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Religion and Spirituality: धर्म और अध्यात्म

Religion and Spirituality: प्राचीनकाल के साधु और ब्राह्मण अपना निर्वाह गरीबों जैसा करते थे ताकि उस उपभोग की बचत का लाभ समाज को ऊंचा उठाने में-सत्प्रवृत्तियों के अभिवर्धन में-पीड़ा और पतन के निराकरण में लगाया जा सकना सम्भव हो सके।

Kanchan Singh
Published on: 25 Aug 2023 3:53 AM GMT
Religion and Spirituality: धर्म और अध्यात्म
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Religion and Spirituality (PHOTO: SOCIAL MEDIA )

Religion and Spirituality: तप का अर्थ है तपना, कष्ट सहना। कुछ लोग धूप में खड़ा होना, ठण्ड में नहाना,नंगे बदन नंगे पाँव रहना, मौन रहना,अन्न जल ग्रहण न करना आदि शारीरिक कष्ट सहन करने को तप समझते हैं और सोचते हैं इन बातों से दया-द्रवित होकर ईश्वर हमारे प्रति कृपालु हो जायेंगे।

ऐसा सोचना ईश्वर जैसी महान और नियामक सत्ता के सम्बन्ध में ओछा दृष्टिकोण अपनाना है।अकारण शारीरिक कष्ट सहने वालों से, शरीर को हठपूर्वक जलाने वालों से ईश्वर को क्यों और क्या सहानुभूति हो सकती है।तप के नाम पर इन दिनों इसी प्रकार की अन्ध-मान्यताओं का बोलबाला है।तप का वास्तविक अर्थ है- संसार में संव्याप्त पीड़ा और पतन की निवृत्ति के लिये अपनी सुख- सम्पदा का बड़े से बड़ा भाग दे डालना। दूसरों पर बिखेर देना।

स्वभावतः दुख बँटाने वाले और सुख बाँटने वाले लोग भौतिक दृष्टि से गरीबों जैसे स्तर पर निर्वाह करते हैं, अमीरी का उपभोग तो केवल वे पाषाण हृदय कर सकते हैं जिन्हें दूसरों के कष्टों से कोई सहानुभूति नहीं। जब समस्त मानव जाति के लोग हमारे कुटुम्बी हैं तो हमारा निर्वाह स्वभावतः अपने भाइयों के स्तर पर होना चाहिए। गरीबी में रहने से न किसी का स्वास्थ्य खराब होता है और न अन्य दिशा में हानि होती है।

ऋषि जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्राचीनकाल के साधु और ब्राह्मण अपना निर्वाह गरीबों जैसा करते थे ताकि उस उपभोग की बचत का लाभ समाज को ऊंचा उठाने में-सत्प्रवृत्तियों के अभिवर्धन में-पीड़ा और पतन के निराकरण में लगाया जा सकना सम्भव हो सके। ऐसा तपस्वी दृष्टिकोण अपनाकर जीवन की गतिविधियों का निर्धारण करने वाले को सच्चे अर्थों में तपस्वी कह सकते हैं। ऐसे लोगों में उन सभी दिव्य शक्तियों का अवतरण हो सकता है जिनका वर्णन योग और तप के माहात्म्यों के संदर्भ में लिखा गया या कहा गया है।

आज का हमारा धर्म और अध्यात्म सचमुच उतना ही घिनौना है जिसकी सड़ांध में सहज ही नास्तिकता जैसी महा मारियाँ उपजें।धर्म क्या है- अमुक वंश, अमुक वेश के लोगों को लूट-पाट का खुला छूट पत्र। धर्म क्या है- कुरीतियों, मूढ़ताओं, रूढ़ियों, भ्रांतियों का पुलिंदा।अध्यात्म क्या है- थोड़ी-सी पूजा-पाठ की विडम्बना रच कर देवताओं सहित ईश्वर को अपना वशवर्ती बना लेने और उनसे उचित-अनुचित मनोकामनाएं पूरी करने के लिए बन्दर की तरह नचाने का दुःस्वप्न।

अध्यात्म लगभग जादू मन्तर के स्तर पर पहुँच गया

आज का अध्यात्म लगभग जादू मन्तर के स्तर पर पहुँच गया है । जिसके अनुसार कुछ अनगढ़ शब्दों का उच्चारण और कुछ वस्तुओं की औंधी-सीधी, उलट- पुलट। इन्हीं क्रिया कृत्यों की बाल क्रीडा करने वाले लोग शेखचिल्ली जैसी उड़ानों के साथ किसी कल्पना लोक में विचरण करते रहते हैं और चमत्कारी ऋद्धि- सिद्धियों के मन- मोदक खाते रहते हैं।

इस सनकी समुदाय के हाथ क्या कुछ लग सकता है-और लगा भी नहीं, वे टूटे हारे लोग । नकटा सम्प्रदाय के गुण गाते रहते हैं और अपनी भूल पर पर्दा डालते रहते हैं। यही है आज के तथाकथित अध्यात्मवादियों की नंगी तस्वीर जिसे देखकर हमारा शीश लज्जा से नीचे झुक जाता है और रुलाई आती है। इतने लोगों का इतना श्रम, समय, धन एवं मन यदि सच्चे अध्यात्म के लिये नियोजित हुआ होता तो वे स्वयं धन्य बन सकते थे। और अपने प्रकाश से सारे वातावरण में आलोक भर सकते थे।

Kanchan Singh

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