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Srimad Bhagavad Gita: अर्जुन के लिए चिंता का सबब था वर्णसंकरता, भगवद्गीता- (अध्याय-1/ श्लोक संख्या - 41(भाग-2)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 41 Bhag 2: भगवद्गीता के अंतर्गत प्रथम बार अर्जुन के द्वारा "वर्ण" शब्द का उल्लेख हुआ है, वह भी 'वर्णसंकर' के रूप में। परस्पर विरुद्ध धर्मों का मिश्रण होकर जो बनता है, उसको 'संकर' कहते हैं। पुरुष और स्त्री दोनों अलग-अलग वर्ण के होने पर उनसे जो संतान उत्पन्न होती है, वह "वर्णसंकर" कहलाती है।

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Published on: 11 April 2023 10:04 PM IST
Srimad Bhagavad Gita: अर्जुन के लिए चिंता का सबब था वर्णसंकरता, भगवद्गीता- (अध्याय-1/ श्लोक संख्या - 41(भाग-2)
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Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 41 Bhag 2(Pic: Social Media)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 41 Bhag 2:

स्त्रीषु दुष्टाषु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकर:।

सरलार्थ - हे वार्ष्णेय ! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है।

निहितार्थ - भगवद्गीता के अंतर्गत प्रथम बार अर्जुन के द्वारा "वर्ण" शब्द का उल्लेख हुआ है, वह भी 'वर्णसंकर' के रूप में। परस्पर विरुद्ध धर्मों का मिश्रण होकर जो बनता है, उसको 'संकर' कहते हैं। पुरुष और स्त्री दोनों अलग-अलग वर्ण के होने पर उनसे जो संतान उत्पन्न होती है, वह "वर्णसंकर" कहलाती है।

इसके पूर्व अर्जुन यह कह चुका है कि अधर्म के फैलने पर नारियां दूषित ( अपवित्र ) होंगी। स्त्रियों के दूषित होने पर क्या होगा ? इस पर अर्जुन अपने भ्रमित एवं विषादमय अवस्था में ही कह रहा है कि नारियों के दूषित होने पर वे वर्णसंकर संतानें उत्पन्न करेंगी।

वर्णसंकर संतानों के लिए भी अर्जुन ने नारी पर ही दोषारोपण किया है। जबकि हम सभी जानते हैं की स्त्रियां तो मात्र अपने हाव - भाव से पुरुषों को रिझाती हैं, पर पुरुष तो मानो उन्मत्त हो स्त्री पर टूट पड़ता है। जिस प्रकार चाकू तरबूज पर गिरे या तरबूज चाकू पर गिरे, कटना तो तरबूज की ही नियति होती है। उसी प्रकार इच्छा से हो अथवा जबरदस्ती हो, परिणाम तो स्त्री को ही भोगना पड़ता है तथा गर्भधारण करना पड़ता है। पुरुष तो निश्चिंत हो पूरी पृथ्वी का विचरण करता रहता है। बलात्कार कभी भी स्त्री द्वारा नहीं होता, वह केवल पुरुष द्वारा ही होता है। तो भी, अर्जुन ने कुल में उत्पन्न वर्णसंकरता के लिए नारी मात्र को ही दोषी ठहरा दिया है।

यदि उस कालखंड में वर्णसंकरता नहीं होती, तो अर्जुन 'वर्णसंकर' शब्द का प्रयोग ही नहीं करता क्योंकि तब 'वर्णसंकर' शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई होती। कुछ वर्णसंकरता के दृष्टांत हमें देखने को मिलते हैं।कुरुकुल के पूर्वज भरत थे। भरत की माता का नाम शकुंतला था। ऋषि विश्वामित्र की मेनका नामक अप्सरा के संयोग से शकुंतला का जन्म हुआ था।

महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा अंबिका की दासी से विदुर का जन्म हुआ था। जब गांधारी गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र के वैश्य - कन्या से युयुत्सु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था, जो महाभारत-युद्ध के पूर्व पांडव - पक्ष के साथ मिल गया था। भीम द्वारा राक्षसी हिडिंबा से घटोत्कच का जन्म हुआ था। अभी तो महाभारत - युद्ध हुआ भी नहीं है, तो भी उसके कुल में वर्णसंकरता तो आ चुकी है - इसका विस्मरण अर्जुन को हो गया है।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण को "वार्ष्णेय" कह कर संबोधित किया है। यहां पर अर्जुन श्रीकृष्ण को याद दिला रहे हैं कि आप तो वृष्णि वंश के हैं, लेकिन युद्ध के पश्चात् जब हमारा कुल वर्णसंकरता को प्राप्त हो जाएगा, तब वर्णसंकर संताने किस कुल के नाम से जानी जाएंगी। अगले श्लोक में वर्णसंकर संतानों के दुष्प्रभाव को अर्जुन बताने जा रहे हैं, अगले श्लोक में जिस पर प्रकाश डाला जाएगा।



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