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Old Pension Scheme: क्या थी पुरानी पेंशन योजना ? ख़ास वर्ग का फायदा, खर्चा उठाये हरेक करदाता

Old Pension Scheme: संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने विधानसभा में बताया कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) एक अप्रैल 2005 से लागू की गई थी। सरकार अब पुरानी योजना को बहाल करने पर विचार नहीं कर रही है।

Neel Mani Lal
Published on: 11 Aug 2023 8:05 AM IST
Old Pension Scheme: क्या थी पुरानी पेंशन योजना ? ख़ास वर्ग का फायदा, खर्चा उठाये हरेक करदाता
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Old Pension Scheme (Photo- Social Media)

Old Pension Scheme: जल्द ही होने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू किये जाने का मसला जरूर ही उछलेगा। अब तक राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश पुरानी पेंशन स्कीम वापस लागू कर चुके हैं। यूपी में भी यही मांग हो रही है । लेकिन प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने से साफ़ इनकार कर दिया है। राज्य के संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने विधानसभा में बताया है उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) एक अप्रैल 2005 से लागू की गई थी। सरकार अब पुरानी योजना को बहाल करने पर विचार नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि नई योजना को कर्मचारी संगठनों से बातचीत के बाद लागू किया गया है। नई योजना में औसतन 9.32 फीसदी ब्याज दिया जाता है।

पुरानी पेंशन योजना क्या थी ?

भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ही 1 अप्रैल, 2004 से पुरानी पेंशन योजना को रद्द कर दिया था। सरकार ने ओपीएस को राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) से बदल दिया, जहां सरकारी कर्मचारी अपनी पेंशन के लिए अपने मूल वेतन का 10 प्रतिशत योगदान करते हैं । जबकि सरकार 14 प्रतिशत योगदान करती है। एनपीएस प्रणाली का अनोखा पहलू यह था कि इसके अंतर्गत निजी क्षेत्र को भी शामिल किया गया था।

ओपीएस प्रणाली के तहत रिटायर्ड सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत मासिक पेंशन के रूप में मिलता था । और जैसे-जैसे महंगाई भत्ता (डीए) दरों में बढ़ोतरी होती जाती थी । वैसे वैसे रिटायर्ड कर्मचारियों की मासिक पेंशन भी बढ़ती है। पुरानी पेंशन योजना या ‘ओपीएस’ का आकर्षण यही है कि रिटायरमेंट के बाद एक सुनिश्चित पेंशन मिलने का वादा है। लेकिन ओपीएस का नुक़सान यह है कि इसका पैसा सरकार को ही अपनी तरफ से जुटाना होता है । इस प्रकार, सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता रहता है।

ओपीएस की दिक्कतें

पुरानी पेंशन योजना की मुख्य समस्या यह है विशेष रूप से पेंशन के लिए कोई अलग कोष नहीं रखा गया था और पेंशन का खर्चा लगातार बढ़ रहा था। सरकार ने हर साल बजट से पहले रिटायर्ड लोगों को भुगतान का अनुमान लगाया है।लेकिन असलियत ये है कि देश के करदाताओं के पैसे से ही पेंशनभोगियों के लिए भुगतान किया जाता रहा है। समस्या ये भी थी कि ओपीएस में पेंशन देनदारियां चढ़ती रहेंगी । क्योंकि हर साल पेंशनभोगियों के लाभ में वृद्धि हुई है; जैसे कि मौजूदा कर्मचारियों का वेतनमान और पेंशनभोगियों को सामान डीए। इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से जीवन प्रत्याशा का बढ़ना और लंबी उम्र बढ़ने का मतलब लम्बे समय तक भुगतान का होना है।

बढ़ता ही गया पेंशन बिल

पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई हैं। 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था और सभी राज्यों का कुल खर्च 3,131 करोड़ रुपये था। 2020-21 तक केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया था; जबकि राज्यों के लिए यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया।

रिज़र्व बैंक की चेतावनी

भारतीय रिजर्व बैंक ने साफ़ चेतावनी दी है कि पुरानी पेंशन योजना को लागू करने से राज्यों का वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा। एक रिपोर्ट में रिज़र्व बैंक ने कहा कि यह कदम सरकारी खजाने के लिए एक बड़ा जोखिम होगा। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना में संभावित वापसी उनकी वित्तीय स्थिति के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है। इस निर्णय के चलते राजकोषीय संसाधनों में कोई भी बचत लंबे समय तक नहीं रहेगी।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी पुरानी पेंशन योजना के नकारात्मक प्रभावों पर टिप्पणी करते हुए कहा है - ऐसे देश में जहां अधिकांश लोगों के पास कोई सामाजिक सुरक्षा जाल नहीं है, सुनिश्चित पेंशन वाले सरकारी कर्मचारी एक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति हैं। उन्हें विशेषाधिकार देना भी आगे बड़ी जनता की कीमत पर यह नैतिक रूप से गलत और वित्तीय रूप से हानिकारक होगा।

