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बिहार विधानसभा में दागियों-अमीरों की भरमार, 68 फीसदी MLA के खिलाफ मामले
बिहार चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि प्रदेश की राजनीति में दबंगों का रुतबा बढ़ता ही जा रहा है। नए सदन में दागियों-अमीरों की संख्या में इजाफा हुआ है। चुनाव के बाद की हालत चुनाव के पहले से बेहतर नहीं हुई है और ये साबित हो गया है किसी भी पार्टी को दागियों से कोई परहेज नहीं है।
पटना: बिहार चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि प्रदेश की राजनीति में दबंगों का रुतबा बढ़ता ही जा रहा है। नए सदन में दागियों-अमीरों की संख्या में इजाफा हुआ है। चुनाव के बाद की हालत चुनाव के पहले से बेहतर नहीं हुई है और ये साबित हो गया है किसी भी पार्टी को दागियों से कोई परहेज नहीं है। दागियों-अपराधियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भी किसी पार्टी को विचलित नहीं कर सका है।
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पढ़े लिखों की संख्या बढ़ी
बिहार के मतदाता सिर्फ इस बात पर सुकून कर सकते हैं कि सदन में पढ़े-लिखे सदस्यों की संख्या एक हद तक बढ़ी है। पिछली विधानसभा में जहां 138 सदस्य स्नातक थे वहीं इस बार 2020 में 149 ऐसे विधायक चुने गए हैं।
68 फीसदी विधायकों के खिलाफ मामले
चुनाव परिणामों के विश्लेषण पता चलता है कि नई विधानसभा के 68 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ अदालतों में आपराधिक मामले दर्ज हैं। नई विधानसभा में ऐसे सदस्यों की संख्या में दस फीसदी का इजाफा हुआ है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 243 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के एक और राजद के एक सदस्य को छोड़ चुने गए 241 विधायकों के हलफनामे के अनुसार 163 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें 51 प्रतिशत यानी करीब 123 पर हत्या, अपहरण, हत्या के प्रयास या महिलाओं के प्रति अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं।
इनमें 19 पर हत्या, 31 पर हत्या की कोशिश तथा आठ पर महिलाओं के प्रति अपराध का मुकदमा लंबित है। पिछले चुनाव यानी 2015 में ऐसे सदस्यों की संख्या 143 यानी 40 फीसदी, 2010 में 133 तथा 2005 में 100 थी। 2020 की स्थिति की 2015 से तुलना में इनकी संख्या में 11 प्रतिशत का इजाफा यह बताने को काफी है कि राजनीति में ऐसे तत्वों की धमक बढ़ती ही जा रही है।
राजद सबसे आगे
दागी विधायकों की दलगत उपस्थिति को देखें तो राजद इसमें सबसे आगे है। इसके चुने गए सदस्यों में 73 फीसदी यानी 44 ऐसे ही दागी विधायक हैं। वहीं भाजपा के 47, जदयू के 20, कांग्रेस के 10 तथा सीपीआई (एमएल) के आठ चुने गए सदस्यों का क्रिमिनल रिकॉर्ड है। असदुद्दीन ओवैसी की एएमआइएमआइएम पार्टी के चुने गए सभी पांच विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। नए चुने गए विधायकों में 48 हथियारों के शौकीन हैं। 2015 की विधानसभा में 63 ऐसे सदस्य थे जिनके पास हथियारों के लाइसेंस थे। इस बार चुने गए विधायकों में असलहों के सबसे ज्यादा शौकीन भाजपा के 21 विधायक हैं जबकि राजद में इनकी संख्या 15 और जदयू में सात है।
बढ़ गए रईस
