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मिल मालिकों को राहत देने की तैयारी, चीनी के दामों में हो सकती है इतने की बढ़ोतरी

Newstrack
Published on: 11 Aug 2020 7:02 AM GMT
मिल मालिकों को राहत देने की तैयारी, चीनी के दामों में हो सकती है इतने की बढ़ोतरी
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मिल पर गन्ना बेचने जाते हुए किसान की फ़ाइल फोटो

नई दिल्ली: देश में बढ़ती महंगाई की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही है। रोजमर्रा के दिनों में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। अब खबर आ रही है कि सरकार जल्द ही चीनी की कीमतें बढ़ा सकती है। बताया जा रहा है कि ये सब चीनी मिल मालिकों को राहत देने के लिए किया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीनी मिलों को सरकार से राहत मिलने का लंबा इंतजार जल्द खत्म होने वाला है। गन्ने की एफआरपी और चीनी की एमएसपी बढ़ाने का प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा जा चुका है।

मिल पर गन्ना बेचने जाते हुए किसान की फ़ाइल फोटो मिल पर गन्ना बेचने जाते हुए किसान की फ़ाइल फोटो

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सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार चीनी की एमएसपी यानी मिनिमम सेल्स प्राइस 31 रुपये से बढ़ाकर 33 रुपये प्रति किलोग्राम करने का प्रस्ताव है। जबकि एफआरपी यानी Fair and Remunerative Price 275 से बढ़ाकर 285 रुपये प्रति क्विंटल करने का प्रस्ताव रखा गया है।

बताया जा रहा है कि इसके लिए सीसीईए से भी जल्द मंजूरी प्रदान की जाएगी। अगर एमएसपी बढ़ाया जाता है तो इससे मिल मालिकों को तकरीबन 2,200 करोड़ रुपये का मुनाफा होगा।

सरकार ने जिस तरह के संकेत दिए हैं उससे साफ है कि अगले सीजन में चीनी मिलों के 1 रुपये प्रति किलो फायदा होने का अनुमान है। खबरें तो ऐसी भी मीडिया में आई है कि चानी सेक्टर के लिए सॉफ्ट लोन और एक्सपोर्ट सब्सिडी पर भी जल्द ही सरकार कोई फैसला लेगी।

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चीनी मिल की फ़ाइल फोटो चीनी मिल की फ़ाइल फोटो

गन्ना किसानों के 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया

जानकारों के मुताबिक चीनी उत्पादन वर्ष की गणना हर साल 1 अक्टूबर से अगले साल 30 सितंबर के बीच में की जाती है। अगर State Advised Price ( SAP) के संदर्भ में गौर करें तो चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 22 हजार 79 करोड़ रुपये हो गया है।

जबकि केंद्र द्वारा घोषित Fair & Remunerative Price ( FRP ) के लिहाज़ से ये बक़ाया 17 हजार 683 करोड़ रुपये का बनता है।

मंत्रालय का कहना है कि पिछले साल मई महीने तक बक़ाया 28 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। एफआरपी गन्ना खरीद की वो दर है जो केंद्र सरकार निर्धारित करती है जबकि राज्य सरकारें उस दर में अपनी तरफ से जो अतिरिक्त दाम लगा देती हैं, उसे एसएपी कहा जाता है।

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