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Abdulrazak Gurnah Wikipedia: शरणार्थियों की आवाज बने अब्दुल रज्जाक ने उत्तर औपनिवेशिकता से दुनिया का कराया सामना

तंजानिया में जन्म लेने वाले अब्दुल रज्जाक ने 20 साल की उम्र में पलायन और शरणार्थी समस्या का न केवल आमना सामना किया बल्कि सालों तक वह इस जीवन के अभ्यस्त रहे।

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Divyanshu Rao
Published on: 7 Oct 2021 4:10 PM GMT (Updated on: 8 Oct 2021 3:35 AM GMT)
Abdulrazak Gurnah Wikipedia: शरणार्थियों की आवाज बने अब्दुल रज्जाक ने उत्तर औपनिवेशिकता से दुनिया का कराया सामना
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अब्दुलरजाक गुरनाह की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

अब्दुल रज्जाक गुरनाह ने शरणार्थियों की पीड़ा को उसकी संपूर्ण भाव तीक्ष्णता के साथ दुनिया के सामने प्रस्तुत किया तो दुनिया न केवल शरणार्थियों को लेकर ज्यादा संवेदनशील बनी बल्कि शरणार्थियों से आंख मिलाने का साहस भी लोग नहीं कर सके। दरअसल, अब्दुल रज्जाक गुरनाह ने अपने उपन्यासों में शरणार्थियों की जिस पीड़ा और दंश को स्वर दिया है। उसे उनके अपने निजी जीवन की अभिव्यक्ति भी कहा जा सकता है।

तंजानिया में जन्म लेने वाले अब्दुल रज्जाक ने 20 साल की उम्र में पलायन और शरणार्थी समस्या का न केवल आमना सामना किया बल्कि सालों तक वह इस जीवन के अभ्यस्त रहे। शरणार्थियों की घनीभूत पीड़ा से वाकिफ होने के बाद ही दुनिया के देशों का नजरिया उपनिवेशवाद और शरणार्थी समस्या के प्रति तेजी से बदला है।

अब्दुल रज्जाक गुरनाह जीवन परिचय (Abdulrazak Gurnah Biography)

तंजानिया के जंजीबार में 1948 में जन्म लेने वाले अब्दुल रज्जाक ने 1968 में शरणार्थी के तौर पर ब्रिटेन में शरण ली। उनकी रचनाओं में उत्तर उपनिवेशवाद की समस्याएं और शरणार्थियों की पीड़ा एक साथ किसी तूफान की तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा करते समय स्वीडिश एकेडमी ने यह माना कि उन्हें इस पुरस्कार के लिए खास तौर पर इसलिए चुना गया क्योंकि उन्होंने उपनिवेशवाद के प्रभाव और शरणार्थियों के दुर्भाग्य को लेकर कभी समझौता वादी रुख नहीं अपनाया। एकेडमी ने यह भी कहा कि उनके उपन्यासों में पूर्वी अफ्रीका की विविधता पूर्ण संस्कृति का संपूर्ण विवरण प्राप्त होता है जो दुनिया को नया दृष्टिकोण देने में सक्षम है।

अब्दुलरजाक गुरनाह की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

तंजानिया के जंजीबार द्वीप पर जन्म लेने वाले अब्दुल रज्जाक गुरनाह को अपना देश जंजीबार क्रांति की वजह से छोड़ना पड़ा। जंजीबार क्रांति के दौरान अरब मूल के नागरिकों को अत्याचार और दमन का सामना करना पड़ा। जंजीबार से निकलकर गुरनाह जब ब्रिटेन पहुंचे तो उन्होंने अंग्रेजी भाषा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंग्रेजी में लिखना शुरू कर दिया। हालांकि उनकी शुरुआती भाषा स्वाहिली थी । लेकिन ब्रिटेन में रहने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि पूरी दुनिया से रूबरू होने के लिए अंग्रेजी भाषा ही सहायक है ।एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह कभी लेखक नहीं बनना चाहते थे । लेकिन जब वह इंग्लैंड आए तो उन्हें लगा कि जिस तरह का जीवन वो छोड़ कर आए हैं, उससे पूरी दुनिया को परिचित होना चाहिए।

अब्दुल रज्जाक गुरनाह की शिक्षा (Abdulrazak Gurnah Career)

इंग्लैंड में रहने के दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ केंट इन कैंटबरी में अंग्रेजी के शिक्षक के तौर पर काम किया। यहां वह अंग्रेजी साहित्य और उत्तर औपनिवेशिक साहित्य के प्रोफेसर रहे। जंजीबार से आने के बाद उन्होंने कैंडबरी के क्राइस्टचर्च कॉलेज में ही अपनी शिक्षा पूरी की। यूनिवर्सिटी आफ केंट से उन्होंने 1982 में पीएचडी हासिल की। 1980 से लेकर 1983 तक उन्होंने नाइजीरिया की बायरो यूनिवर्सिटी कानों में अध्यापन भी किया।

गुरनाह की प्रमुख कृतियां (Abdulrazak Gurnah Books)

मेमोरी आफ डिपार्चर, पिलग्रिमज वे ,पैराडाइज एडमाइरिंग साइलेंस, बाई द सी, दोट्टी, द लास्ट गिफ्ट ,ग्रेवल हार्ट। 1994 में प्रकाशित हुए उनके उपन्यास पैराडाइज को पूरी दुनिया में खूब शोहरत मिली। इस उपन्यास में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के समय पूर्वी अफ्रीका में उपनिवेशवाद को प्रमुखता से रेखांकित किया। उनके इस उपन्यास को बुकर प्राइज और वाइट ब्रेड प्राइज के लिए नामांकन भी मिला था। उनके उपन्यास डेसर्शन और बाय द सी को भी बुकर पुरस्कार और लास एंजिलिस टाइम्स बुक अवार्ड के लिए नामांकन मिल चुका है।

Divyanshu Rao

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