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Surya Dev Story: भगवान सूर्य कैसे आए मां के गर्भ में और कैसे हुआ उनका जन्म
Surya Dev Janam Katha: नारद ने सलाह दी कि इस संकट से सूर्य के समान तेजस्वी और बलशाली सत्ता ही मुक्ति दिला सकती है। वह यदि देवों का प्रतिनिधित्व करे, तो बात बने। लेकिन सूर्य प्रकट रूप में एक महाविराट अग्निपिंड है, उसे मनुष्य के रूप में जन्म लेकर देवशक्तियों का सेनापतित्व करना चाहिए।
Surya Dev Janam Katha in Hindi: दैत्य अक्सर देवताओं पर आक्रमण करते थे। एक बार भयानक युद्ध हुआ और वर्षों तक चला। उस युद्ध में सृष्टि का अस्तित्व संकट में पड़ गया। पराजित होकर देवगण वन-वन भटकने लगे। उनकी व्यथा लेकर देवर्षि नारद कश्यप मुनि के आश्रम में पहुंचे और संकट के बारे में बताया। नारद ने सलाह दी कि इस संकट से सूर्य के समान तेजस्वी और बलशाली सत्ता ही मुक्ति दिला सकती है। वह यदि देवों का प्रतिनिधित्व करे, तो बात बने। लेकिन सूर्य प्रकट रूप में एक महाविराट अग्निपिंड है, उसे मनुष्य के रूप में जन्म लेकर देवशक्तियों का सेनापतित्व करना चाहिए। ऐसी तेजस्वी संतान कोई तेजस्वी स्त्री ही जन्म दे सकती है। बहुत सोच-विचार और खोज-पड़ताल के बाद उन्होंने कहा कि इसके लिए महर्षि कश्यप की पत्नी और देवमाता अदिति ही सूर्य की मां बन सकती हैं। देवमाता अदिति से अनुरोध किया गया। वह राजी हो गईं। तप, त्याग और ध्यान से अदिति ने भगवान सूर्यदेव को मनाया और उन्हें पुत्र रूप में जन्म लेने के लिए मनाया।
तथास्तु कहकर सूर्य भगवान अंतर्धान हो गए। कुछ दिन बाद सूर्य अदिति के गर्भ में आ गए। समय आने पर अदिति ने देखा कि उसके शरीर से दिव्य तेज निकल रहा है। अदिति से जन्मा होने के कारण उस बालक का अथवा सूर्य का नाम ‘आदित्य’ भी रखा गया। आदित्य तेजस्वी और बलशाली रूप में ही बढ़े हुए। उन्हें देख इंद्र आदि देवता अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने आदित्य को अपना सेनापति नियुक्त कर दैत्यों पर आक्रमण कर दिया। आदित्य के तेज के समक्ष दैत्य अधिक देर तक नहीं टिक पाए और जल्दी ही उनके पांव उखड़ गए। वे अपने प्राण बचाकर पाताल लोक में छिप गए। सूर्य के प्रताप और तेज से स्वर्गलोक पर फिर देवताओं का अधिकार हो गया। सभी देवताओं ने आदित्य को जगत के पालक और ग्रहराज के रूप में स्वीकार किया। सृष्टि को दैत्यों के अत्याचारों से मुक्त कर भगवान आदित्य सूर्यदेव के रूप में ब्रह्मांड के मध्य में स्थित हो गए और वहीं से सृष्टि का कार्य-संचालन करने लगे।
।।भूवन् भास्कराय नम: ।।
'श्री सूर्याष्टकम्'
पंचदेवों में प्रमुख सूर्य देव प्रत्यक्ष देव है इनकी स्तुति से स्वास्थ्य आदि में चमत्कारिक फल मिलता हैं। भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ठ होने पर भगवान सूर्य की स्तुति किये थे।
श्री साम्ब उवाच:-
आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।1।
सप्ताश्वरथ मारुढ़ं प्रचण्डं कश्यपात्पजम्।
श्वेत पद्मधरं तं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।2।
लोहितं रथमारुढं सर्वलोक पितामहम्।
महापाप हरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ।3
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मा विष्णु महेश्वरं।
महापापं हरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ।4।
वृहितं तेज: पुञ्जच वायुराकाश मेव च।
प्रभुसर्वलोकानां तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ।5।
बन्धूक पुष्प संकाशं हार कुंडल भूषितम्।
एक चक्र धरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।6
तं सूर्य जगत् कर्तारं महातेज: प्रदीपनम्।
महापाप हरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ।7।
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञान विज्ञान मोक्षदम्।
महापापं हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।8।
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं गृहपीड़ा प्रणाशनम।
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान भवेत ।9।
अभिषं मधु पानं च य: करोत्तिवेदिने।
सप्तजन्म भवेद्रोगी जन्म-जन्म दरिद्रता ।10।
स्त्री तेल मधुमां-सा नित्य स्त्यजेन्तु रवेद्रिने।
न व्याधि: शोक दारिद्रयं सूर्यलोकं सगच्छति ।11।
(कंचन सिंह)