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RBI की बड़ी पहल: टाटा-बिड़ला खोलेंगे बैंक! ऐसे होगा सुधार
आरबीआई का क्या फैसला होगा यह इस समय कहना मुश्किल है, लेकिन कई जानकार इस प्रस्ताव पर आपत्ति जता रहे हैं। बीते कुछ सालों में पीएमसी बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास जैसे बैंकों की वित्तीय हालत बेहद खराब हो गई और आरबीआई को उनका नियंत्रण अपने हाथों में ले लेना पड़ा।
लखनऊ: भारतीय रिज़र्व बैंक ने कार्पोरेट घरानों को बैंक खोलने की इजाजत देने का प्रस्ताव किया है। इसके अलावा बड़े एनबीएफसी यानी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को बैंक में बदलने की अनुमति देने का भी प्रस्ताव दिया है। रिज़र्व बैंक के इंटरनल वर्किंग ग्रुप के इन प्रस्तावों पर 15 जनवरी 2021 तक फीडबैक लिए जायेंगे और उसके बाद आरबीआई अपना फैसला सुना देगा। रिज़र्व बैंक की कमेटी के प्रस्ताव से बैंकिंग लाइसेंस पाने की इच्छुक कंपनियों में उत्साह है। भारत में 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था और उसके बाद 1993 में निजी कंपनियों को बैंक खोलने की अनुमति दी गई थी। तब से कई बड़े औद्योगिक घराने बैंक खोलने का लाइसेंस मिलने की राह देख रहे हैं।
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प्रस्ताव पर आपत्ति
आरबीआई का क्या फैसला होगा यह इस समय कहना मुश्किल है, लेकिन कई जानकार इस प्रस्ताव पर आपत्ति जता रहे हैं। बीते कुछ सालों में पीएमसी बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास जैसे बैंकों की वित्तीय हालत बेहद खराब हो गई और आरबीआई को उनका नियंत्रण अपने हाथों में ले लेना पड़ा। दूसरे बैंक भी बड़े-बड़े ऋण के न चुकाए जाने के कारण वित्तीय स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं। स्टेट बैंक और एचडीएफसी जैसे शीर्ष बैंक इनमें प्रमुख हैं। ऐसे में पूरा बैंकिंग क्षेत्र अनिश्चितताओं से गुजर रहा है और तरह तरह के सुधारों का प्रस्ताव दिया जा रहा है।
रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है। उनके अनुसार आईडब्ल्यूजी ने जितने विशेषज्ञों से सलाह ली थी उनमें से एक को छोड़ सबने प्रस्ताव का विरोध किया था और इसके बावजूद समूह ने प्रस्ताव की अनुशंसा कर दी। दोनों अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कार्पोरेट घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देने से ‘कनेक्टेड लेंडिंग’ शुरू हो जाएगी। ‘कनेक्टेड लेंडिंग’ यानी बैंक का मालिक अपनी ही कंपनी को आसान शर्तों पर लोना दे सकेगा।
पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने रिजर्व बैंक की कमेटी के प्रस्ताव की कड़ी निंदा की है
पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने रिजर्व बैंक की कमेटी के प्रस्ताव की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे बैंकिंग इंडस्ट्री पर कंट्रोल की बड़ी योजना का खतरनाक एजेंडा करार दिया है। उन्होंने कहा कि यदि इस प्रस्ताव को क्रियान्वित किया गया तो देश के आर्थिक संसाधनों का बड़ा हिस्सा कारपोरेट सेक्टर के हाथों के चला जाएगा। चिदंबरम ने कहा कि यह मोदी सरकार का देश के बिजनेस घरानों को फायदा पहुंचाने का एक और उदाहरण है। उन्हें कहा कि यदि प्रस्ताव पर अमल हुआ तो इस बात में कोई शक नहीं कि राजनीतिक संपर्क वाले बिजनेस घराने सबसे पहले लाइसेंस हासिल कर लेंगे और अपना एकाधिकार स्थापित कर लेंगे।
कम्पनियाँ उत्साहित
