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75th Independence Day: भारत के समक्ष भविष्य की चुनौतियां

75th Independence Day: वर्तमान लोकतांत्रिक देशों में भारत एक महान एवं विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, परंतु इसके समक्ष विभिन्न प्रकार की समस्याएं एवं चुनौतियां पैदा हो गई हैं।

Akshita
Written By AkshitaPublished By Chitra Singh
Published on: 15 Aug 2021 7:55 AM GMT
Challenges For India
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नरेंद्र मोदी- भारत की समस्याएं (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

75th Independence Day: भारत इस वर्ष स्वतंत्रता के 75वें साल (75th Independence Day) में प्रवेश कर रहा है। हम सभी जानते हैं कि स्वतंत्रता सिर्फ एक दिन परिणाम नहीं दशकों की मेहनत है, जिसमें लाखों वीर सपूतों का लहू बहा है। हमे अपने देश के स्वतंत्रता संग्रामियों (Freedom Fighters) के बलिदान की व्याख्या हर समय करते रहना चाहिये। सारे जहां से अच्छा भारत, भारत जिसके लिए हमारे दिल में सम्मान है, भारत जो सभी भारतीयों की शान है, उस भारत को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं।

वर्तमान लोकतांत्रिक देशों में भारत एक महान एवं विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, परंतु इसके समक्ष विभिन्न प्रकार की समस्याएं एवं चुनौतियां पैदा हो गई हैं। इन समस्याओं में सम्प्रदायवाद, जातिवाद (Casteism), क्षेत्रवाद, गरीबी (Poverty), हिंसा (Violence), अपराधिकरण (criminalization), क्षेत्रीय भिन्नतांए, अशिक्षा (Illiteracy), सामाजिक एवं आर्थिक विषमता (Social and Economic Inequality), जनसंख्या वृद्धि (Population Growth) आदि मुख्य हैं। जब तक इन सभी का निवारण नहीं हो जाता तब तक भारत संपूर्ण विकास नहीं कर सकता है और न ही शुद्ध रूप से लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है।

चुनौतियां-

भ्रष्टाचार (Corruption)

भारत में अपना कोई न कोई जरुरी काम करवाने के लिए 54 फीसदी लोगों ने रिश्वत देते हैं यानि देश का हर दूसरा शख्स रिश्वत देने में यकीन रखता है।यदि भ्रष्टाचार का उद्भव हमारे द्वारा ही होता है तो हमें उसे सबसे पहली खत्म करने की जरूरत है ।पर 130 करोड़ की आबादी वाले देश में यह भ्रष्टाचार कब खत्म होगा।इसके लिए अन्ना हज़ारे ने 2013 से ही लोकपाल बिल लाने का समर्थन करते आये हैं।पर बिल तो आ गया पर इसका उपयोग सही तरीके से किया जाए ये सुनिश्चित होना चाहिये।

भ्रष्टाचार (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

नक्सलवाद और आतंकवाद (Naxalism and Terrorism)

भारत को आतंकवाद से ज्यादा खतरा घर के दुश्मनों यानि नक्सलियों से है, 2015 में भारत में कुल 791 आतंकी हमले हुए जिनमें से 43 प्रतिशत हमले नक्सलियों ने किए।जनसंख्या के एक हालिया आकलन के मुताबिक, 2020 तक देश में कामकाजी उम्र के लोगों की आबादी 90 करोड़ तथा नागरिकों की औसत आयु 29 वर्ष हो जायेगी जो चिंता का विषय है।

बेरोजगारी की चुनौती देश के अंदर की बात है लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती है आतंकवाद, जो देश के लिए एक बड़ी परेशानी का सवाल है, आतंकवाद से प्रभावित देशों में भारत का चौथा नंबर है।हाल ही के दो सालों में कोरोना के वजह ऐसी घटनाओं में अपेक्षाकृत लगाम तो लगा है ।पर तालिबान की बढ़ती हुई ताकते भारत के लिये चुनौती होगी।

शिक्षा व्यवस्था (Education System)

बदलते भारत में खराब शिक्षा व्यवस्था एक चिंता का कारण है स्कूलों में कक्षा पांच में पहुंचने वाले बच्चों में 50 प्रतिशत कक्षा दो की पुस्तकें भी नहीं पढ़ पाते।देश में शिक्षा व्यवस्था की पहली बड़ी चुनौती है, उसमें कौशल विकास का अभाव होना। उत्कृष्ट संस्थानों से हर साल निकलने वाले लाखों छात्रों में कौशल की बेहद कमी है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बेहद कमज़ोर माना जाता है। अगले दो दशकों तक कुशल श्रम की आवश्यकता को पूरा करने के लिये लगभग 70 लाख लोगों को विशिष्ट शिक्षा और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने की आवश्यकता होगी। पारंपरिक शिक्षा नीतियों के साथ ऐसा करना संभव नहीं होगा।

