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साष्टांग प्रणाम का महत्त्व, जानिए क्या है प्रक्रिया

Sashtanga Pranaam: साष्टांग प्रणाम का महत्त्व वेदों और हिंदू धर्म के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण है। साष्टांग प्रणाम शब्द संस्कृत भाषा से आया है जो छह अंगों के प्रणाम को दर्शाता है। यह प्रणाम अनेक अवसरों पर किया जाता है जैसे कि देवी-देवताओं की पूजा, गुरु की पूजा या समाज में सम्मानित व्यक्ति का सम्मान करते समय।

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Published on: 26 April 2023 4:08 PM IST
साष्टांग प्रणाम का महत्त्व, जानिए क्या है प्रक्रिया
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sashtanga pranaam (social media)

Sashtang Pranam ka mahatva: वैसे आजकल पैरों को हल्का सा स्पर्श कर लोग चरण स्पर्श की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। कभी-कभी पैरों को स्पर्श किए बिना ही चरण स्पर्श पूरा कर लिया जाता है। मंदिर में जाकर भगवान की मूर्ति के सामने माथा टेकने में भी आजकल लोग कोताही बरतते हैं। खैर ये तो सब आधुनिक तकनीक हैं, लेकिन कभी आपने उन लोगों को देखा है जो जमीन पर पूरा लेटकर माथा टेकते हैं, इसे साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है।

यह एक आसन है जिसमें शरीर का हर भाग जमीन के साथ स्पर्श करता है, बहुत से लोगों को यह आसन आउटडेटेड लग सकता है । लेकिन यह आसन इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति अपना अहंकार छोड़ चुका है। इस आसन के जरिए आप ईश्वर को यह बताते हैं कि आप उसे मदद के लिए पुकार रहे हैं। यह आसन आपको ईश्वर की शरण में ले जाता है।
इस तरह का आसन सामान्य तौर पर पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। क्या आप जानते हैं शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को यह आसन करने की

मनाही है, जानना चाहते हैं क्यों?

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं। इसलिए यह आसन स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा साष्टांग प्रणाम करने के स्वास्थ्य लाभ भी बहुत ज्यादा हैं। ऐसा करने से आपकी मांसपेशियां पूरी तरह खुल जाती हैं और उन्हें मजबूती भी मिलती है।

साष्टांग प्रणाम।

पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्तथा।
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोऽष्टाङ्ग मुच्यते॥

हाथ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक, मन, वचन, और दृष्टि इन आठ अंगों से किया हुआ प्रणाम अष्टांग नमस्कार कहा जाता है।

साष्टांग आसन में शरीर के आठ अंग ज़मीन का स्पर्श करते हैं अत: इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। इस आसन में ज़मीन का स्पर्श करने वाले अंग ठोढ़ी, छाती, दोनों हाथ, दोनों घुटने और पैर हैं। आसन के क्रम में इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पेट ज़मीन का स्पर्श नहीं करे। विशेष नमस्कार मन, वचन और शरीर से हो सकता है। शारीरिक नमस्कार के छः भेद हैं-

केवल सिर झुकाना।
केवल हाथ जोड़ना।
सिर झुकाना और हाथ जोड़ना।
हाथ जोड़ना और दोनों घुटने झुकाना।
हाथ जोड़ना, दोनों घुटने झुकाना और सिर झुकाना।
दंडवत प्रणाम जिसमें आठ अंग (दो हाथ, दो घुटने, दो पैर, माथा और वक्ष) पृथ्वी से लगते हैं। और जिसे ‘साष्टांग प्रणाम’ भी कहा जाता है।

प्रणाम करना भक्ति का 25 वां अंग है। इस प्रणाम में सर्वतो भावेन आत्मसमर्पण की भावना है। इसमें भक्त अपने को नितांत असहाय जानकार अपने शरीर इन्द्रिय मन को भगवान् को अर्पण कर देता है। जब शरीर को इसी अवस्था में मुंह के बल भूमि पर लिटा दिया जाए तो इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। शरीर की इस मुद्रा में शरीर के छ: अंगों का भूमि से सीधा स्पर्श होता है अर्थात् शरीर मे स्थित छ: महामर्मो का स्पर्श भूमि से हो जाता है जिन्हें वास्तुशास्त्र में "षण्महांति" या "छ: महामर्म" स्थान माना जाता है। ये अंग वास्तुपुरुष के महामर्म इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ये शरीर (प्लॉट) के अतिसंवेदनशील अंग होते हैं।
योगशास्त्र में इन्हीं छ: अंगों में षड्चक्रों को लिया जाता है। षड्चक्रों का भूमि से स्पर्श होना इन चक्रों की सक्रियता और समन्वित एकाग्रता को इंगित करता है।

प्रणाम की मुद्रा में व्यक्ति सभी इंद्रियों (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँचों कर्मेद्रियाँ) को कछुए की भाँति समेटकर अपने श्रद्धेय को समर्पित होता है। उसे ऐसा आभास होता है कि अब आत्म निवेदन और मौन श्रद्धा के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं करना। इसे विपरीत श्रद्धेय जब अपने प्रेय (दंडवत प्रणाम करने वाला) को दंडवत मुद्रा में देखता है तो स्वत: ही उसके मनोविकार या किसी भी प्रकार की दूषित मानसिकता धुल जाती है और उसके पास रह जाता है केवल त्याग, बलिदान या अर्पण। यहाँ पर श्रेय और प्रेय दोनों ही पराकाष्ठा का समन्वय ‘साष्टांग प्रणाम’ के माध्यम से किया गया है।

हरिॐ तस्मैं श्रीगुरुवै नम:



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