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Shri Shiv Mahapuran Vidyeshwar Samhita: बारहवाँ अध्याय, मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का वर्णन (भाग 2)
Shri Shiv Mahapuran Vidyeshwar Samhita: नैमिषारण्य तथा बदरिकाश्रम में सूर्य और बृहस्पति के मेष राशि में आने पर स्नान और पूजन करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। सिंह और कर्क राशि में सूर्य की संक्रांति होने पर सिंधु नदी में किया स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञानदायक माना जाता है।
Shri Shiv Mahapuran Vidyeshwar Samhita: सूत जी आगे बोले- हे विद्वान और बुद्धिमान महर्षियो! नैमिषारण्य तथा बदरिकाश्रम में सूर्य और बृहस्पति के मेष राशि में आने पर स्नान और पूजन करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। सिंह और कर्क राशि में सूर्य की संक्रांति होने पर सिंधु नदी में किया स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञानदायक माना जाता है। बृहस्पति के सिंह राशि में स्थित होने पर भाद्रमास में गोदावरी के जल में स्नान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है, ऐसा स्वयं भगवान शिव ने कहा था। सूर्य और बृहस्पति के कन्या राशि में स्थित होने पर यमुना और सोनभद्र में स्नान से धर्मराज और गणेश लोक में महान भोग की प्राप्ति होती है, ऐसी महर्षियों की मान्यता है। सूर्य और बृहस्पति के तुला राशि में होने पर कावेरी नदी में स्नान करने से भगवान विष्णु के वचन की महिमा से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
मार्गशीर्ष माह में, सूर्य और बृहस्पति के वृश्चिक राशि में आने पर, नर्मदा में स्नान करने से विष्णु पद की प्राप्ति होती है। सूर्य और बृहस्पति के धनु राशि में होने पर सुवर्ण मुखरी नदी में किया स्नान शिवलोक प्रदान करने वाला है। मकर राशि में सूर्य और बृहस्पति के माघ मास में होने पर गंगाजी में किया गया स्नान शिवलोक प्रदान कराने वाला है। शिवलोक के पश्चात ब्रह्मा और विष्णु के स्थानों में सुख भोगकर अंत में मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है। माघ मास में सूर्य के कुंभ राशि में होने पर फाल्गुन मास में गंगा तट पर किया श्राद्ध, पिण्डदान अथवा तिलोदक दान पिता और नाना, दोनों कुलों के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उद्धार करने वाला है। गंगा व कावेरी नदी का आश्रय लेकर तीर्थवास करने से पाप का नाश हो जाता है।
ताम्रपर्णी और वेगवती नदियां ब्रह्मलोक की प्राप्ति रूप फल देने वाली हैं। इनके तट पर स्वर्गदायक क्षेत्र हैं। इन नदियों के मध्य में बहुत से पुण्य क्षेत्र हैं। यहां निवास करने वाला मनुष्य अभीष्ट फल का भागी होता है। सदाचार, उत्तम वृत्ति तथा सद्भावना के साथ मन में दयाभाव रखते हुए विद्वान पुरुष को तीर्थ में निवास करना चाहिए अन्यथा उसे फल नहीं मिलता। पुण्य क्षेत्र में जीवन बिताने का निश्चय करने पर तथा वास करने पर पहले का सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाएगा। क्योंकि पुण्य को ऐश्वर्यदायक कहा जाता है।
हे ब्राह्मणो! तीर्थ में वास करने पर उत्पन्न पुण्य कायिक, वाचिक और मानसिक-सभी पापों का नाश कर देता है। तीर्थ में किया मानसिक पाप कई कल्पों तक पीछा नहीं छोड़ता, यह केवल ध्यान से ही नष्ट होता है। 'वाचिक' पाप जाप से तथा 'कायिक' पाप शरीर को सुखाने जैसे कठोर तप से नष्ट होता है। अतः सुख चाहने वाले पुरुष को देवताओं की पूजा करते हुए और ब्राह्मणों को दान देते हुए, पाप से बचकर ही तीर्थ में निवास करना चाहिए।