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Vat Purnima Vrat Niyam: वट सावित्री के क्या है नियम, जानिए कथा और इस दिन किस मंत्र का जाप देगा सौभाग्य

Vat Savitri Purnima Vrat Niyam: ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को वट सावित्री व्रत मनाया जाता है। इस दिन कुछ नियमों का पालन करके आप सौभाग्य और संतान की प्राप्ति कर सकते हैं जानते हैं कैसे

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 3 Jun 2023 2:17 AM IST (Updated on: 3 Jun 2023 1:29 PM IST)
Vat Purnima Vrat Niyam: वट सावित्री के क्या है नियम, जानिए कथा और इस दिन किस मंत्र का जाप देगा सौभाग्य
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Vat Savitri Purnima Vrat Niyam

Vat Savitri Purnima Vrat Niyam: ज्येष्ठ माह की अमावस्या और पूर्णिमा ( Purnima) तिथि में पड़ने वाली दोनों वट सावित्री ( Vat Savitri )की पूजा विधि(Puja Vidhi) और कथा भी समान होती है। इन दोनों व्रतों को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए करती हैं।

वट सावित्री व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है। इस बार वट सावित्री व्रत 3 जून पूर्णिमा के दिन है।

अमावस्या पर पड़ने वाली वट सावित्री का व्रत विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार ,मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में किया जाता है। वहीं वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत जैसे क्षेत्रों में प्रचलित है। दोनों ही व्रतों में बरगद के पेड़ की पूजा करने का विधान है।

वट सावित्री पूर्णिमा पर करें ये मंत्र जाप

सावित्री व्रत के समय पूजा के पश्चात प पान, सिन्दूर तथा कुमकुम से सौभाग्यवती महिलाओं के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं। पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।

अब निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें-

  • अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
  • पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

त्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।

इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें-

  • यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
  • तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।

अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें -

  • मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं
  • सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।

फिर यम मंत्र से अमर सुहाग की कामना करेंगे तो अच्छा रहेगा।

  • ॐ सूर्य पुत्राय विद्महे | महाकालाय धीमहि | तन्नो यमः प्रचोदयात ||

इन मंत्रों और इस विधि से पूजा करने से व्रत का दोगुना फल मिलता है। परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

वट सावित्री व्रत के दिन राशि के अनुसार पहने कपड़े

  • वट सावित्री व्रत के दिन मेष, वृश्चिक और मकर राशि की महिलाएं लाल रंग साड़ी और लाल रंग के लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के दौरान करें।
  • वट सावित्री व्रत के दिन वृष , कन्या और मीन राशि की महिलाएं हल्के रंग या हल्का गुलाबी रंग की साड़ी और न्यूड लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के समय करें।
  • वट सावित्री व्रत के दिन मिथुन, सिंह और धनु राशि की महिलाएं पीले रंग की साड़ी और हल्का गुलाबी लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के समय करें।
  • वट सावित्री व्रत के दिन कर्क, तुला और कुंभ राशि की महिलाएं नीले रंग की साड़ी और हल्का बैंगनी लिपस्टिक का इस्तेमाल पूजा के समय करें।

वट सावित्री व्रत कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं थी। इसी प्रयोजन से वो संतान प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण करते हुए रोज करीब एक लाख आहुतियां देते थे। 18 वर्षों तक ऐसा करने के बाद उन्हें एक तेजस्वी कन्या प्राप्त हुई। जिसका नाम सावित्री रखा गया। राजा की बेटी सावित्री अत्यंत सुंदर थी, ऐसे में उसकी ही तरह कोई योग्य वर नहीं मिल पाने के चलते राजा दुखी थे। उन्होंने अपनी बेटी सावित्री को स्वयं वर तलाशने के लिए भेजा। पिता के कहे अनुसार सावित्री तपोवन में भटकने लगीं। वहां साल्व देश के राजा द्ययुमत्सेन रहते थे जिनका राज्य छीन लिया गया था। उन्हीं के पुत्र सत्यवान को सावित्री ने अपने पति के रूप में चुना।

ऋषिराज नारद को जब सावित्री और सत्यवान के विवाह का पता चला तो वो सावित्री के पिता के पास पहुंचे और उनसे कहने लगे कि ये क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान की आयु बहुत छोटी है। बल्कि एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। ये सुनकर सावित्री के पिता अश्वपति परेशान हो गए। सावित्री ने पिता ने सावित्री को नारद मुनी द्वारा बताई गई बात बता दी और उनसे कहा कि तुम किसी और को अपना जीवन साथी चुन लो।

सावित्री ने अपने पिता से कहा कि पिता जी आर्य कन्याएं अपने पति का वरण केवल एक ही बात करती हैं। सावित्री बोलीं मैं सत्यावन से ही विवाह करूंगी। पुत्री की बात मानकर राजा अश्वपति ने उनका विवाह कर दिया। सावित्री ससुराल पहुंचकर अपने पति और सास-ससुर की सेवा में लग गईं। समय बीतता चला गया और सत्यवान की मृत्यु का समय करीब आने लगा। जैसे ही सत्यवान की मृत्यु का समय नजदीक आ गया वैसे ही सावित्री ने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा बताई गई तिथि पर पितरों की पूजा की।

हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी जंगल में लकड़ियां काटने चले गए। तभी अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। सावित्री विधि का विधान समझ गईं थी। उन्होंने सत्यवान के सिर को अपनी गोद में रखा। तभी अचानक से यमराज वहां आ गए और वो अपने साथ सावित्री के पति सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को बहुत समझाया लेकिन सावित्री नहीं मानी। सावित्री की निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें वरदान मांगने को कहा।

सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आंखों की रोशनी प्रदान करें। यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा लेकिन अब तुम लौट जाओ। लेकिन फिर भी सावित्री ने यमराज जी का पीछा नहीं छोड़ा। यमराज ने उनसें फिर से वर मांगने को कहा। फिर सावित्री ने कहा कि मेरे ससुर का राज्य छिन गया है वो उन्हें वापस दिला दें।

यमराज ने ये वरदान भी सावित्री को दे दिया। लेकिन इसके बाद भी सावित्री यमराज जी और अपने पति सत्यवान के पीछे चलती रहीं। फिर यमराज ने तीसरा वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर सावित्री ने अपने लिए संतान और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने ये वरदान भी सावित्री को दे दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि हे प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है। ऐसा सुनकर यमराज जी ने सत्यवान के प्राण छोड़ने दिए। फिर सावित्री उसी वट वृक्ष के नीचे आ गईं जहां उनके पति का मृत शरीर पड़ा था।

यमराज द्वारा दिए गए वरदान के कारण सत्यवान जीवंत हो गए और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। इस प्रकार से सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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