लचर स्वास्थ्य व्यवस्था (Poor Health System)

भारत में बिगड़ी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती है, यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है। इसी तरह 1,000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है।1.3 अरब आबादी वाले देश में कोरोना महामारी के कारण अचानक से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक बोझ पड़ा है।अस्पतालों की कमी, मरीजों के लिए वार्ड और बिस्तर की कमी देश पहले ही झेल रहा है. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच की दृष्टि से भारत को 195 देशों में 145वीं रैंकिंग हासिल है।हालांकि चिकित्सा शोध में देश के वैज्ञानिक कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

लचर स्वास्थ्य व्यवस्था (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

भारत की विदेश नीति (India's Foreign Policy)

नई वास्तविकता के साथ सामंजस्य बनाने की प्रक्रिया और नए अवसरों की तरफ देखने, जो भारत के उद्भव में मदद करती है, वह भारतीय विदेश नीति-निर्धारकों के लिए सबक होगी। अमेरिका और चीन पुनर्संतुलित हो रहे हैं तथा एक सुदृढ़ चीन का उभार भारत पर अवश्य ही बड़ा प्रभाव डालेगा। भारत पहले ही अमेरिका के साथ सघन रक्षा संबंध बना चुका है। बुनियादी समझौतों पर दस्तखत के साथ भारत और अमेरिकी सेना के बीच अन्योनाश्रितता में सुधार हुआ है। चतुष्टय या क्वाड के साथ अपनी भागीदारी को लेकर भारत की हिचक कम हुई है। चीन और रूस के विश्लेषकों ने इन घटनाक्रमों को, भारतीय नीति में अमेरिका के प्रति बढ़ते झुकाव के रूप में विश्लेषित किया है। हिंद महासागर के प्रति अपनी बढ़ती महत्वाकांक्षी दृष्टि के साथ, भारत ने महाशक्ति की सुनियोजित योजना में अपनी एक जगह तय की है, जो क्षेत्र में बड़ी रणनीति महत्ता के रूप में दिख रही है।भारत को यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन के साथ जहां तक संभव हो कारोबारी समझौते पर काम करना चाहिए।

भारत को यह सुनिश्चित करते हुए कि उसके हित किसी खतरे में नहीं पड़ेंगे, जितनी जल्दी हो, एफटीए के साथ यूरोपियन यूनियन और अन्य देशों के संग आगे बढ़ने की आवश्यकता है।चीन ने नेपाल और श्रीलंका के साथ अपने रक्षा संबंध और भी मज़बूत किये हैं। इसका मुकाबला करने के लिये हमें क्षेत्र में हितधारकों को उसी प्रकार का, लेकिन और भी आकर्षक तथा व्यावहारिक प्रोत्साहन देना होगा।

सुरक्षा चुनौतियां (Security Challenges)

निश्चित रूप से, भारत के लिए चीन 2021 में सर्वाधिक सुरक्षा चुनौती बना रहेगा। लिहाजा, चीन से मिलने वाले दबावों के मद्देनजर अमेरिका और अन्य देशों के साथ भारत को सुरक्षा सहयोग सघन करना उपयुक्त है।सीमा पर तनाव का हल निकालते हुए, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि चीन इस स्थिति का गलत फायदा न उठा ले तथा लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) को लेकर नए तथ्यों को न गढ़ ले। भारत-चीन संबंध को नई वास्तविकताओं के परिप्रेक्ष्य में पुनर्निर्धारित किया जा सकता है। भारत ताइवान के साथ आर्थिक संबंध गहरे करने पर विचार करे, जैसा कि अन्य कई देश इस समय कर रहे हैं।भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गैर वीटो प्राप्त सदस्य की दो वर्षीय कार्यावधि की आठवीं वार शुरुआत की है।भारत को विकासशील देशों तक अपनी पहुंच बनानी चाहिए और उनसे जुड़े मसलों को विश्व मंच पर उठाना चाहिए।

अर्थव्यवस्था (Economy)

कोरना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंची है।कुछ रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष विकास दर शून्य रह सकती है तो दो रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर नकारात्मक हो जाएगी।तालाबंदी की वजह से मांग और खपत दोनों में बहुत गहरा असर दिखा है।आर्थिक भविष्य को सुदृढ़ करने और 10 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये अगले 20 सालों तक जीडीपी की दर को 9 प्रतिशत बनाए रखना होगा।

कृषि क्षेत्र (Agricultural Sector)

