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इस शुभ योग में है नवरात्रि में कलश स्थापना, फिर भी मां दुर्गा का आगमन दे रहा संकट के संकेत
फिर मां दुर्गा के आगमन की तैयारी शुरू हो जाएगी। इस बार 29 सितंबर, रविवार से शारदीय नवरात्र शुरु हो रहा हैं। धर्म के अनुसार इस दिन माता कैलाश पर्वत से धरती पर अपने मायके आती हैं। खास बात यह है
जयपुर: 28 सितंबर शनि अमावस्या के साथ पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा। और फिर मां दुर्गा के आगमन की तैयारी शुरू हो जाएगी। इस बार 29 सितंबर, रविवार से शारदीय नवरात्र शुरु हो रहा हैं। धर्म के अनुसार इस दिन माता कैलाश पर्वत से धरती पर अपने मायके आती हैं। खास बात यह है कि इस बार नवरात्रों में बेहद दुर्लभ शुभ संयोग बन रहा है। इस बार नवरात्रि में सर्वार्थसिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग एक साथ बनेंगे। जो बेहद शुभ है।
संकट के संकेत
इस साल मां दुर्गा का आगमन हाथी पर है और वापसी घोड़े पर होगी। देवी आगमन और गमन दोनों ही संकट का संकेत दे रहा है। देवी का आगमन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर 29 सितंबर को होगा और विदाई दशमी तिथि पर आठ अक्टूबर को होगी। इस वर्ष नवरात्र पूरे नौ दिन का होगा। दुर्गासप्तशती के अनुसार देवी के दोनों ही वाहन प्राकृतिक आपदाओं के प्रतीक हैं। कहने का मतलब की देवी का आगमन और विदाई अमंगलकारी है, अपितु इसका अभिप्राय यह है कि हम भविष्य के संकटों के प्रति वर्तमान से ही सचेत है।
इस बार भक्तों को मां की उपासना करने के लिए पूरे नौ दिनों का समय मिलेगा। जिसमें 2 दिन सोमवार पड़ेगा जो कि बेहद शुभ माना जा रहा है। माना जाता है कि सोमवार के दिन मां दुर्गा की उपासना करने से साधक को पूजा का कई गुना अधिक फल मिलता है।
मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 29 सितंबर, रविवार सुबह 6 बजकर 16 मिनट से लेकर 7 बजकर 40 मिनट तक रहने वाला है। जो सुबह कलश स्थापना न कर पाएं उनके लिए दिन में 11 बजकर 48 मिनट से लेकर 12 बजकर 35 मिनट तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ रहने वाला है।
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कलश स्थापना करने के लिए व्यक्ति को नदी की रेत का उपयोग करना चाहिए। इस रेत में जौ डालने के बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, फूल डालें। इसके बाद 'ॐ भूम्यै नमः' कहते हुए कलश को 7 अनाज के साथ रेत पर डाल दें। कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलते रहें।
इन पर भी ध्यान दें
कलश की स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करें। कभी भी कलश का मुंह खुला न रखें। अगर कलश को किसी ढक्कन से ढक रहे हैं, तो उस ढक्कन को भी चावलों से भर दें। इसके बाद उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें।
-पूजा करने के बाद मां को दोनों समय लौंग और बताशे का भोग लगाएं। मां को लाल फूल बेहद प्रिय है। लेकिन भूलकर भी माता रानी को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाएं।
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