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RBI Annual Report: वित्त वर्ष 2024 में भारत की विकास गाति बनी रहने की संभावना: आरबीआई
RBI Annual Report: आरबीआई की केंद्रीय निदेशक मंडल की वैधानिक रिपोर्ट 2022-23 में कहा कि मजबूत वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के 2022-23 में वास्तविक जीडीपी में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज कर सकती है।
RBI Annual Report: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात उल्लेखित किया गया है कि मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के माहौल में भी भारत की विकास गाति चालू वित्त वर्ष (2023-24) में बनी रहने की संभावना है। आरबीआई की केंद्रीय निदेशक मंडल की वैधानिक रिपोर्ट 2022-23 में कहा कि मजबूत वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के 2022-23 में वास्तविक जीडीपी में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज कर सकती है।
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कुल आय 47 फीसदी बढ़ा
RBI ने कहा कि यह ध्वनि व्यापक आर्थिक नीतियों, मजबूत वित्तीय क्षेत्र, नरम वस्तु की कीमतों, सरकारी व्यय की गुणवत्ता पर निरंतर राजकोषीय नीति जोर, नरम वस्तु की कीमतों, निरंतर राजकोषीय नीति और आपूर्ति श्रृंखलाओं के वैश्विक पुनर्गठन से आने वाले नए विकास अवसरों की पृष्ठभूमि में आता है। RBI ने कहा कि वित्त वर्ष 2023 में भारत की कुल आय 47 फीसदी बढ़कर 2.35 ट्रिलियन रुपये हो गई है। इस अवधि में ब्याज आय 50 फीसदी बढ़कर 1.43 लाख करोड़ रुपये और अन्य आय 42 फीसदी बढ़कर 92,384 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है।
इसलिए बढ़ा रेपो रेट
केंद्रीय बैंक ने कहा कि अधिक रेपो उधार देने और ब्याज दरों में वृद्धि के कारण ब्याज आय अधिक थी, जबकि अन्य आय विदेशी मुद्रा भंडार की बिक्री पर अधिक थी। बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने पिछले साल मई से ब्याज दरों में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। यूक्रेन और रूस के युद्ध की वजह से वैश्विक स्थिर पर महंगाई का असर दिखाई दिय़ा,जिसका प्रभाव भारत में भी पड़ा। इस प्रभाव से निपटने के लिए आरबीआई की एमपीसी ने मई की बैठक में रेपो रेट में 40 आधार अंकों से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत कर दिया था। उसके बाद से लगातार केंद्रीय बैंक एमपीसी की बैठक में रेपो रेट में वृद्धि करता रहा। हालांकि अप्रैल 2023 में हुई एमपीसी की बैठक में केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में कोई परिवर्तन ना करते हुए इसे अपरिवर्तित रखा।
विकास क्षमता के सुधार के लिए संरचनात्मक सुधार बनाए रखा जरूरी
आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक विकास धीमा, लंबे समय तक भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक वित्तीय प्रणाली में नई तनाव की घटनाओं के बाद वित्तीय बाजार में अस्थिरता की संभावना बनी हुई है, जो विकास के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा कर सकता है। इसलिए, भारत की मध्यम अवधि की विकास क्षमता में सुधार के लिए संरचनात्मक सुधारों को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।