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Ab Hogi Bijli Gul : एक और आफत, बिजली गुल होने का खतरा, अब कैसे क्या होगा?

Ab Hogi Bijli Gul : कोरोना की वजह से लगे प्रतिबंधों में कमी आने के बाद भारत में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है। वहीं भारत में बिजली की बढ़ता संकट दिखाई दे रहा है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Vidushi Mishra
Published on: 6 Oct 2021 9:48 PM IST (Updated on: 6 Oct 2021 9:49 PM IST)
Afganistan Taliban Crisis
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अफगानिस्तान में अंधेरा, तालिबान के पास बिजली खरीदने का पैसा नहीं (social media)

Ab Hogi Bijli Gul : चीन इन दिनों बिजली का भारी संकट झेल रहा है और यह संकट अब भारत की और बढ़ता दिखाई दे रहा है। और इसकी जड़ में है कोयला। भारत में भले ही ढेरों जल विद्युत् परियोजनाएं हैं । लेकिन फिलहाल कोयला सब पर भारी है । क्योंकि देश में जितनी बिजली पैदा होती है, उसमें से 70 फीसदी कोयले वाले पावर प्लांट्स ही बनाते हैं।

सो जब तक भट्ठियों में कोयला रहेगा, बिजली जलती रहेगी। जब कोयला खत्म हो जाएगा तो बिजली भी बंद हो जायेगी। इन दिनों कुछ ऐसे ही हालात बन रहे हैं क्योंकि ताप बिजली संयंत्रों में चंद दिनों का कोयला बचा हुआ है।

भारत में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट्स हैं। इनमें से 63 के पास सिर्फ दो दिन के कोयले का स्टॉक है। सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (सीईए) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी देने के साथ यह भी कहा गया है कि 17 पावर प्लांट्स में कोयले का स्टॉक शून्य लेवल तक पहुँच गया है।

सीईए के अनुसार 75 बिजली घरों में पांच दिन या उससे कम का कोयला है। इनकी स्थिति को सुपर क्रिटिकल बताया गया है। अगर कोयले की सप्लाई में बाधा आती है या डिमांड अचानक बढ़ जाती है तो बिजली प्रोडक्शन जरूर ही प्रभावित हो सकता है।

मंत्री ने कहा, बिजली की कोई कमी नहीं

सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के अनुसार तो कोयले का स्टॉक बेहद कम है । लेकिन ऊर्जा मंत्री आरके सिंह का कहना है कि कोयले का प्रोडक्शन बढ़ा है । बिजली की कमी की स्थिति अब सुधर रही है। मंत्री का कहना है कि बिजली की कोई कमी नहीं है । राज्य जितनी चाहें उतनी बिजली खरीद सकते हैं। लेकिन शायद वो पैसे की कमी के कारण बिजली खरीद नहीं पा रहे हैं। या फिर डिस्ट्रीब्यूशन का कोई मसला है।

क्या है वजह

कोरोना की वजह से लगे प्रतिबंधों में कमी आने के बाद भारत में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है। 7 जुलाई को यह अपने शीर्ष 200.57 गीगावाट के स्तर पर पहुंच गई थी। यह मांग अब भी 190 गीगावाट से ऊपर बनी हुई है।


जब देश में बिजली की मांग चरम पर थी, तभी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे चार बड़े राज्यों ने अपने अंतर्गत आने वाली बिजली इकाइयों के कोयला इस्तेमाल के लिए कोल इंडिया को किए जाने वाले भुगतान में चूक भी कर दी । जिसके बाद कोल इंडिया ने इनकी कोयला आपूर्ति कम कर दी। इससे बिजली संकट और गहरा गया।

दरअसल, राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाले पावर प्लांट और एनटीपीसी जैसी सरकारी कंपनियों को कोयले की सप्लाई एक समझौते के तहत होती है। इनके साथ कोल इंडिया, फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट करता है।

इसके बाद कोयले की सप्लाई पहले ही कर दी जाती है।राज्य इसके लिए बाद में भुगतान करते हैं। इन राज्यों ने समय से भुगतान नहीं किया है, जिसके चलते कोल इंडिया ने इनकी सप्लाई रोक दी है।

बिजली प्लांट में कोयले के भंडार में कमी के बाद केंद्रीय बिजली और कोयला मंत्रालय ने निर्देश दिया था कि कोयले की सप्लाई में अधिक भंडारण वाले थर्मल पावर प्लांट के बजाए कम भंडारण वाले प्लांट्स को वरीयता दी जानी चाहिए। फिर भी कमी बनी हुई है। इसके अलावा मंत्रालय ने बिजली उत्पादकों को कोयला आयात के जरिए कमी दूर करने का उपाय भी सुझाया था।

भारत का कोयला क्षेत्र

भारत में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयले का भंडार है। कोल इंडिया, सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है। भारत में कोयले की कुल खपत का तीन-चौथाई हिस्सा बिजली उत्पादन पर ही खर्च होता है।


इतने बड़े भंडार और इतने ज्यादा महत्व के बावजूद भारत दुनिया में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। इन वजहों और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक दबावों को देखते हुए भारत रिन्यूएबल एनर्जी को लेकर भी लगातार प्रयास कर रहा है। हालांकि भारत में जल्द ही कोई ऊर्जा स्रोत कोयले का सीधा विकल्प नहीं बन सकता है।

महंगी होती ऊर्जा

पेट्रोलियम उत्पादों के साथ ही कोयला और गैस की कीमतों में भारी इजाफे ने एक बड़ी चिंता उत्पन्न कर दी है । क्योंकि ईंधन महँगा होने का सीधा असर खपत और उसके बाद अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

इसका असर रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की समीक्षा पर भी दिखाई देने की संभावना है। हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया गया है कि भारत में चीन जैसा बिजली संकट पैदा होने की आशंका नहीं है।

रिकार्ड स्तर पर कीमतें

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 81.51 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है , जो वर्ष 2014 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है। सरकारी तेल कंपनियों का कहना है की घरेलू बाजार में कीमतें और बढ़ेंगी। कच्चे तेल के साथ ही प्राकृतिक गैस की कीमतें भी अतंरराष्ट्रीय बाजार में सात वर्षों के उच्चतम स्तर पर हैं।

चीन, ब्रिटेन व दूसरे यूरोपीय देशों के कारण कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। चीन ने तो अपने बिजली संकट को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर तात्कालिक नेचुरल गैस खरीद शुरू कर दी है। भारत अपनी जरूरत का 45 फीसदी गैस आयात करता है ।

इसमें तेजी से बढ़ोतरी भी होने वाली है। भारत में घरेलू गैस की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार से संबंधित है। घरेलू खनन क्षेत्रों से निकाले गए गैस की कीमत भी 62 फीसदी बढ़ चुकी है जिसके बाद देश भर में पीएनजी और सीएनजी की कीमतों में इजाफा किया गया है।

भारत को विदेशी बाजार में महंगे होते कोयले का भी बोझ उठाना पड़ रहा है। इस वर्ष अप्रैल में कोयला 50 डॉलर प्रति टन का था जो अब 200 डॉलर प्रति टन हो चुका है।



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Vidushi Mishra

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