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बंगाल में बंपर वोटिंग का क्या है संकेत, आखिर किस दल को होगा सियासी फायदा
पहले चरण में हुए बंपर मतदान को जरूर किसी बड़े खेल का संकेत माना जा रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि मतदाता अपना वोट डालने के लिए झूमकर बाहर निकले और अब यह देखने वाली बात होगी कि बंपर वोटिंग का सियासी फायदा किस दल को होता है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में पहले चरण वाली 30 विधानसभा सीटों पर शनिवार को हुए बंपर मतदान का सियासी मतलब तलाशा जाने लगा है। छिटपुट झड़पों के बीच पांच जिलों की 30 विधानसभा सीटों पर शनिवार को करीब 80 फ़ीसदी मतदान हुआ है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बार के चुनाव में खेला होबे के जुमले का खूब इस्तेमाल कर रही हैं। भाजपा की ओर से भी खेला शेष जुमले से ममता को जवाब दिया जा रहा है।
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पहले चरण में हुए बंपर मतदान को जरूर किसी बड़े खेल का संकेत माना जा रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि मतदाता अपना वोट डालने के लिए झूमकर बाहर निकले और अब यह देखने वाली बात होगी कि बंपर वोटिंग का सियासी फायदा किस दल को होता है।
पहले भी होता रहा है भारी मतदान
elections (PC: social media)
वैसे बंपर मतदान होना बंगाल के लिए कोई नई बात नहीं है। देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा पश्चिम बंगाल के मतदाता वोट देने के लिए पहले भी भारी संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचाते रहे हैं। आमतौर पर बंपर वोटिंग को सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का संकेत माना जाता रहा है मगर बंगाल के मतदाताओं का इससे अलग मिजाज भी दिखता रहा है। इसलिए किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना आसान काम नहीं है।
भारी मतदान पर भी वाममोर्चा ने बचाई सत्ता
राज्य में विधानसभा के पिछले चुनावों को देखकर समझा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल के मतदाताओं का मिजाज समझना कितना कठिन काम है। 1996 के विधानसभा चुनाव में 82.91 फ़ीसदी मतदान हुआ था मगर चुनावी नतीजा सत्तारूढ़ वामदलों के पक्ष में ही आया था। 2001 के विधानसभा चुनाव में 75 फ़ीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई थी मगर सत्तारूढ़ वाममोर्चा चुनाव जीतने में फिर कामयाब रहा था।
2006 के विधानसभा चुनाव में करीब 82 फ़ीसदी मतदान हुआ था। इस चुनाव में ममता बनर्जी ने वाममोर्चा को सत्ता से बेदखल करने की काफी कोशिश की मगर मतदाताओं का रुझान वाममोर्चा के पक्ष में ही रहा।
2011 के चुनाव में ममता को फायदा
2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी वाम मोर्चा से सत्ता छीनने में कामयाब हुई थी। उस विधानसभा चुनाव में 84.46 फीसदी मतदान हुआ था और मतदाताओं का फैसला ममता बनर्जी के पक्ष में रहा। पांच साल बाद 2016 के विधानसभा चुनाव में भी बंपर वोटिंग हुई थी।
उस चुनाव में 82.96 फ़ीसदी मतदान हुआ था मगर फैसला सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के ही पक्ष में रहा। उस चुनाव में भाजपा तो ज्यादा ताकतवर नहीं थी मगर वाममोर्चा कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बावजूद ममता को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब नहीं हो सका था।
इस बार बदली हुई हैं सियासी स्थितियां
वैसे इस बार के विधानसभा चुनाव में सियासी स्थितियां पहले से पूरी तरह बदल गई है। इस बार भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस की तगड़ी घेरेबंदी कर रखी है। पार्टी ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा की ओर से किए जा रहे तीखे हमलों के कारण मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बेचैन दिख रही हैं।
हाल के दिनों में उनके कई महत्वपूर्ण नेता बगावत करके भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम के संग्राम में कड़े मुकाबले में फंसी हुई है और उन्हें उनके पूर्व सहयोगी शुभेंदु अधिकारी भाजपा उम्मीदवार के रूप में कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
elections (PC: social media)
मतदान के बाद टीएमसी की बेचैनी
वैसे कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मतदान के दौरान टीएमसी की बेचैनी भी इस बात का बड़ा संकेत है कि किसका खेल चुनाव में बिगड़ा है। मतदान के बाद टीएमसी ने भाजपा को घेरते हुए चुनाव आयोग पर बड़ा हमला बोला।
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तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने आरोप लगाया कि अब यह साफ हो चुका है कि चुनाव आयोग को भाजपा ही चला रही है। दोनों दलों के बीच ऑडियो वार भी शुरू हो चुका है और ऑडियो क्लिप के जरिए तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने एक-दूसरे पर हमला बोला है। हालांकि पहले चरण के मतदान के बाद दोनों दलों की ओर से बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं मगर यह देखने वाली बात होगी कि बंपर मतदान से किसका खेल बना है और किसका खेल बिगड़ा है।
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