलेगा दोगुना फल

जानकी जयंती का व्रत सुहागन महिलाएं रखती हैं। वे सीता माता से अपने पति के लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। जानकी जयंती के दिन मां सीता की आराधना करने से वैवाहिक जीवन की सभी समस्याओं का अंत हो जाता है। सीता जी मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं, इसलिए उनको जानकी भी कहा जाता है। इसलिए ही सीता जयंती को जानकी जयंती कहते हैं।

suman

suman

Next Story