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Arunachal Pradesh-China: अरुणाचल में चीन का नया दांव

Arunachal Pradesh-China: पूर्वोत्तर में तिब्बत (Tibet) से लगी सीमा पर सब कुछ सामान्य नहीं है। बताया जाता है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के युवाओं को अपनी सेना में भर्ती करने की कोशिश कर रहा है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Chitra Singh
Published on: 14 Aug 2021 7:28 AM GMT
Arunachal Pradesh-China
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अरुणाचल प्रदेश-चीन (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Arunachal Pradesh-China: पूर्वोत्तर में तिब्बत (Tibet) से लगी सीमा पर सब कुछ सामान्य नहीं है। चीन (China) चुपचाप इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाता जा रहा है। बताया जाता है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के युवाओं को अपनी सेना में भर्ती (China Recruits Youth of Arunachal Pradesh) करने की कोशिश कर रहा है।

अरुणाचल की 1126 किमी लंबी सीमा तिब्बत से सटी है। चीन अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है और इस राज्य को भारत के हिस्से के तौर पर उसने कभी मान्यता नहीं दी है। बीते साल लद्दाख की गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से ही चीन ने पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर अपनी गतिविधियां असामान्य रूप से बढ़ा दी हैं। बांध, हाइवे और रेलवे लाइन का निर्माण हो या फिर भारतीय सीमा के भीतर से पांच युवकों के अपहरण का मामला, चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अब पता चला है कि चीन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय युवाओं की भर्ती पीएलए में करने का प्रयास कर रहा है।

विधायक ने किया खुलासा

अरुणांचल प्रदेश में कांग्रेस के पूर्व सांसद और फिलहाल पासीघाट के विधायक निनोंग ईरिंग (Ninong Ering) ने दावा किया है कि चीन सरकार अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People's Liberation Army) में अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के युवकों की भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है। साथ ही राज्य से सटे तिब्बत के इलाकों से भी भर्तियां की जा रही हैं।

सोशल मीडिया पर अपने एक वीडियो संदेश में कांग्रेस विधायक ने कहा है - अब तक मिली सूचना के मुताबिक पीएलए तिब्बत के अलावा अरुणाचल प्रदेश के युवकों को भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है। यह बेहद गंभीर मामला है। ईरिंग ने केंद्रीय गृह और रक्षा मंत्रालय से इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जरूरी कदम उठाने की अपील की है। ईरिंग के अनुसार, तिब्बत की सीमा से सटे इलाकों में रहने वाली निशी, आदि, मिशिमी और ईदू जनजातियों और चीन की लोबा जनजाति के बीच काफी समानताएं हैं। उनकी बोली, रहन-सहन और पहनावा करीब एक जैसा है। चीन इसी का फायदा उठा रहा है।

ईरिंग की दलील है कि चीन जिस तरह सीमा से सटे बीसा, गोहलिंग और अनिनी इलाके में मकानों और सड़कों का निर्माण कर रहा है उससे अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के प्रभावित होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। ईरिंग ने इस मुद्दे पर विदेश मंत्रालय को पत्र लिखने की भी बात कही है। फिलहाल सरकार ने ईरिंग के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है। हाँ, इतना जरूर है कि अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू (Pema Khandu) ने ईरिंग के पत्र के बाद केंद्र से सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का अनुरोध किया है ताकि बेरोजगारी और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके।

बड़े पैमाने पर निर्माण

चीन पिछले साल से ही अरुणाचल से लगे सीमावर्ती इलाके में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है। उसने सीमा से 20 किमी भीतर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा (Lhasa) से एक बुलेट ट्रेन भी शुरू हो गई है। एक एक्सप्रेस वे का निर्माण कार्य भी पूरा हो चुका है। एक साल के दौरान चीनी सैनिकों के सीमा पार करने की कई घटनाओं की सूचना मिली है। लेकिन वह इलाका इतना दुर्गम है कि हर जगह सेना की तैनाती संभव नहीं है और सूचनाएं भी देरी से राजधानी तक पहुंचती हैं।


