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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: बंधन से मुक्त करती है विद्या, भगवद्गीता - ( अध्याय - 1/ पुष्पिका ( भाग - 3 )

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: ब्रह्म के ऊपर भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने विस्तृत चर्चा की है। भगवान श्रीकृष्ण ने चौथे अध्याय के २४वें श्लोक में अर्थात् एक ही श्लोक में 'ब्रह्म' शब्द का प्रयोग छः बार किया है। हम सभी मानव इस भौतिक जगत में कष्ट भोग रहे हैं।

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Published on: 7 April 2023 10:48 PM GMT
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: बंधन से मुक्त करती है विद्या, भगवद्गीता - ( अध्याय - 1/ पुष्पिका ( भाग - 3 )
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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika bhag 3(Pic: Social Media)

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhag 3: श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषद में ब्रह्म-विद्या की चर्चा है। पुष्पिका के अंतर्गत लिखा गया है - "ब्रह्मविद्यायां"। ब्रह्म के ऊपर भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने विस्तृत चर्चा की है। भगवान श्रीकृष्ण ने चौथे अध्याय के २४वें श्लोक में अर्थात् एक ही श्लोक में 'ब्रह्म' शब्द का प्रयोग छः बार किया है। हम सभी मानव इस भौतिक जगत में कष्ट भोग रहे हैं। कष्ट भोगने वालों में से ही कुछ मनुष्य ऐसे हैं, जो यह जानने को इच्छुक हैं कि वह इस विषम परिस्थिति में क्यों डाल दिए गए हैं ? वे कष्ट भोगना नहीं चाहते अपितु इसका समाधान चाहते हैं। ऐसे लोगों के भीतर ही ऐसी जिज्ञासा उठती है कि वे इस संसार में क्यों आए हैं ? कहां से आए हैं और मृत्यु के पश्चात कहां जाएंगे ?

'ब्रह्मसूत्र' में इस जिज्ञासा को ब्रह्म जिज्ञासा कहा गया है - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। अर्जुन ने भी अध्याय ८ के प्रथम श्लोक में भगवान से "किं तद्ब्रह्म" के रूप में प्रश्न किया है। पुष्पिता के अंतर्गत संक्षेप में "ब्रह्म" था "विद्या" को हम समझने का प्रयास करें। तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है -

यतो व इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति ।

यत्प्रयत्न्यभिसंविशन्ति तद् ब्रह्म।।

अर्थ - ये सब भूत - प्राणी जिससे उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होकर जिसकी सत्ता से जीवित रहते हैं और विनाश के समय जिसमें प्रवेश कर जाते हैं, वह ब्रह्म है।

अब 'विद्या' शब्द को लें।

"सा विद्या या विमुक्तये" - विष्णु पुराण

अर्थ - विद्या वह है, जो बंधन से मुक्त कर दे।

जब कुशल एवं निष्णात सद्गुरु हों तथा वैसा ही श्रेष्ठ जिज्ञासु हो, तभी 'ब्रह्मविद्या' प्रकट होती है।भगवद्गीता उसी का परिणाम है। भगवद्गीता में इसी विद्या के प्रकाश में सत् - चित् - आनंद स्वरूप ब्रह्म का साक्षात्कार कराया गया है। अतः इसे ब्रह्म विद्या कहा गया है। ब्रह्मविद्या के बारे में मुंडकोपनिषद के प्रथम मुण्डक के प्रथम खंड के प्रथम श्लोक में वर्णित है -

"ब्रह्म विद्यायां सर्वविद्याप्रतिष्ठाम्" अर्थात् समस्त विद्याओं की आधारभूता ब्रह्म-विद्या है।

इसके बाद पुष्पिका में कहा गया है - 'योगशास्त्रे'। अगले अंक में योग-शास्त्र पर विवेचन किया जाएगा।

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