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फिच की रिपोर्ट में भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं, इस साल इतने प्रतिशत गिरेगी इकोनामी
रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि हमने इस वित्त वर्ष के जीडीपी अनुमान में जून के ग्लोबल इकोनॉमी आउटलुक के मुकाबले 5 फीसदी की और कमी कर दी है।
नई दिल्ली: रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि हमने इस वित्त वर्ष के जीडीपी अनुमान में जून के ग्लोबल इकोनॉमी आउटलुक के मुकाबले 5 फीसदी की और कमी कर दी है।
नई दिल्ली: कोरोना संकट की वजह से अप्रैल से जून की इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की रिकार्ड तोड़ गिरावट आई है। कहने का मतलब ये है कि जीडीपी में करीब एक-चौथाई की कमी आ गई है। इस वित्त वर्ष यानी 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.5 फीसदी की भारी गिरावट आ सकती है। यानी जीडीपी ग्रोथ माइनस 10.5 फीसदी हो सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक मार्च में कठोर लॉकडाउन लागू होने के कारण अर्थव्यवस्था में बंपर गिरावट आई है। फिच ने कहा, 'अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के बाद अक्टूबर से दिसंबर की तीसरी तिमाही में जीडीपी में मजबूत सुधार होना चाहिए, लेकिन संकेत तो इस बात के दिख रहे हैं कि सुधार की रफ्तार और भी सुस्त होगी।
आपको ये भी बता दें कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में जून तिमाही में करीब 24 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। जिसके बाद से आगे आने वाले हालात को देखते हुए जानकार अभी से अर्थव्यवस्था के लिए दूसरे राहत पैकेज की मांग करने लगे हैं। ऐसी उम्मीद भी है कि सरकार एक दूसरा राहत पैकेज दे सकती है, लेकिन यह अभी नहीं होगा बल्कि ये बाजार में कोरोना का टीका आने के बाद शायद मुमकिन हो।
रुपए की लेनदेन करते हुए प्रतीकात्मक फोटो(साभार-सोशल मीडिया)
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पिछले साल इस दौरान जीडीपी में 5.2 फीसदी की तेजी देखने को मिली थी
एक्सपर्ट के मुताबिक पहली तिमाही में स्थिर कीमतों पर यानी रियल जीडीपी 26.90 लाख करोड़ रुपये की रही है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 35.35 लाख करोड़ रुपये की थी। इस तरह इसमें 23.9 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल इस दौरान जीडीपी में 5.2 फीसदी की तेजी देखने को मिली थी।
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जीडीपी की प्रतीकात्मक फोटो(साभार-सोशल मीडिया)
क्या होती है जीडीपी
जीडीपी के एक आदमी के लिए क्या मायने हैं तो यहां हम बटन दें कि इसे ऐसा भी समझा जा सकता है कि जीडीपी किसी देश की आर्थिक तरक्की और वृद्धि का पैमाना होती है। जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है तो बेरोजगारी कम रहती है। लोगों की तनख्वाह बढ़ती है। कारोबार जगत अपने काम को बढ़ाने के लिए और मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की भर्ती करता है।
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कहते हैं। यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की हालत का आंकलन किया जाता है।
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