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आरके श्रीवास्तव ने देशवासियों को दी दिवाली की शुभकामनाए, युवाओं को दिया ये संदेश

लक्ष्मी ने देवताओं की बात सुन तुरंत धरती पर जाने की तैयारी शुरू कर दी। भेष बदल कर वह धरती पर गईं। दीवापली को लेकर हर तरफ बाजार और दुकानें सजी थीं।

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Published on: 14 Nov 2020 6:43 AM GMT
आरके श्रीवास्तव ने देशवासियों को दी दिवाली की शुभकामनाए, युवाओं को दिया ये संदेश
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आरके श्रीवास्तव ने देशवासियों को दी दिवाली की शुभकामनाए, युवाओं को दिया ये संदेश (PC: Social media)

नई दिल्ली: सिर्फ 1 रूपया गुरू दक्षिणा लेकर 540 गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर बना चुके बिहार के मैथेमैटिक्स गुरू फेम आरके श्रीवास्तव ने देश-वासियो को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ दिया।आज दीपावली के दिन बाल दिवस भी है। आरके श्रीवास्तव ने युवायो को संदेश दिया की सिर्फ मेहनत करते रहे, सबकुछ मिलेगा जीवन में क्युकी जितने वाले छोङते नही, छोड़ने वाले जीतते नही।

दीपावली के दिन एक बार देवी देवताओं में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई की उनमें सर्वोच्च कौन है, धरती पर इंसान सबसे ज्यादा किसकी पूजा करता है। हर कोई मानव जीवन के लिए खुद के बड़ा होने का तर्क दे रहा था। इस बहस के दौरान लक्ष्मी एक कोने में बैठी मुस्करा रहीं थीं। देवी देवताओं ने उनसे मुस्कराने का कारण पूछा। लक्ष्मी ने कहा कि आप लोग जितनी भी बातें कर लें, चाहे जो तर्क दे लें पर सच यह है कि इंसानों की दुनिया में सबसे ज्यादा पूछ मेरी ही होती है, हर कोई मेरी पूजा करता है। कुछ देवताओं ने लक्ष्मी की बात को सुन कर कहा कि समय काफी बदल चुका है, आप धरती पर जाकर देखो तो आपको सही बात का पता चलेगा।

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लक्ष्मी ने देवताओं की बात सुन तुरंत धरती पर जाने की तैयारी शुरू कर दी

लक्ष्मी ने देवताओं की बात सुन तुरंत धरती पर जाने की तैयारी शुरू कर दी। भेष बदल कर वह धरती पर गईं। दीवापली को लेकर हर तरफ बाजार और दुकानें सजी थीं। सड़क किनारे भी दुकानदार मिट्टी के दीये, खिलौने बेच रहे थे। लक्ष्मी उनमें से एक दुकानदार के पास गईं जो देवी देवताओं की प्रतिमा बेच रहा था। लक्ष्मी ने दुर्गा की मिट्टी से बनी प्रतिमा को उठा कर उसकी कीमत पूछी, दुकानदार ने 100 रूपए बताई। फिर लक्ष्मी ने पास रखी सरस्वती की प्रतिमा की कीमत पूछी तो दुकानदार ने उसकी भी कीमत 100 रूपए ही बताई। लक्ष्मी मन में यह सोचकर मुस्कुराने लगीं कि दोनों प्रतिमाओं की कीमत जब इतनी कम है तो उनकी धरती पर पूछ भी उतनी ही कम होगी।

दुकानदार ने कहा मेम साहब हमने इस दिवाली एक ऑफर रखा है

फिर कुछ गर्व भरे भाव से लक्ष्मी ने खुद की मिट्टी से बनी प्रतिमा को उठाया और दुकानदार से उसकी कीमत पूछी। पर दुकानदार के जवाब को सुनकर लक्ष्मी एक तरह से निरुत्तर हो गईं। दुकानदार ने कहा मेम साहब हमने इस दिवाली एक ऑफर रखा है, जो व्यक्ति दुर्गा और सरस्वती दोनों की प्रतिमा खरीदेगा उसे लक्ष्मी की प्रतिमा मुफ्त में दी जाएगी। इस कहानी का मकसद बच्चों को यह सीख देना होता है कि पैसा जीवन में बेशक बहुत जरूरी है पर सबकुछ नहीं होता। हमे पैसे को अपनी प्राथमिकता नहीं बनने देना चाहिए, सिर्फ पैसे के पीछे नहीं भागना चाहिए। अगर शक्ति रुपी दुर्गा और ज्ञान रुपी सरस्वती का आशीर्वाद साथ हो तो पैसा हासिल हो ही जाएगा।

हमें अपनी पढ़ाई, अपनी शिक्षा का मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं होने देना चाहिए । शिक्षा ऐसा होना चाहिये जो रास्ट्र के काम आये। आपका योगदान विश्व कल्याण में जरूर हो। जो व्यक्ति सिर्फ पैसे के पीछे भागता है उसे ज्यादातर पैसा हासिल नहीं हो पाता। ज्ञान के पीछे भागें तो सफलता मिलेगी और पैसा भी। मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं अगर आज आप ज्ञान के लिए त्याग कर रहें हैं, संघर्ष कर रहे हैं, तो आने वाले समय में आपको इसकी कीमत जरूर मिलेगी।

आपने जितना सोचा हो उससे भी ज्यादा पैसा हासिल हो जाए

हो सकता है आपने जितना सोचा हो उससे भी ज्यादा पैसा हासिल हो जाए। यह सही है कि बिना धन के कुछ संभव नहीं पर कभी भी पैसे के पीछे भागें नहीं। ज्ञान अर्जित कर पैसा हासिल करें । ज्ञान अर्जित करने के दौरान कई बार संघर्ष करना पड़ सकता है पर इसका परिणाम हमेशा आपकी सफलता के रूप में मिलेगा। याद रखें दूसरों के धन को देखकर कभी खुद को विचलित नहीं होने दें। ज्ञान की भूख के साथ आगे बढ़ते रहें आप ज्ञान के साथ धन भी हासिल कर लेंगे। अपने जीवन में सबसे ज्यादा सरोकार ज्ञान से रखें बाकी सब खुद आपके पास आता जाएगा। इस बात का ख्याल रखें की ज्ञान से जो धन आपने हासिल किया उसका कुछ हिस्सा चाहे किसी भी रूप में समाज को भी दें।

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समाज के बदलने से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है, दुनिया को बदलने से पहले खुद को ठीक करना ज़रूरी है। यह बिलकुल ऐसा ही है कि हमें जब ट्रैफिक पुलिस वाला पकड़ता है और चालान करने लगता है तो हम सौ रुपए देकर अपनी जान छुड़ाते हैं। ऐसे में हम क्या करते हैं? चूंकि चालान पांच सौ रुपए का होता, इसलिए हमने चार सौ रुपए बचा लिए। ज़ाहिर है हम उस ट्रैफिक वाले से चार गुणा ज्यादा बड़े चोर हैं। ऐसे में हम किस समाज के बदलाव के बात करते हैं। ''इसलिए समाज को तभी बदला जा सकता है जब हमारी मानसिकता बदलेगी।''

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