लॉकडाउन का असर कृषि क्षेत्र में भी देखने को मिल सकता है। हालांकि देश के गोदामों में अनाज की कोई कमी नहीं है।आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार ने किसानों के लिए 30 हजार करोड़ रुपए के अतिरिक्त लोन देने का ऐलान किया है।इसके साथ कृषि क्षेत्र के लिए लंबी अवधि के लिए नीति बनाने की जरूरत है ताकि संकट पैदा होने पर कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।उसके बाद सरकारी कृषि बल 2020 ने पूरे देश मे जो तहलका मचा रखा है उसकी ज्वाला अभी तक शांत नही हुई है और किसान वर्ग उसके लिए 89 महीनों से संसद से लेकर सड़क तक संघर्ष कर रहे हैं।भारत के लिए ये भी एक बड़ी चुनौती है कि इसे कैसे सम्भाला जाए।

कृषि क्षेत्र (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

कर्ज संकट (Debt Crisis)

भारतीय बैंक छोटी कंपनियों को कर्ज देने में कतरा रहे है। अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 महामारी के नकारात्मक प्रभावों के बीच बैंक अपने पैसे की सुरक्षा पर अधिक जोर दे रहे हैं।एक रिपोर्ट के मुताबिक वाणिज्यिक बैंकों ने रिकॉर्ड 62 अरब डॉलर की राशि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास जमा कर रखी है, जबकि इस पर बैंकों को बहुत कम ब्याज मिलता है। बैंक पहले से ही बैड लोन के दबाव झेल रहे हैं।

बेरोजगारी (Unemployment)

लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप्प हो गई थी और हालांकि अब कुछ ढील दी जा रही है लेकिन इसके बावजूद बेरोजगारी दर बहुत अधिक है।सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर अभी बहुत ऊपर है।कोरोना के बाद अभी और बेरोजगारी बढ़ चुकी है ।श्रमिक जो दूसरे राज्यों में थे वे अपने राज्य लौट चुके हैं।राज्यों में सरकारी नियुक्तियां कोरोना के चलते नहीं की जा रही हैं।इससे पर पाना सरकार और भारत के लिए चुनौती साबित होने वाला है।

बेरोजगारी (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

महंगाई (Expensiveness)

भारत की आम जनता के लिए महंगाई का मुद्दा सबसे अहम है।खासतौर से केंद्र सरकार के दूसरे कार्यकाल में तो महंगाई रॉकेट की गति से बढ़ी और जनता त्राहिमाम कर उठी। अब नई सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती रहेगी कि वह कैसे आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रण में रखती है और जनता को महंगाई से निजात दिलाती है।

अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भाजपा नेताओं ने राजग की अटल सरकार की दुहाई देते हुए कई बार कहा कि उस दौर में महंगाई पर पूरी तरह से काबू पाया गया और जनता पर खर्चों का बोझ नहीं बढ़ने दिया ।पर कोरोना के छोटे ऐसा देखा जा रहा है कि दिन प्रतिदिन मंहगाई बढ़ती जा रही है।वजह सिलंडर के भाव बढ़ जाने सरकारी उज्ज्वला योजना बन्द पड़ गयी है।पेट्रोल ,डीजल के दामों ने आसमान छू लिया है।अब सरकारी तंत्र के लिए आने वाले समय मे बड़ी चुनौती है।

आंतरिक चुनौती

हालांकि मोदी ने अभी तक कश्मीर और देश के अन्य तनावग्रस्त क्षेत्रों की समस्याओं को सुलझाने का कोई रोडमैप नहीं बताया है, न ही बताया है कि वे देश की आंतरिक चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे? जानकार विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी ऐसी व्यवस्था को पसंद कर सकते हैं, जो कि सेना, पुलिस केंद्रित हो और नौकरशाही बहुत अधिक शक्तिशाली हो।ऐसी व्यवस्‍था में राजनीतिक प्रक्रियाओं को खारिज किया जा सकता है और हो सकता है कि सरकार कठोर, बर्बर कानूनों का सहारा ले, पोटा, मकोका का विस्तार किया जाए और इससे मानवाधिकारों का हनन हो और लोगों के अधिकारों के पक्षधरों को जेलों में ठूंस दिया जाए। लेकिन यह सिक्के का एक ही पहलू है, क्योंकि हो यह भी सकता है कि मोदी कश्मीर समेत अन्य समस्याओं का हल निकाल लें। यह बात उनके विरोधी भी मानते हैं कि उनमें निर्णय लेने की क्षमता है।अगर विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना है तो घरेलू चुनौतियों से हर हाल में पार पाना होगा। भारतीय उद्योगों, उद्यमियों और निवेशकों को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की बाधाओं को पहचानना होगा।बड़ी-छोटी परियोजनाओं को समय पर पूरा करना होगा, जो सबसे बड़ी चुनौती है।

