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Tantra Mantra Mein Antar: तंत्र और भक्ति में क्या अंतर है, कौन ज्यादा पावरफुल है, हैरान कर देगी ये घटना
Tantra Mantra Mein Antar Kya Hai: आम बोलचाल में हम कहते हैं शरीर का अपना एक तंत्र है। जिससे शारीरिक क्रियाएं सम्पन्न होती हैं। लेकिन हम शारीरिक क्रियाओं का उतना ही इस्तेमाल करते हैं जितना हम देखते आ रहे हैं।
Tantra Mantra Mein Antar Kya Hai: जब हम कभी तंत्र की बात करते हैं तो लोगों के जेहन में भय की एक लहर दौड़ जाती है। कुछ लोग तांत्रिक क्रियाओं पर यकीन करते हैं। कुछ लोग इसे ढोंग मानते हैं। कुछ तांत्रिक बन कर ठगी करते हैं तो कुछ तंत्र की क्रियाओं का इस्तेमाल अपराध में करते हैं। प्राथमिक तौर पर सरल ढंग से अगर समझें तो तंत्र का आशय ऊर्जा के इस्तेमाल से होता है। उदाहरण के लिए हम प्रशासनिक तंत्र की बात करें जिसे हम सिस्टम के रूप में लेते हैं। लेकिन वह अधिकारियों के एक समूह की ऊर्जा के प्रभाव से लक्ष्यित होता है। ठीक इसी तरह से साधना के दो स्वरूप हैं तांत्रिक और भक्ति भाव।
आम बोलचाल में हम कहते हैं शरीर का अपना एक तंत्र है। जिससे शारीरिक क्रियाएं सम्पन्न होती हैं। लेकिन हम शारीरिक क्रियाओं का उतना ही इस्तेमाल करते हैं जितना हम देखते आ रहे हैं। जिसे हम नहीं जानते उसका न तो प्रयास करते हैं न ही किसी के द्वारा किये गए कार्य पर विश्वास करते हैं। तांत्रिक साधना मूलतः ईश्वर की प्राप्ति का एक मार्ग है।
तंत्र विद्या से शरीर और मन शुद्ध होता है और इसके जरिये ईश्वर से सम्पर्क होता है। यहां एक कन्फ्यूजन हो सकता है कि क्या भक्ति से ईश्वर से ईश्वर से सम्पर्क नहीं होता। ऐसा नहीं है दोनों मार्ग ईश्वर की प्राप्ति कराते हैं लेकिन भक्ति मार्ग में आप अपने आराध्य को कष्ट नहीं देते जबकि तंत्र में किसी बच्चे की तरह हठ करके आप सकाम साधना करते हैं।
उदाहरण के लिए एक कथा है। बहुत पुरानी बात है एक नगर सेठ को कोई संतान नहीं थी। काफी समय बीत गया। किसी ने उसे बाबा तुलसीदास के बारे में बताया। वह तुलसीदास के पास पहुंचा जहां वह राम कथा सुना रहे थे। कथा समाप्ति के बाद उसने तुलसीदास को अपनी पीड़ा बतायी।
बाबा तुलसीदास ने नगरसेठ को अगले दिन आने के लिए कहा नगरसेठ प्रणाम कर चला गया और अगले दिन पुनः नियत समय पर पहुंचा। इस बीच तुलसीदास ने रात में हनुमान जी का आह्वान किया और उनसे प्रश्न किया कि अमुक नगर सेठ आया है, उसके संतान क्यों नहीं हो रही है। हनुमान जी ने कहा राम राम, महाराज आपने किस पापी का नाम ले लिया। उसके तो अगले 7 जन्म में भी संतान नहीं होगी। वह बहुत पापी है। तुलसीदास ने हनुमान जी को कष्ट देने के लिए क्षमा मांगी। और धन्यवाद दिया।
अगले दिन जब नगर सेठ पुनः उनके सम्मुख उपस्थित हुआ तो उन्होंने उससे कहा कि भाई तुम्हारे पूर्व जन्मों के पाप बहुत अधिक हैं, लिहाजा इस जन्म तो क्या, अगले कई जन्म में भी तुम्हें संतान की प्राप्ति का योग नहीं है। नगर सेठ तुलसीदास के मुख से इन वचनों को सुनकर कि हताश और निराश होकर चल दिया।
