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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: बहुत रोचक है श्रीकृष्ण अर्जन संवाद की शैली, भगवद्गीता ( अध्याय- 1/ पुष्पिका ( भाग - 6 )

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhag 6: आज भी प्रश्नकर्ता एवं उत्तरदाता दोनों का मुख आमने - सामने ही रहता है। संवाद की यही परिपाटी रही है। लेकिन भगवद्गीता के अंतर्गत संवाद की स्थिति एकदम विपरीत है। श्री कृष्ण एवं अर्जुन आमने - सामने नहीं बैठे हैं। अर्जुन एवं श्री कृष्ण दोनों का मुख एक ही दिशा में है।

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Published on: 9 April 2023 3:27 PM GMT
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: बहुत रोचक है श्रीकृष्ण अर्जन संवाद की शैली, भगवद्गीता ( अध्याय- 1/ पुष्पिका ( भाग - 6 )
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Shrimad Bhagwat Geeta (Pic: Newstrack)

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhag 6: श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद शैली की रोचकता से आपका परिचय कराते हैं। संवाद शैली की विशेषता -

1-गुरु - शिष्य परंपरा में एक तरफ गुरु तथा दूसरी ओर शिष्यगण आमने - सामने आसन ग्रहण करते थे। आज भी प्रश्नकर्ता एवं उत्तरदाता दोनों का मुख आमने - सामने ही रहता है। संवाद की यही परिपाटी रही है। लेकिन भगवद्गीता के अंतर्गत संवाद की स्थिति एकदम विपरीत है। श्री कृष्ण एवं अर्जुन आमने - सामने नहीं बैठे हैं। अर्जुन एवं श्री कृष्ण दोनों का मुख एक ही दिशा में है। इसका कारण यह है कि अर्जुन रथी के रूप में तथा श्रीकृष्ण सारथी की भूमिका में हैं। रथ में आसीन अर्जुन श्रीकृष्ण के पीछे से प्रश्न करते हैं। श्रीकृष्ण अपना सिर पीछे की ओर मोड़कर उत्तर देते हैं।

उत्तरदाता के पीछे से न तो कोई प्रश्न करता है और न ही संवाद करता है। संवाद करने की श्रीकृष्ण एवं अर्जुन की यह शैली काफी विचित्र है। इस ढंग से कहीं संवाद नहीं हुआ है।

2- श्रीकृष्ण एवं अर्जुन का एकल संवाद हुआ है। संवाद में प्रश्नकर्ता एवं उत्तरदाता दोनों एक ही धरातल पर बैठते हैं। अथवा उत्तरदाता यानी गुरु ऊपर बैठते हैं तथा प्रश्नकर्ता यानी शिष्य नीचे बैठता है। पर इस संवाद में तो एकदम ही उल्टा हुआ है।

अर्जुन रथी के रूप में रथ के ऊपर बैठे हुए हैं तथा श्रीकृष्ण सारथी के रूप में अर्जुन से नीचे बैठे हुए हैं। शिष्य ऊपर और गुरु नीचे हो - ऐसी अवस्था में सारे जगत में कदाचित् ही संवाद हुआ हो। है न ! अद्भुत शैली। भगवद्गीता के संवाद के इस अनूठे प्रयोग पर हमारा ध्यान जाता ही नहीं है।

3- जहां जनसमुदाय उपस्थित रहता है, वहां जब दो व्यक्तियों के बीच संवाद होता है, तो उस के निकट रहने वाले उपस्थित लोग भी संवाद को सुनते हैं। गुरु - शिष्य परंपरा में भी, भले ही किसी एक शिष्य ने जिज्ञासा रखी हो, परंतु उसका समाधान तो सभी शिष्य गुरु के मुखारविंद से सुनते थे।

पर यहां तो अद्भुत घटना घटी है। श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद को कुरुक्षेत्र के विशाल मैदान में स्थित अठारह अक्षौहिणी सेना में से किसी ने भी नहीं सुना। भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य को तो छोड़ ही दें, अन्य पांडवों - युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव ने भी नहीं सुना था। श्रीकृष्ण तथा अर्जुन ने ही कहा और सुना था। इस संवाद को संजय ने भी सुना था। लेकिन उसने इसकी कहीं चर्चा नहीं की थी।

4- श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद महाभारत - युद्ध के शुरू होने के पहले ही हो चुका था। पर इसका प्रकटीकरण युद्ध के दसवें दिन हुआ था, वह भी युद्ध के मैदान में नहीं, वरन् हस्तिनापुर के राजमहल में। युद्ध के दसवें दिन पितामह भीष्म के घायल हो जाने का समाचार लेकर संजय युद्धक्षेत्र से वापस हस्तिनापुर आए थे। जब धृतराष्ट्र ने युद्ध का वृतांत सुनना चाहा, तब संजय ने इस संवाद को सर्वप्रथम प्रकट किया था।

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