काले धन की वापसी

देश में पिछले कुछ वर्षों से कालेधन का हंगामा व्यापक स्तर पर चल रहा है। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसी सामाजिक हस्तियां सार्वजनिक मंचों से देश का धन विदेशों से वापस लाने की मांग उठाते रहे हैं।उनका आरोप है कि भ्रष्ट तरीकों से कमाया गया यह कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है। अगर यह धन वापस आ जाता है तो देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी और जनता को अनेक करों से मुक्ति मिल सकेगी। नई सरकार के नेता भी यह वादा करते रहे हैं कि वे कालाधन वापस लाएंगे। अब यह वादा पूरा करने की चुनौती उनके सामने है।

वैश्विक महाशक्ति बनने के लिये चुनौती

वैश्विक मंचों पर बढ़ रही भारत की स्वीकार्यता महाशक्ति कहलाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसके अलावा भारत-अमेरिका-जापान त्रिपक्षीय संवाद के साथ संपर्क और भी बढ़ाना चाहिये और समान क्षेत्रीय उद्देश्यों वाले समूह में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल कर संपर्क को और बढ़ाया जाए। इसके अलावा कुछ घरेलू चुनौतियाँ भी हैं, जिनसे पार पाए बिना वैश्विक महाशक्ति का दर्ज़ा हासिल करना हमारे लिये आसान नहीं होगा। ऐसे में अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता और उसके सहयोग से वैश्विक पटल पर महाशक्ति कहलाने के भ्रम में न पड़ते हुए भारत को अपनी उन घरेलू कमज़ोरियों को दूर करना होगा, जो इस राह में प्रमुख बाधा बन सकती हैं।

भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

फर्जी मुद्रा /ड्रग्स तस्करी/साइबर क्राइम (Fake Currency/Drugs Smuggling/Cyber Crime)

देश भर में लगभग 400 करोड़ रुपये मालियती नकली मुद्रा का चलन है जो चिंतनीय है।पूरे भारत की बात करें तो दक्षिण एशिया में भारत हेरोइन का सबसे बड़ा अड्डा है इसमें युवा वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित है।बदलते और डीजिटल होते भारत में जहां एक तरफ लोग आधुनिक हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ साइबर क्राइम भी बढ़ने लगा है देश के लिए ये एक घातक समस्या है ये सच है कि भारत ने आजादी के बाद काफी तरक्की की है देश में बहुत कुछ बदला है लेकिन ये कुछ ऐसी चुनौतियां है जिनपर सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि हम सबको मिलकर सोचने की जरूरत है।

जातिवाद/मोब लिंचिंग/साम्प्रदायिकता/प्रेस

स्वतंत्रता/अपराधीकरण/क्षेत्रीय विषमता और जनसंख्या वृद्धि-भारत विभिन्न विविधताओं वाला देश है।जो दुनिया मे सबसे अलग पहचान रखता है पर यही विवधता भारत के लोगों के प्रति अलगाव पैदा करती है।भारत के हर राज्य ,हर क्षेत्र की भाषा, संस्कार रहन - सहन ,पहनावा अलग है।इसी वजह से कभी हम स्वीकारते हैं और कभी कभीएक दूसरे को नकारने भी लगते हैं।फिर धर्मों के प्रति आदर न होना भारत में एक संघर्ष का वातावरण पैदा कर रहा है।जिसके कारण ही मोब लिंचिंग ,हत्या,रेप अनेक अपराध जन्म लेते हैं।लोगो को मानसिकता पर सरकार को काम करने की जरूरत है। साथ ही साथ जनता को एक दूसरे को वो जैसे भी हैं वो जो भी हैं उन्हें अपनाने की जरूरत है।हर धर्म एक है।हर समाज ,हर जाति के लोग एक है इसे मानना पड़ेगा।

इसके अलावा हमें भारत को ऐसा देश बनाना है जहाँ हमारे अधिकारों की रक्षा हो जो इन दिनों नही हो रही है।आज सरकार के खिलाफ बोलने पर देश द्रोहियों धाराओं में जेल के अंदर सालों - सालों तक भेज दिया जाता वो भी बिना अपराध साबित हुए।इन सभी पर लगाम लगाना जरूरी है।जनसंख्या विस्फोट भारत के विकास में रुकावट साबित होगा।इसके लिए जरूरी है की सरकार और जनता दोनो एक अच्छी नीति बनाएं और उसका पालन करें।

भारत के लिए आने वाले समय में चुनोतियाँ तो बहुत हैं ।पर इसपर अच्छे विचारों और नीतियों से पार पाया जा सकता है।हमारे लोगों ने अपनी स्वतंत्रता को पाने के लिए जितनी चुनोतियाँ का सामना किया है अभी तक उसके सामने ये चुनोतियाँ सिर्फ एक अच्छी नीति और मेहनत का परिणाम हो सकती हैं।

Chitra Singh

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