हाल ही में भारत ने राज्य के पूर्वी जिले अंजाव में सेना की अतिरिक्त बटालियन भेजी है। वर्ष 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश ही संघर्ष का केंद्र था। एक्सपर्ट्स की चेतावनी है कि अरुणाचल अगला गलवान साबित हो सकता है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने हाल में कहा था कि भारत से सटी पूरी सीमा पर हमारा रवैया एकदम स्पष्ट है। चीनी इलाके में अवैध रूप से बसाए गए अरुणाचल प्रदेश को हमने कभी मान्यता नहीं दी है।

बीते साल चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के काफी भीतर घुसकर अरुणाचल के पांच युवकों का अपहरण कर लिया था। कांग्रेस नेता ईरिंग ने ही सबसे पहले इस मामले की जानकारी दी थी। उसके बाद चीन ने पहले तो इससे इंकार किया लेकिन बाद में दबाव बढ़ने पर उसने 12 दिन बाद उन युवकों को छोड़ दिया था। स्थानीय लोगों का दावा है कि अपहरण की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। कुछ महीने पहले इसी सीमा पर चीन की ओर से कई गांव बसाने की खबरें भी सामने आई थीं। स्थानीय लोगों का दावा है कि वह गांव भारतीय सीमा के भीतर बसाए गए हैं।

सीमा सही तरह से चिन्हित नहीं

दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में भारत जहां मैकमोहन लाइन को सीमा मानता है वहीं चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा को सीमा बताता है। भाजपा सांसद गाओ कहते हैं कि राज्य से सटी सीमा को सही तरीके से चिन्हित करना ही इस समस्या का एकमात्र और स्थायी समाधान है। गाओ की दलील है कि यह समस्या केंद्र की पूर्व कांग्रेस सरकार की देन है। चीन सीमावर्ती इलाकों में अस्सी के दशक से ही सड़कें बना रहा है। राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल में ही चीन ने तवांग में सुमदोरोंग चू घाटी पर कब्जा किया था। सरकार ने सीमा तक सड़क बनाने पर कोई ध्यान नहीं दिया। नतीजतन तीन-चार किमी का इलाका बफर जोन बन गया जिस पर बाद में चीन ने कब्जा कर लिया।

अरुणाचल प्रदेश-चीन सीमा (फोटो- सोशल मीडिया)

सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि गलवान गाटी के बाद से ही चीन ने पूर्वी और पूर्वोत्तर सीमा पर ध्यान केंद्रित किया है। भारतीय सीमा में चीनी सीमा की बढ़ती घुसपैठ और सीमा से सटे इलाके में आधारभूत परियोजनाओं के काम में तेजी इसका सबूत है। इसके अलावा भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए वह भूटान पर भी दबाव डालता रहा है।

तिब्बत में युवाओं की सेना में भर्ती

चीन ने एक स्पेशल तिब्बती सैन्य यूनिट बनाने का काम शुरू किया है। इस यूनिट में तिब्बती युवकों की भर्ती की जा रही है जिनको सीमाई इलाकों में तैनात किया जाएगा। इसके अलावा तिब्बत के बेरोजगार युवकों को सेना में 'वालंटियर' के तौर पर भी भर्ती किया जा रहा है। इन वालंटियर्स को तिब्बत से लगी सीमा पर तैनात किया जाएगा। बताया जाता है चीन ने तिब्बती लोगों को आदेश दिया है कि प्रत्येक घर से एक युवक को सेना में वालंटियर बनाना अनिवार्य है। ख़ुफ़िया जानकारी के अनुसार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और चीनी पुलिस ने सिक्किम से लगे यादोंग काउंटी में युवकों की भर्ती की है जिनको ट्रेनिंग के लिए भेजा गया है। बताया जाता है कि इन युवकों को चेक पोस्ट्स पर तैनात किया जायेगा। असली इरादा सीमा पार भारतीय इलाकों पर नजर रखना उअर इंटेलिजेंस इनपुट एकत्र करना है।

Chitra Singh

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