अगर रईसों की बात करें तो इनकी संख्या में भी खासी बढ़ोतरी हुई है। सोलहवीं विधानसभा में 162 यानी 67 प्रतिशत ऐसे सदस्य थे जिनकी संपत्ति एक करोड़ से अधिक थी। 2010 में 44 तो 2005 में मात्र आठ विधायक ही करोड़पति थे। जबकि इस बार इनकी संख्या 194 यानी करीब 81 फीसदी हो गई। भाजपा इसमें आगे है। भाजपा के सर्वाधिक 89, जदयू के 88, राजद के 87 तथा कांग्रेस के 74 प्रतिशत सदस्यों की संपत्ति एक करोड़ या उससे अधिक है।
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भाजपा के विजयी हुए 74 सदस्यों में 66, जदयू के 43 में 37, राजद के 75 में 62 व कांग्रेस के 19 में 15 करोड़पति हैं। विधायकों की औसत संपत्ति भी इस बार बढक़र 4.32 करोड़ हो गई है। इस बार राजद के टिकट पर पटना के मोकामा से चुने गए अनंत सिंह ऐसे माननीय हैं जो सबसे अधिक दागी और सबसे बड़े करोड़पति हैं। इनके खिलाफ हत्या, अपहरण व आर्म्स एक्ट के 38 मामले दर्ज हैं। वहीं ये 68 करोड़ से अधिक की संपत्ति के स्वामी हैं।
महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी
विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। इस बार पार्टियों ने महिलाओं को टिकट देने में पहले से ज्यादा उदारता दिखाई है। करीब पंद्रह दलों ने 370 महिलाओं को मैदान में उतारा। 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में 307 मैदान में थीं जिनमें 34 विधायक बनने में कामयाब रहीं। वहीं 2015 में चुनाव लड़ रहीं 273 महिलाओं में से 28 को जीत हासिल हुई। 2020 के विधानसभा चुनाव में 25 महिलाएं ही विजयी हो सकीं। इस बार महिलाओं को सबसे ज्यादा टिकट जदयू ने दिया था। जदयू ने 22, भाजपा ने 13, राजद ने 16, कांग्रेस ने सात व लोजपा ने सर्वाधिक 23 महिलाओं को मैदान में उतारा था। इस बार के चुनाव में जदयू की आठ, भाजपा की छह, राजद की सात, कांग्रेस की दो तथा वीआइपी व हम की एक-एक महिला उम्मीदवार ही कामयाब हो सकीं।
बढ़ गए बागी
इस साल के विधानसभा चुनाव में कई पार्टियों ने नए चेहरे को तवज्जो दी। यही वजह रही कि इस बार बागियों की संख्या में खासा इजाफा हो गया। कमोबेश सभी पार्टियों को बागियों का सामना करना पड़ा और इन्हीं बागियों को तवज्जो दे लोजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और यह भाजपा व जदयू के लिए नुकसानदेह भी साबित हुआ।
नए चेहरे
इस बार 95 ऐसे चेहरे हैं जो पहली बार विधानसभा की देहरी पर कदम रखेंगे। इनमें सर्वाधिक 35 सदस्य राजद के हैं। राजद ने अपने 144 प्रत्याशियों में 63 नए लोगों को टिकट दिया था। इसी तरह जदयू के 12, भाकपा-माले के आठ व भाजपा के 22 नए चेहरे विधानसभा में नजर आएंगे। इनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने दिग्गजों को पटखनी दी। नई विधानसभा में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे माननीय नजर आएंगे। पिछले परिणामों को देखें तो 2005 में जहां 110 शिक्षित विधानसभा तक पहुंचे थे तो वहीं 2020 में ऐसे लोगों की संख्या 149 हो गई है। इस बार 22 पीएचडी, तीन डॉक्टर, तीन एमबीए, तीन लॉ डिग्रीधारी तथा 76 स्नातक विधानसभा के लिए चुने गए। पीएचडी धारकों में दीघा (पटना) से भाजपा के संजीव चौरसिया, फतुहा (पटना) से राजद के रामानंद यादव व पालीगंज (पटना) विधानसभा क्षेत्र से भाकपा-माले के संदीप सौरभ शामिल हैं।
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आयु के हिसाब से देखें तो पिछली बार जहां 49 विधायक 61 से 70 वर्ष की आयु के थे वहीं इस बार यह संख्या बढ़कर 58 हो गई है। 40 से 60 आयु वर्ग के विधायकों की संख्या 61.72 प्रतिशत है।
नीलमणि लाल