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ऐसी घटनाएं बताती हैं कि काल की सीमा से परे हैं ईश्वर, जानिए क्या है इतिहास

होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि-कुण्ड में कूद गई। उसे आग में न जलने का वरदान था किन्तु वह जल गई और प्रहलाद अग्नि जैसी शक्ति और महान् ऊर्जा वाले पदार्थ से नितान्त अप्रभावित बच गये, यह घटना बताती है कि पदार्थ से भी परे की कोई सत्ता अवश्य है। ऐसी घटनायें इतिहास के प्रामाणिक पृष्ठों पर भी विद्यमान है।

suman
Published on: 16 May 2020 5:45 AM GMT
ऐसी घटनाएं बताती हैं कि काल की सीमा से परे हैं ईश्वर, जानिए क्या है इतिहास
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लखनऊ: हमारे धर्म शास्त्रों में ईश्वरीय सत्ता का वर्णन है। सृष्टि का संचालन ईश्वरीय शक्तियां करती हैं। और उन शक्तियों पर हमारा अटूट विश्वास है, कुछ घटनाएं अंधविश्वास या रहस्य या अपवाद बनकर रह जाती है।जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि-कुण्ड में कूद गई। उसे आग में न जलने का वरदान था किन्तु वह जल गई और प्रहलाद अग्नि जैसी शक्ति और महान् ऊर्जा वाले पदार्थ से नितान्त अप्रभावित बच गये, यह घटना बताती है कि पदार्थ से भी परे की कोई सत्ता अवश्य है। ऐसी घटनायें इतिहास के प्रामाणिक पृष्ठों पर भी विद्यमान है।लेकिन ऐसी ही घटनाएं जब देश की धरती से बाहर होती है तो भी रहस्य की एक परत बनी रहती है।

कहने वाले कहेंगे यह पौराणिक गल्प हैं, इन पर कोई विश्वास नहीं किया जा सकता है। आज के विज्ञानवादी युग में ऐसा पूछा जाना स्वाभाविक है। पर ईश्वरीय सत्ता को तो काल की सीमा भी नहीं बांध सकती। इसका एक सुन्दर उदाहरण श्री सी. डब्लू लेडी बीटर ने अपनी पुस्तक “अनविजिबिल हेल्पर्स” में इस प्रकार दिया है-

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“एक बार लन्दन की हालबर्न सड़क में भयंकर आग लग गई, उसमें दो मकान जलकर राख हो गये। उस घर में एक बुढ़िया को जो धुयें के कारण दम घुट जाने से पहले ही मर गई थी छोड़कर शेष सब को बचा लिया गया। आग इतनी भयंकर लगी थी कोई भी सामान नहीं निकाला जा सका।”

“जिस समय दोनों मकान लगभग पूरे जल चुके थे, तब धर की मालकिन को याद आया कि उसकी एक मित्र अपने बच्चे को एक रात के लिये उसके पास छोड़कर किसी कार्यवश कालचेस्टर चली गई थी। वह बच्चा अटारी पर सुलाया गया था और वह स्थान इस समय पूरी तरह आग की लपटों से घिरा हुआ था, आग की गर्मी से उस समय पत्थर भी मोम की तरह पिघलकर टपक रहे थे।”

“ऐसी स्थिति में बच्चे के जीवन की आशा करना ही व्यर्थ था फिर उसकी खोज करने कौन जाता है। पर एक आग बुझाने वाले ने साहस साधा, उपकरण बांधे और उस कमरे में जा पहुंचा, जहां बच्चा लिटाया गया था। उस समय तक फर्श का बहुत भाग जल कर गिर गया था किन्तु आग कमरे में गोलाई खाकर अस्वाभाविक और समझ में न आने वाले ढंग से खिड़की की तरफ निकल गई थी।

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उस गोल सुरक्षित स्थान में बच्चा ऐसे लेटा था, जैसे कोई अपनी मां की गोद में लेटा हो। बाहर का दृश्य देखकर वह भयभीत अवश्य था पर उसकी तरफ एक भी आग की चिनगारी बढ़ने का साहस न कर रही थी। जिस कोने पर बच्चा सोया था, वह बिल्कुल बच गया था। जिस पटिये पर खाट थी, वह आधे-आधे जल गये थे पर चारपाई के आस पास कोई आग न थी वरन् एक प्रकार का दिव्य तेज वहां भर रहा था। जब तक आग बुझाने वाले ने बच्चे को सकुशल उठा नहीं लिया, वह प्रकाश अपनी दिव्य प्रभा बिखराता रहा, पर जैसे ही वह बच्चे को लेकर पीछे मुड़ा कि आग वहां भी फैल गई और दिव्य तेज अदृश्य हो गया।

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