पिछले कुछ सालों में बड़े कार्पोरेट घरानों ने एनबीएफसी भी खोल लिए हैं, जिनमें बजाज फिनसर्व, एम एंड एम फाइनेंस, टाटा कैपिटल, एल एंड टी फाइनैंशियल होल्डिंग्स, आदित्य बिरला कैपिटल इत्यादि शामिल हैं। लेकिन कई जानकार 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट की भी याद दिला रहे हैं जिसके बाद कई देशों में कॉरपोरेट घरानों द्वारा चलाए जाने वाले बैंकों के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया था।
टाटा, बिड़ला, रिलायंस
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टाटा और आदित्य बिड़ला समूह बैंकिंग लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं। इसके अलावा रिलायंस और बजाज जैसे समूह के लिए भी बैंक खोलने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन इस सब के लिए पहले बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में बदलाव किए जाएंगे। रिज़र्व बैंक की कमेटी ने प्रमोटर होल्डिंग को लेकर भी नए नियम जारी किए हैं। अब 15 साल बाद प्रमोटर 26 फीसदी की हिस्सेदारी रख सकते हैं। अभी ये सीमा 15 फीसदी है।
कौन कर सकता है लाइसेंस के लिए अप्लाई
टाटा और आदित्य बिड़ला समूह के बैंकिंग लाइसेंस लेने की ज्यादा उम्मीदें हैं क्योंकि ये दोनों ही पहले भी इसके लिए अप्लाई कर चुके हैं। 2013 में जब रिज़र्व बैंक ने निजी सेक्टर में मौकों का ऐलान किया था, तब दोनों ही कंपनियों ने बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। लेकिन टाटा ने अपना आवेदन वापस ले लिया था क्योंकि उसे लगा था कि आरबीआई की शर्तें काफी प्रतिबंध लगाती हैं और इन्हें मानने से उसके दूसरे बिजनेस पर प्रभाव पड़ सकता है। वहीं, आदित्य बिड़ला समूह को लाइसेंस नहीं मिला था क्योंकि आरबीआई ने इंडस्ट्रियल हाउस को लाइसेंस देने से इनकार कर दिया था।
एनबीएफसी भी बन सकते हैं बैंक
रिज़र्व बैंक की कमेटी ने कहा है कि बड़ी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां जिनके पास 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की परिसंपत्तियां हैं और अगर उनको कामकाज करते हुए 10 साल या ज्यादा हो गए हैं तो वो कुछ बदलावों के साथ बैंक में तब्दील हो सकते हैं। इस सिफारिश का फायदा भी टाटा और आदित्य बिड़ला ग्रुप को मिल सकता है। टाटा की टाटा कैपिटल का एसेट साइज 74,500 करोड़ से ज्यादा का है। जबकि आदित्य बिड़ला की आदित्य बिड़ला कैपिटल का एसेट साइज 59,000 करोड़ से अधिक है।
इसका फायदा बजाज फाइनेंस लिमिटेड, फाइनेंस होल्डिंग्स लिमिटेड, श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस लिमिटेड और महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड को भी मिल सकता है।
कमेटी की अन्य सिफारिशें
रिज़र्व बैंक की कमेटी की अन्य सिफारिशों में कहा गया है कि जिन पेमेंट बैंकों को 3 साल का अनुभव है, वो कुछ बदलावों के साथ स्मॉल फाइनेंस बैंक में तब्दील हो सकते हैं। इससे पेटीएम, जियो और एयरटेल पेमेंट्स बैंकों को फायदा मिल सकता है।
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स्मॉल पेमेंट बैंक और स्मॉल फाइनेंस बैंक 6 साल के बाद खुद को शेयर मार्किट में लिस्ट करा सकते हैं। लेकिन उनको बैंक होने के लिए जरूरी पूंजी की शर्त पूरी करनी होगी। या फिर 10 साल से ज्यादा अनुभव वाले भी स्मॉल पेमेंट बैंक और स्मॉल फाइनेंस बैंक भी खुद को बैंक में बदल सकते हैं।
नए बैंकों के लाइसेंस के लिए प्रारंभिक पूँजी की सीमा को 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपये कर दिया है। स्मॉल फाइनेंस बैंक के लिए प्रारंभिक पूँजी की सीमा को 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया है।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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