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Air India Crisis Story: एयर इंडिया की अनसुनी दास्तां, आज जमशेदजी के 'खोए बच्चे' की हुई घर वापसी

Air India Ansuni Dastan: करीब 70 सालों बाद एक बार फिर एयर इंडिया अपने पुराने मालिक के पास लौटी है। तो, इसी बहाने चलिए हम आपको एयर इंडिया के इतिहास बताने की कोशिश करते हैं।

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Report amanPublished By Shweta
Published on: 8 Oct 2021 7:14 PM IST
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एयर इंडिया (डिजाइन फोटोः सोशल मीडिया)

Air India Crisis Story: आखिरकार लंबे इंतजार के बाद एक बार फिर अब तक सरकारी एयरलाइन रही 'एयर इंडिया' की कमान टाटा समूह के हाथों में वापस आ गई है। एयर इंडिया के लिए टाटा समूह ने करीब 18,000 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। मीडिया को दी गयी जानकारी में डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट के सचिव तुहिन कांत पांडे ने बताया कि टाटा संस की टैलेस प्राइवेट लिमिटेड ने 18,000 करोड़ रुपए की बोली लगाकर बाजी अपने नाम कर ली है। तुहिन कांत पांडे (Tuhin Kant Pandey) ने बताया कि लेन-देन दिसंबर, 2021 के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है।

करीब 70 सालों बाद एक बार फिर एयर इंडिया अपने पुराने मालिक के पास लौटी है। तो, इसी बहाने चलिए हम आपको एयर इंडिया के इतिहास बताने की कोशिश करते हैं। कैसे, सालों बाद एयर इंडिया की टाटा ग्रुप में 'घर वापसी' हो गई है। और कैसे, जमशेदजी टाटा के न चाहने के बावजूद जवाहरलाल नेहरू ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।

सिर्फ पोस्टल सर्विस के लिए होता था इस्तेमाल

हम आपको लिए चलते हैं इतिहास में। आज के एयर इंडिया को पहले टाटा एयरलाइंस कहा जाता था। टाटा एयरलाइंस की शुरुआत साल 1932 में हुई थी। पहली बार जब टाटा एयरलाइंस के विमान ने व्यावसायिक उड़ान भरी थी, तब इसमें सवारी नहीं बल्कि चिट्ठियों को ढोया गया था। 25 किलो चिट्ठी के साथ सिंगल इंजन वाले विमान ने अहमदाबाद वाया कराची से मुंबई का सफर तय किया था। इसके बाद टाटा एयरलाइंस ने नियमित तौर पर पोस्टल सर्विस के लिए उड़ान भरना शुरू किया। उल्लेखनीय है कि तब भारत गुलाम था।यहां अंग्रेजों का शासन था। तब ब्रिटिश सरकार टाटा एयरलाइंस को किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं देती थी। सिवाय हर चिट्ठी पर चार आने के। जबकि इसमें ही डाक टिकट चिपकाने का खर्च भी होता था।

जमशेदजी ने पायलट के तौर पर थी सेवा

औपचारिक तौर पर देखें तो टाटा एयरलाइंस का हपहला व्यावसायिक वर्ष 1933 रहा था। जब पहली बार एयरलाइंस ने साल भर में 155 पैसेंजर और करीब 11 टन डाक ढोए। इस अंतराल में टाटा एयरलाइंस के जहाजों ने कुल 160, 000 मील तक की उड़ान भरी थी। बता दें कि ब्रिटिश एयर फोर्स के पायलट होमी भरूचा टाटा एयरलाइंस के पहले पायलट थे,जबकि जमशेदजी टाटा दूसरे और विंसेंट तीसरे पायलट थे।

टाटा एयरलाइंस ऐसे बना एयर इंडिया

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टाटा एयरलाइंस की सेवाएं भी प्रभावित हुई थी। युद्ध समाप्ति के बाद जब विमान सेवाएं बहाल होने लगी तब 29 जुलाई, 1946 को टाटा एयरलाइंस पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई। अब उसका नाम टाटा एयरलाइंस से बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड कर दिया गया था। 1947 में आजादी बाद भारत सरकार ने एयर इंडिया में 49 फीसदी हिस्सेदारी ले ली। ज्ञात हो कि टाटा एयरलाइंस की स्थापना 'टाटा संस' की दो लाख की लागत से हुई थी।

टाटा एयरलाइंस बनी दुनिया की अग्रणी सेवा प्रदाता

अब बात नवंबर, 1952 की। इसी साल देश के सबसे बड़े बिजनेसमैन माने जाने वाले जमशेदजी टाटा की मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से हुई। कुछ समय बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने जमशेदजी को पत्र लिखकर एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के प्रति अपना रुख जाहिर किया था। यहां यह बताना जरूरी है कि तब तक टाटा एयरलाइंस दुनिया की अग्रणी अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवाओं में गिनी जाने लगी थी। साथ ही इसकी 'इंडियन एयरलाइंस' के नाम से घरेलू सेवाएं भी बहाल हो चुकी थी।

टाटा को हो गया था एहसास

तब नेहरू ने पत्र में जमशेदजी टाटा को लिखा था, कि लंच के दौरान उन्हें परेशान देखकर वो अपनी बात नहीं रख पाए थे। क्योंकि, इससे पहले टाटा ने उन्हें बताया था कि केंद्र सरकार ने किस प्रकार उनकी विमानन कंपनियों के साथ गलत व्यवहार किया। क्योंकि तब तक जमशेदजी को यह लगने लगा था कि सरकार जानबूझकर एक नीति के तहत एयर इंडिया को सस्ते में खरीदकर उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है।

