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Insurance: आपको बीमा सस्ता मिलेगा या फिर महंगा, ऐसे तय करता है बीमालेखक, जानें पूरी Underwriting Process

Insurance Underwriting: बीमा व्यवसाय में अंडरराइटिंग यानी बीमालेखन वह प्रक्रिया होती है जिसके तहत लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां किसी पॉलिसी के लिए ग्राहक की एलिजिबिलिटी तय करती हैं।

Hariom Dwivedi
Published on: 28 May 2023 2:47 PM IST (Updated on: 28 May 2023 2:48 PM IST)
Insurance: आपको बीमा सस्ता मिलेगा या फिर महंगा, ऐसे तय करता है बीमालेखक, जानें पूरी Underwriting Process
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बीमा व्यवसाय में जरूरी होता है बीमालेखन।

Life Insurance Underwriting: जीवन बीमा खरीदते समय अक्सर आपके दिमाग रहता है कि आकस्मिक दुर्घटना हो जाने पर बीमा पॉलिसी के जरिये परिवार को वित्तीय सुरक्षा मिल जाएगी। ठीक उसी तरह बीमा कंपनियां भी ग्राहकों को इंश्योरेंस पॉलिसी इश्यू करने के अपने हर दिन के ऑपरेशन्स से जुड़े जोखिम से खुद को बचाती हैं। लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों की तरफ से ग्राहकों के लिए एक गाइडलाइन जारी की जाती है, जिसे उन्हें फॉलो करना होता है। इन गाइडलाइंस के जरिए बीमा कंपनियां ग्राहकों से जुड़े रिस्क का आंकलन करती हैं और फिर उसी आधार पर उसके लिए प्रीमियम तय करती हैं। संक्षेप में कहा जाए तो अंडरराइटिंग यानी बीमालेखन वह प्रक्रिया होती है जिसके तहत लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां किसी पॉलिसी के लिए ग्राहक की एलिजिबिलिटी तय करती हैं।

इंश्योरेंस अंडरराइटिंग दो प्रकार की होती है। पहला मेडिकल अंडराइटिंग और दूसरा फाइनेंशियल अंडरराइटिंग। मेडिकल अंडराइटिंग को आम तौर पर ‘मोर्टलिटी असेसमेंट’ कहा जाता है। अंडरराइटिंग का यह पहलू आपकी उम्र, लाइफ स्टाइल, धूम्रपान, शराब पीने जैसी आपकी आदतों से जुड़ा होता है। इसके साथ ही इसका मकसद आपकी फैमिली हिस्ट्री के आधार पर इस चीज का आकलन करना होता है कि आपको किसी तरह की बीमारी से ग्रस्त होने की आशंका तो नहीं है।

फाइनेंशियल अंडरराइटिंग

फाइनेंशियल अंडरराइटिंग वह प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल इंश्योरेंस कंपनी इस चीज की गणना के लिए करती हैं कि आपके लिए कितनी रकम का लाइफ कवर पर्याप्त होगा। आप जब एक निश्चित रकम का लाइफ कवर खरीदने को लेकर रुचि दिखाते हैं तो इंश्योरेंस कंपनी आपकी वित्तीय स्थिति का पूरा विश्लेषण करती है। इस चरण में आपको सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट, टेलीफोन बिल, बिजली का बिल, पासपोर्ट, आधार कार्ड, इनकम टैक्स रिटर्न जैसे दस्तावेज देने पड़ते हैं। अगर आपके नाम से पहले से कोई इंश्योरेंस पॉलिसी है तो आपको उसका भी विवरण देना पड़ता है। हालांकि, कुछ ग्राहक इस पूरे प्रोसेस को काफी परेशानी भरा मानते हैं लेकिन इससे आपकी इंश्योरेंस कंपनियों को आपके पूरे रिस्क प्रोफाइल का आकलन करने में मदद मिलती है।

जोखिम का वर्गीकरण (Risk Calssification)

मेडिकल अंडरराइटिंग के तहत जोखिम का चार भागों में वर्गीकरण किया जाता है-
1- मानक जीवन (Standard Lives)- ऐसे लोगों की अनुमानित मृत्युदर, सामान्य होती है और इन्हें आसानी से बीमा दिया जाता है।
2- अवमानक/उपमानक जीवन (Sub Standard Lives)- अनुमानित मृत्युदर मानक मृत्युदर की तुलना में अधिक होती है। बीमा कंपनियां ऐसे लोगों का बीमा तो करती हैं, लेकिन उनसे प्रीमियम ज्यादा लेती हैं।
3- वरीयता प्राप्त जीवन (Prefered Lives)- अनुमानित मृत्युदर मानक मृत्युदर तालिका से कम है। ऐसे लोगों को आसानी से बीमा मिल जाता है।
4- अस्वीकृत जीवन (Declined Lives)- मृत्यु दर इतनी अधिक होती है कि सम्बंधित को बीमा नहीं दिया जा सकता है। जैसे किसी को कैंसर या अन्य गंभीर बीमारियां हैं।

बीमा लेखन की विधि (Methods of underwriting)

1- निर्णय विधि (Judgement level): इस तरह के बीमा लेखन विधि में व्यक्ति विशेष निर्णय का प्रयोग किया जाता है। यह निर्णय बीमा कंपनी का विशेषज्ञ लेता है। जैसे- अगर किसी को मधुमेह है तो वह निर्णय विधि से विशेषज्ञ तय करेगा कि इसकी प्रीमियम दी जा सकती है या नहीं।
2- संख्यात्मक विधि (Numerical level): इस विधि में बीमालेखक सभी नकारात्मक या प्रतिकूल कारकों के धनात्मक अंक देते हैं और धनात्मक कारकों के लिए नकारात्मक अंक देते हैं। जैसे कोविड पॉजिटिव (+) के नकारात्मक (-) अंक दिये जाते हैं।
3- बीमा धन पर ग्रहणाधिकार (Lien) सहित स्वीकृति: यह एक प्रकार का बंधन है। बीमा कंपनी जिसका प्रयोग जीवन बीमा कंपनी उस लाभ की राशि पर कर सकती हैं जो दावे की स्थिति में इसे भुगतान करनी पड़ती है। आमतौर पर यह उस पॉलिसी में लगाया जाता है जिसमें बीमाधारक को पहले से ऐसी कोई बीमारी हो जो समय के साथ ठीक हो सकती है। जैसे टीबी आदि…
4- प्रतिबंधात्मक क्लॉज सहित स्वीकृति: कुछ खास प्रकार के खतरों के लिए प्रतिबंधात्मक क्लॉज लगाया जाता है। उदाहरण के लिए अगर किसी गर्भवती महिला ने बीमा पॉलिसी उस वक्त ली है जब वह प्रेग्नेंट थी तो बीमा कंपनी प्रतिबंध लगा देती है कि अगर Due to Pregnancy कोई पॉलिसीधारक की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी क्लेम नहीं देगी।

नहीं होगी क्लेम में कोई दिक्कत

इंश्योरेंस एक्सपर्ट्स की राय है कि बीमा कंपनी को जब भी हेल्थ से जुड़ी जानकारी दें, पूरी और विस्तृत दें। ऐसा करने से अंडराइटिंग सिस्टम पूरी तरह से आपके पक्ष में काम करेगा। उचित प्रीमियम का निर्धारण होगा। पॉलिसी भी जल्द इश्यू हो जाएगी। साथ ही पॉलिसी या क्लेम के रिजेक्ट होने की संभावना बेहद कम होगी।



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Hariom Dwivedi

Hariom Dwivedi

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