सुब्बाराव ने चेतावनी दी है कि यदि राज्य सरकारें पुरानी पेंशन योजना पर वापस जाने का निर्णय लेती हैं, तो बोझ वर्तमान राजस्व पर पड़ेगा, जिसका अर्थ है स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और सिंचाई का त्याग करना होगा।

क्या कदम उठाये गए

हुआ ये था कि 1998 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा (ओल्ड ऐज सोशल एंड इनकम सिक्यूरिटी) योजना के लिए एक रिपोर्ट तैयार की थी। सेबी और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष एस.ए. दवे के तहत एक विशेषज्ञ समिति ने जनवरी 2000 में रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसका कहना था कि वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा (ओएएसआईएस) सरकारी पेंशन प्रणाली में सुधार के लिए नहीं थी बल्कि इसका प्राथमिक उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर लक्षित था । जिनके पास वृद्धावस्था की कोई भी आय सुरक्षा नहीं थी। रिपोर्ट 22 फरवरी, 2002 को प्रस्तुत की गई थी, लेकिन इसे सरकार ने पसंद नहीं किया।

नई पेंशन योजना

ओल्ड ऐज सोशल एंड इनकम सिक्यूरिटी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट भले ही पसंद नहीं की गयी । लेकिन उसके द्वारा प्रस्तावित बातें नई पेंशन प्रणाली का आधार बन गई। जो बात मूल रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए परिकल्पित थी, उसे सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए अपना लिया। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना (एनपीएस) 22 दिसंबर, 2003 को अधिसूचित की गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पेंशन सुधार पर कदम उठाया था। एनपीएस 1 जनवरी, 2004 से सरकार में समस्त नई भर्तियों के लिए प्रभावी हो गया, और उस वर्ष सत्ता में आई कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार ने सुधार को पूरी तरह से लागू कर दिया। 21 मार्च, 2005 को, यूपीए सरकार ने एनपीएस के नियामक, भारतीय पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण को वैधानिक समर्थन देने के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया।

क्या है नई योजना में

नयी योजना में कर्मचारी द्वारा पेंशन फण्ड में मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत योगदान और सरकार द्वारा समान योगदान शामिल था। ये योगदान अनिवार्य था। जनवरी 2019 में सरकार ने अपने योगदान को मूल वेतन और महंगाई भत्ते के 14 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। कर्मचारियों को विकल्प दिया गया कि वे कम जोखिम से लेकर उच्च जोखिम, और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ-साथ निजी कंपनियों द्वारा प्रोमोट किये गए पेंशन फंड मैनेजरों की योजनाओं में से किसी को चुन सकते हैं।

न्यू पेंशन स्कीम या एनपीएस के तहत योजनाएं नौ पेंशन फंड मैनेजरों द्वारा पेश की जाती हैं - एसबीआई, एलआईसी, यूटीआई, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, कोटक महिंद्रा, अदिता बिड़ला, टाटा और मैक्स। एसबीआई, एलआईसी और यूटीआई द्वारा शुरू की गई एनपीएस योजना के लिए 10 साल का रिटर्न 9.22 प्रतिशत; 5 साल का रिटर्न 7.99 फीसदी और 1 साल का रिटर्न 2.34 फीसदी है। उच्च जोखिम वाली योजनाओं पर रिटर्न 15 फीसदी तक हो सकता है।

पिछले आठ वर्षों में, एनपीएस ने एक मजबूत ग्राहक आधार बनाया है, और प्रबंधन के तहत इसकी संपत्ति में वृद्धि हुई है। 31 अक्टूबर, 2022 तक, केंद्र सरकार के पास 23,32,774 ग्राहक और राज्यों में 58,99,162 ग्राहक थे। कॉर्पोरेट क्षेत्र में 15,92,134 ग्राहक और असंगठित क्षेत्र में 25,45,771 ग्राहक थे। एनपीएस स्वावलंबन योजना के तहत 41,77,978 ग्राहक थे। इन सभी ग्राहकों की प्रबंधनाधीन कुल संपत्ति 31 अक्टूबर, 2022 तक 7,94,870 करोड़ रुपये थी।



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Neel Mani Lal

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