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इस दिन है सीता नवमी,इनके स्मरण मात्र से रोग व संताप से मिलती है मुक्ति

वेदवती ने रावण को बताया कि मेरे पिता मेरा विवाह तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु से करना चाहते थे। लेकिन उनके इस अभिप्राय को जानकार दैत्यराज शम्भू मेरे पिता पर कुपित हो उठा

suman
Published on: 11 May 2019 12:26 AM GMT
इस दिन है सीता नवमी,इनके स्मरण मात्र से रोग व संताप से मिलती है मुक्ति
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जयपुर:वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जनकनंदनी, सर्वमंगलदायिनी, पतिव्रताओं में शिरोमणि श्री सीताजी का अवतरण हुआ। यह दिन जानकी नवमी या सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। इस साल यह शुभ दिन 13 मई को है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस पावन पर्व पर जो भी भगवान राम सहित मां जानकी का व्रत-पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल एवं समस्त तीर्थ भ्रमण का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है एवं समस्त प्रकार के दु:खों, रोगों व संतापों से मुक्ति मिलती है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने सीताजी की वंदना करते हुए उन्हें उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली एवं समस्त जगत का कल्याण करने वाली राम वल्लभा कहा है। अनेकों ग्रंथ उन्हें जगतमाता, एकमात्र सत्य, योगमाया का साक्षात् स्वरुप व समस्त शक्तियों की स्त्रोत तथा मुक्तिदायनी कहकर उनकी आराधना करते हैं। सीताजी क्रिया-शक्ति, इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति, तीनों रूपों में प्रकट होती हैं। माँ सीता भूमि रूप हैं, भूमि से उत्पन्न होने के कारण उन्हें भूमात्मजा भी कहा जाता है।सूर्य,अग्नि एवं चन्द्रमा का प्रकाश सीता जी का ही स्वरुप है। चन्द्रमा की किरणें विभिन्न औषधिओं को रोग निदान का गुण प्रदान करती हैं। ये चंद्र किरणें अमृतदायिनी सीता का प्राणदायी और आरोग्यवर्धक प्रसाद है।

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मां सीता ने ही हनुमानजी को उनकी सेवा-भक्ति से प्रसन्न होकर अष्ट सिद्धियों तथा नव निधियों का स्वामी बनाया।वाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका के राजा रावण ने एक बार हिमालय का भ्रमण करते हुए एक तपस्वनी कन्या को देखा, उसका नाम वेदवती था। उस कन्या को देखकर रावण का चित्त कामजनित मोह के वशीभूत हो गया, उसने कन्या के निकट जाकर अभी तक उसके अविवाहित होने का कारण पूछा। वेदवती ने रावण को बताया कि मेरे पिता मेरा विवाह तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु से करना चाहते थे। लेकिन उनके इस अभिप्राय को जानकार दैत्यराज शम्भू मेरे पिता पर कुपित हो उठा और उस पापी ने मेरे पिता का वध कर दिया। पति वियोग में माता भी चिता की अग्नि प्रविष्ट हो गयीं।

पिता के मनोरथ को पूर्ण करने हेतु मैंने तपस्या का मार्ग अपनाया। रावण ने वेदवती को पहले तो अपनी बातों में लेना चाहा, परन्तु उनके नहीं मानने पर उसने वेदवती के केश पकड़ लिए। क्रोधित वेदवती ने तत्काल ही अपने बालों को काट डाला। रावण को यह कहते हुए-''नीच राक्षस! इस वन में तूने मेरा अपमान किया है, इसलिए मैं तेरे अंत के लिए फिर उत्पन्न होउंगी''। यह वेदवती पहले सतयुग में प्रकट हुई थीं, फिर त्रेता युग आने पर उस राक्षस रावण के वध के लिए मिथलावर्ती राजा जनक के कुल में सीता रूप से अवतरित हुईं।

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