नेहरू की सफाई

हालांकि नेहरू ने जमशेदजी के आरोपों को पत्र में नकारा था। उन्होंने बताया कि कांग्रेस पार्टी अपने 20 वर्ष पहले वाली नीति को ही अपनाए हुए है। जिसमें हर तरह की परिवहन सेवाओं को सरकार के हाथ में रहने देने की बात कही गई थी। नेहरू ने कहा था कि वित्तीय दिक्कतों के कारण सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ रही थी। साल 1952 में जगजीवन राम संचार मंत्री बने। इसके बाद एयरलाइंस का मुद्दा कैबिनेट के समक्ष रखा गया, जिसमें कहा गया कि सभी परिवहन सेवाओं को एक ही सरकारी छत के नीचे रखा जाए।

कोई बातचीत नहीं, सिर्फ एक फोन आया

नेहरू ने आगे लिखा था कि भारत सरकार देश में बहाल विमान सेवाओं को आगे बढ़ाना चाहती है, जबकि जमशेदजी के अंदर सरकार को लेकर भ्रम था। तब टाटा का मानना था कि विमान सेवा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण होना, अच्छा फैसला नहीं है। बाद में जमशेदजी ने इस संदर्भ में कहा था कि नेहरू सरकार ने अपना मन पहले ही बना लिया था। लेकिन अधिग्रहण से पहले उनसे विचार-विमर्श करना भी उचित नहीं समझा। टाटा ने बताया था कि उन्हें जगजीवन राम ने फोन कर सिर्फ सरकार के फैसले की सूचना दी। जमशेदजी का कहना था कि उन्होंने इसके लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार किया हुआ था लेकिन सब धरा रह गया।

टाटा की मुख्य चिंता कर्मचारियों और निवेशकों की

तत्कालीन सरकार के मंत्री जगजीवन राम ने जमशेदजी टाटा से सिर्फ मुआवजे के बारे में उनसे राय पूछी थी। तब टाटा ने कहा था कि उन्हें मुख्य रूप से चिंता एयरलाइंस के कर्मचारियों और निवेशकों की है। उन लोगों ने वर्षों उनके साथ मेहनत कर एक बड़ा एयर ट्रांसपोर्ट सिस्टम तैयार किया था। बावजूद इसके नेहरू सरकार ने उनकी एक भी बात नहीं मानी। साल 1953 में सभी विमानन कंपनियों का विलय कर 'एयर इंडिया' और 'एयर इंडिया इंटरनेशनल' में तब्दील कर दिया गया। इसी को बाद में 'एयर इंडिया' नाम से जाना जाने लगा।

एयर इंडिया का घाटा 70,000 करोड़ के पार

अब आते हैं वर्तमान समय में। फिलहाल एयर इंडिया का घाटा 70,000 करोड़ से भी अधिक है। आज के परिदृश्य में अगर आप जमशेदजी टाटा की बातों पर गौर करें जो उन्होंने 1952 में नेहरू को कही थी, सच साबित होती दिख रही हैं। इससे यह तो पता चलता है कि जमशेदजी कितने दूरदर्शी थे। आज एयर इंडिया निजी एयरलाइंस से प्रतिस्पर्धा और मानवीय तथा वित्तीय संसाधन के कुप्रबंधन से जूझ रहा है। अब अगर एयर इंडिया एक बार फिर टाटा संस के पास लौटता है, तो ये इसकी 'घर-वापसी' होगी।

गंदे टॉयलेट खुद साफ कर देते थे टाटा

जमशेदजी टाटा एक बिजनेसमैन के साथ-साथ पायलट भी थे। उनका जोर विमान के क्रू मेंबर के प्रशिक्षण और अनुशासन पर रहता था। वह खुद विमान से यात्रा करते और यात्रियों को दी जाने वाली सेवाओं के विवरण नोट किया करते थे। यहां तक की वाइन की ग्लास और कंपनी से लेकर एयर होस्टेस की हेयरस्टाइल तक, सब पर जमशेदजी की नजर रहती थी। यदि विमान का शौचालय आदि गंदा हो, तो वो खुद ही उसे साफ करने लगते थे। उनकी नजर कम्पनी की होर्डिंग से लेकर एयर होस्टेस की साड़ी तक और काउंटर से लेकर विज्ञापन तक पर रहती थी।

बिना एक पैसा लिए 25 साल सेवा दी

साल 1978 में एयर इंडिया का एक विमान बड़े हादसे का शिकार हो गया। उसमें सवार सभी 213 यात्रियों की मौत हो गई। इसके बाद सरकार ने टाटा को उनके पद से हटा दिया। 25 वर्षों तक उन्होंने बिना एक पैसा लिए देश की सेवा की थी। कहा जाता है कि उनके हटाए जाने के बाद कई कर्मचारियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। विरोध प्रदर्शनों का दौर चला। तब देश के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे। उनके इस फैसले के लिए काफी आलोचना हुई थी। प्रबंधन से हटाए जाने पर तब जमशेदजी ने कहा था, 'ऐसा महसूस हो रहा है जैसे किसी से उसके प्यारे बच्चे को छीन लिया गया हो।' कुछ ऐसी रही रही एयर इंडिया की कहानी। तब से अब तक। आज जब एक बार फिर इस विमानन सेवा की टाटा संस में वापसी हुई है, तो जमशेदजी के समर्पण को जरूर याद करना चाहिए। यह वैसा ही समय है जैसे एक गुमशुदा बच्चे को उसके पिता की बाहों में फिर से लौट कर आना।



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