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GDP: सुस्त इकॉनमी ने बढ़ाई चिंता
जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत और निवेश पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। निवेश में विकास दर भी गिरकर एक फीसदी पर आ गई है। और इसकी वृद्धि दर पिछली 19 तिमाही के निचले स्तर पर है।
नई दिल्ली: हाल ही में जीडीपी के आंकड़े जारी किए गए, जो बहुत उत्साहजनक कतई नहीं हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 4.5 फीसदी पर पहुंच चुकी है।
सरकार का तर्क है कि विकास की धीमी रफ्तार का कारण वैश्विक मंदी है। सरकार इसके लिए चीन-अमेरिका बाजार युद्ध को भी जिम्मेदार मानती है। लेकिन खुद चीन की इसी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में वृद्धि दर छह फीसदी है। बांग्लादेश में भी जीडीपी विकास दर सात फीसदी बनी हुई है। सो भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार के कारण बाहरी न होकर, बल्कि आंतरिक ही हैं। जिस तरह से देश में आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट जारी है, उससे देश के लिए पांच ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनने के संकल्प को पूरा करने का लक्ष्य भी मुश्किल होता जा रहा है। वर्ष 2024-25 तक ये लक्ष्य पाने के लिए कम से कम आठ फीसदी विकास दर जरूरी है। अगर जीडीपी विकास दर 4.5 फीसदी रही तो इस लक्ष्य को पाने में कम से कम 14 वर्ष लगेंगे।
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जब लोग खर्च नहीं करेंगे, तो निजी खपत नहीं बढ़ पाएगी
जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत और निवेश पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। निवेश में विकास दर भी गिरकर एक फीसदी पर आ गई है। और इसकी वृद्धि दर पिछली 19 तिमाही के निचले स्तर पर है। जब तक अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं बढ़ेगा, तब तक नौकरियां नहीं पैदा होंगी। जब तक नौकरियां पैदा नहीं होंगी, तब तक लोगों की आय में वृद्धि नहीं होगी, और तब तक लोग खर्च नहीं करेंगे। जब लोग खर्च नहीं करेंगे, तो निजी खपत नहीं बढ़ पाएगी।
किसी भी देश की इकॉनमी की सेहत के लिए निर्यात की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। निर्यात जीडीपी के चार प्रमुख घटकों में से एक है। भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय घरेलू मांग की कमी की समस्या से जूझ रही है, ऐसे में निर्यात का सहारा हïोना चाहिए लेकिन भारतीय निर्यात की रफ्तार सुस्त पड़ चुकी है। निर्यात में लगातार तीसरे माह गिरावट आई है। जहां सितंबर में निर्यात में 6.57 फीसदी की गिरावट आई वहीं अक्टूबर में ये 1.1 फीसदी घटी। मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में 2014 से 2019 के दौरान कुल औसत निर्यात वृद्धि दर चार फीसदी रही। वर्ष 2013-14 में निर्यात की वार्षिक वृद्धि दर 17 फीसदी थी, जो 2014-15 और 2015-16 में घटकर क्रमश: माइनस एक प्रतिशत और माइनस नौ प्रतिशत हो गई।
कोई लाभ नहीं
सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने कई बार रेपो रेट में कटौती कर ब्याज दरों को घटाया। लेकिन इन प्रयासों का कोई विशेष नतीजा नहीं दिख रहा है। कॉरपोरेट टैक्स में कमी का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। उपभोक्ता की क्रय क्षमता में कमी के कारण मांग में कमी आ रही है जिससे कंपनियों को उत्पादन घटाना पड़ रहा है। इसका असर नौकरियों पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को कुछ ऐसे उपाय करने चाहिए ताकि सबसे निम्न वर्ग की खरीदने की क्षमता बढ़ सके। इसी तरह आधारभूत संरचना पर भी खर्च बढ़ाना होगा। जिससे इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप होगा और रोजगार भी मिलेगा।
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क्या है जीडीपी?
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट। जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे जरूरी पैमाना है। जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने पर होती है। भारत में कृषि, उद्योग और सर्विस सेक्टर वो तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढऩे या घटने के औसत आधार पर जीडीपी दर तय होती है। ये आंकड़ा देश की आर्थिक तरक्की का संकेत देता है। अगर जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही के मुकाबले कम है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय देशभर से उत्पादन और सेवाओं के आंकड़े जुटाता है। इस प्रक्रिया में कई सूचकांक शामिल होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक हैं।