तुलसीदास के उत्तर से निराश नगर सेठ जब रास्ते में था तो किसी ने उससे कहा कि अरे तुम बनारस जाओ और बाबा कीनाराम से मुलाकात करो वह तुम्हारा संकट जरूर दूर कर देंगे लेकिन वह बहुत क्रोधी है वह चाहे जो करें, या कहें, तुम डरना नहीं और भागना नहीं। डूबते को तिनके का सहारा। नगर सेठ बनारस के लिए चल दिया और जब वह बनारस पहुंच तो बाबा कीनाराम श्मशान में चिमटा गाड़े बैठे हुए थे।
दूर से ही नगर सेठ को आता देखकर उन्होंने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए नगर सेठ कुछ और आगे बढ़ा तो उन्होंने और तेजी से पत्थर मारने शुरू कर दिये। पत्थरों की चोट को झेलता हुआ वह आगे बढ़ा तो उन्होंने गालियां बकने शुरू कर दीं। नगर सेठ फिर भी आगे बढ़ता रहा, जब वह करीब पहुंचा तो उन्होंने अपने पास से चिमटा उठाया और नगर सेठ को पीटना शुरू कर दिया, जब पीटते पीटते थक गए तो बोले बता क्या बात है, क्यों आया है।
नगर सेठ ने अपनी चोटों को सहलाते हुए रोते हुए प्रार्थना की कि महाराज मुझे कोई संतान नहीं है मैं इसलिए आया था, मुझे आशीर्वाद दें कि मुझे संतान हो। उन्होंने कहा ठीक है लड्डू खाएगा नगर सेठ भयभीत था। एक पल उसने सोचा यहां श्मशान में लड्डू कहां फिर उसने डरते डरते कहा जी।
कीनाराम ने चौकी पर थाली से कपड़ा हटाया तो थाली में लड्डू रखे थे। नगर सेठ ने डरते डरते एक लड्डू खाया। उन्होंने कहा और खा। नगर सेठ जितने खा सकता था खाए तो बाबा कीनाराम ने कहा कितने खाए उसने कहा सात। बाबा कीनाराम ने कहा जा तेरे सात पुत्र होंगे।
नगर सेठ बाबा कीनाराम के चरणों में बार-बार गिरकर प्रणाम करते हुए वहां से चल दिया अब अगले साल उसको एक पुत्र की प्राप्ति हुई फिर दूसरे साल, दूसरे तीसरे साल तीसरे... जब नगर सेठ के कई पुत्र हो गए तो वह अपने बच्चों को लेकर पुनः बाबा तुलसीदास के दरबार में पहुंचा।
तुलसीदास ने नगर सेठ को देखा तो उन्होंने पूछा कहो क्या हाल है। नगर सेठ ने कहा आप तो बहुत झूठे हैं। आपने मुझसे कहा था कि इस जन्म तो क्या अगले जन्म में भी पुत्र नहीं होंगे, लेकिन मेरे तो पुत्र हुए। तुलसीदास ने कहा कि तुम कल आना मैं कल इसका जवाब दूंगा। अगले दिन तुलसीदास ने हनुमान जी का फिर आह्वान किया और नाराज होकर कहा कि आप तो बहुत झूठे हैं आपने मुझे झूठा बना दिया आपने कहा था कि अगले सात जन्म तक नगर सेठ को संतान नहीं होगी और उसे तो हुई तो मुझे झूठा क्यों बनाया।
हनुमान जी ने कहा कि महाराज आप भक्त हैं, मैं आपका सेवक। आपकी वाणी भी मिथ्या नहीं होगी लेकिन आप अपने आराध्य को कष्ट नहीं दे सकते।
आपने पूछा मैंने उसका उत्तर दिया यदि आप कहते कि सेठ को पुत्र हो जाए, तो पुत्र हो जाते मैं दे देता। लेकिन बाबा कीनाराम तो कुछ सुनते नहीं हैं। उन्होंने तो पहले ईंट पत्थर मारने शुरू किये फिर चिमटा उठा कर फोड़ दिया। फिर कह दिया सात पुत्र हों। यह देखिए मेरी पीठ के घाव अभी भी नहीं भरे। तो यह फर्क है किसी तांत्रिक और भक्त का। भक्त अपने आराध्य को कष्ट नहीं देता जबकि तांत्रिक अपने आराध्य से हठपूर्वक लेता है।
(इस लेख में लेखक के निजी विचार हैं न्यूजट्रैक से इसका कोई सम्बंध नहीं है)