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Anand Mohan News: रिहा हुए आनंद मोहन, लेकिन बात दूर तक जाएगी

Anand Mohan Singh Kaun Hai: इस प्रकरण में एक बात सामने आती है कि आनंद मोहन का रसूख किस तरह बिहार में रहा है और 2024 के लोकसभा चुनाव में यही रसूख बिहार की जातिवादी राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाएगा।

Neel Mani Lal
Published on: 27 April 2023 3:14 PM IST
Anand Mohan News: रिहा हुए आनंद मोहन, लेकिन बात दूर तक जाएगी
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बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन (फोटों: सोशल मीडिया)

Anand Mohan Singh Kaun Hai: एक जिलाधिकारी की हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सज़ा काट रहे विधायक आनंद मोहन सिंह को अंततः सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया है। बिहार के 'सुशासन बाबू' नीतीश कुमार की सरकार के समय में ही आनंद मोहन जेल गए थे और समय ने करवट ऐसी बदली की उन्हीं नीतीश की सरकार ने उनको छुड़वा दिया है।

इस प्रकरण में एक बात सामने आती है कि आनंद मोहन का रसूख किस तरह बिहार में रहा है और 2024 के लोकसभा चुनाव में यही रसूख बिहार की जातिवादी राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाएगा। तभी महागठबंधन की पार्टियां आनंद मोहन की रिहाई पर चुप्पी साधे हैं। यही नहीं, विपक्षी दल भी रिहाई का विरोध नहीं कर रहे हैं।

कौन हैं आनंद मोहन

बिहार के सहरसा ज़िले के पचगछिया गाँव के रहने वाले आनंद मोहन जब पढ़ रहे थे तभी 1974 के जेपी आंदोलन ने उनको खींच लिया। उसी दौरान आनंद मोहन ने राजपूतों के एक बड़े चेहरे के तौर पर पहचान बना ली थी। 16 साल बाद 1990 में आनंद मोहन चुनावी मैदान में उतरे और जनता दल के टिकट पर महिषी सीट से विधानसभा का चुनाव जीता। इन 16 वर्षों में आनंद मोहन की छवि कोसी नदी के इलाक़े में एक बाहुबली नेता के तौर पर बन चुकी थी। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का भी क़रीबी माना जाता था।

अलग पार्टी बनाई

1990 के बाद के वर्ष राजनीतिक उथल-पुथल के थे। राम मंदिर आंदोलन से लेकर मंडल आयोग की सिफ़ारिशों और आरक्षण को लेकर हंगामा बना हुआ था। आनंद मोहन आरक्षण विरोधी माने जाते थे सो उन्होंने 1993 में जनता दल को नमस्ते कर दिया और अपनी खुद की 'बिहार पीपुल्स पार्टी' बना ली।

छोटन शुक्ला हत्याकांड

1990 के दशक की शुरुआत में बिहार में आरक्षण को लेकर बड़ी राजनीतिक गोलबंदी हो रही थी। पुराने राजनीतिक दिग्गजों को चुनौती देने के लिए उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक तरह तरह के बैकग्राउंड वाले नेता कूद पड़े थे। इसी में एक नाम था मुज़फ़्फ़रपुर के कौशलेंद्र कुमार शुक्ल उर्फ छोटन शुक्ला का जो खुद एक बाहुबली भूमिहार नेता और आनंद मोहन का क़रीबी था।

आनंद मोहन की पार्टी से वो केसरिया सीट से चुनाव भी लड़ने वाला था। छोटन शुक्ला लालगंज से जद (यू) के पूर्व विधायक विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला का भाई था। चार दिसंबर 1994 की रात केसरिया से लौट रहे छोटन शुक्ला की कार को रोक कर अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी व उनके चार समर्थकों की हत्या कर दी गई थी। बताया जाता है कि हमलावरों ने एके-47 से करीब 100 राउंड की फायरिंग की थी।

इस हत्याकांड में नाम आया लालू प्रसाद के करीबी बृज बिहारी प्रसाद का। बृज बिहारी सरकार में मंत्री भी थे. छोटन की हत्या के बाद पूरे उत्तर बिहार में कर्फ्यू लगा दिया गया था। छोटन शुक्ला के भाई भुटकुन ने बदला लेने की कसम खाई थी।बहरहाल, हत्या किसने की, पुलिस आज तक पता नहीं लगा पाई और मामले को बन्द कर दिया गया है। कहा जाता है कि छोटन की हत्या का बदला लेने के लिए श्रीप्रकाश शुक्ला की एंट्री हुई थी।

डीएम जी कृष्णैया की हत्या

छोटन शुक्ला की हत्या के बाद मुजफ्फरपुर में उनके समर्थक जुलूस निकालकर शव का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। वह तारीख़ थी 5 दिसंबर 1994। वो ज़माना मोबाइल या इंटरनेट का नहीं था। छोटन शुक्ला की हत्या और उसके अंतिम संस्कार की भीड़ से बेखबर गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया नेशनल हाईवे से गोपालगंज लौट रहे थे।

कृष्णैया हाजीपुर में चुनाव से संबंधित एक मीटिंग में शामिल होने आए थे। कृष्णैया का काफिला मुजफ्फरपुर के खबरा क्षेत्र में निकल रहे जुलूस में फंस गया। भीड़ ने उनकी सरकारी अम्बेसडर कार को घेर लिया। उनके बॉडीगार्ड को खींच कर बाहर निकाल लिया गया। फिर कृष्णैया को भीड़ ने पत्थरों से पीट पीट कर घायल किया और फिर उनके सिर में गोलियां मार दी गईं। कृष्णैया वहीं मार दिए गए।

इस हत्याकांड में पुलिस चार्जशीट में आनंद मोहन, लवली आनंद, भुटकुन शुक्ला, मुन्ना शुक्ला आदि को आरोपी बनाया गया। भीड़ को उकसाने का आरोप आनंद मोहन पर लगा और उन्हें ट्रायल कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई। साल 2008 में हाई कोर्ट ने उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की अपील की लेकिन उसे खारिज कर दिया गया।

रिहाई की राजनीति बदले गए नियम

आनंद मोहन की रिहाई की उम्मीद तब से की जा रही थी जब बिहार गृह विभाग ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार जेल मैनुअल 2012 के नियम 481 (1) (ए) को हटाने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। पहले नियम यह था कि किसी ड्यूटी पर तैनात किसी लोक सेवक की हत्या के दोषी व्यक्ति की समय पूर्व रिहाई नहीं होगी। अब नया बदलाव करके ये नियम हटा दिया गया है।

साफ है कि आनंद मोहन को रिहा करने का कदम नीतीश कुमार सरकार द्वारा राजपूत, भूमिहार समेत अगड़ी जाति के मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है। आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई का विरोध भी खूब हो रहा है। रिहाई के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दलित संगठन भीम आर्मी भारत एकता मिशन के राज्य प्रभारी अमर ज्योति ने दायर की है। अब देखना है कि ये रिहाई मामला कहां तक जाता है।



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