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प्रमुख राज्यों के चुनाव भाजपा के लिए क्या संदेश, कहां हुई गलती

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। जिसमें भाजपा को सिर्फ दो राज्यों असम व पांडुचेरी में आशातीत सफलता मिली है

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shweta
Published on: 3 May 2021 2:58 PM IST
विधानसभा चुनाव
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विधासभा चुनाव  (फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

नई दिल्लीः पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। जिसमें भाजपा को सिर्फ दो राज्यों असम व पांडुचेरी में आशातीत सफलता मिली है। लेकिन तीन राज्यों में उसे मुंह की खानी पड़ी है जिसमें केरल में तो उसका पूरी तरह सफाया हो गया है और तमिलनाडु में संतोषजनक बात यह है कि उसका खाता खुल गया जबकि पश्चिम बंगाल में सिर्फ सीटों की बढ़ोतरी से संतोष करना पड़ा।

वास्तव में देखा जाए तो इस बार हो तो पांच राज्यों के चुनाव रहे थे लेकिन कसौटी पर पश्चिम बंगाल था जिस पर पूरे देश की निगाहें थीं। भाजपा के रणनीतिकार और चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह दो सौ सीटों पर जीत बहुत आसान बताते नहीं थक रहे थे। लेकिन पश्चिम बंगाल में भाजपा के मुख्य विपक्षी पार्टी बनने से उन्हें संतोष करना पड़ा।

आखिर क्या वजह रही जो भाजपा पश्चिम बंगाल में पिछड़ गई। इसके पीछे एक बड़ा कारण तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के खिलाफ मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा न होना बड़ी वजह बताया जा रहा है। अगर भाजपा ने किसी स्थानीय नेता को या बंगाल के किसी सर्वमान्य चेहरे को ममता के खिलाफ खड़ा किया होता तो नतीजे कुछ बदल सकते थे ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है। भाजपा के पिछड़ने के पीछे प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ी भी एक बड़ा मुद्दा बनी। भाजपा ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस के जिन बागियों और दागियों पर दांव लगाया उसने पार्टी के कैडर को नाराज कर दिया जो कि लंबे समय से पश्चिम बंगाल में पार्टी की नींव मजबूत करने में लगे थे और इस चुनाव में पार्टी का टिकट मिलने का इंतजार कर रहे थे।

विफलता के पीछे बड़ा कारण

इसके अलावा इस विफलता के पीछे एक बड़ा कारण भाजपा की हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति रही जिसने कट्टर हिन्दू बनाम उदारवादी हिन्दुओं और मुस्लिम ताकतों को एकजुट होने का मौका दे दिया। भाजपा की रणनीति को विफल करने में कांग्रेस और वामपंथियों ने अहम भूमिका निभाई जिन्होंने अपना नुकसान करके कथित धर्मनिरपेक्ष मतों का बंटवारा नहीं होने दिया।

भाजपा को पीछे करने में उसके कुछ बयानवीर नेताओं की बयानबाजी ने भी लोगों को नाराज करने में अहम भूमिका निभायी जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत आक्षेपों और अपमानित करने वाले जुमलों का सहारा लिया।इस सबके ऊपर जो बात रही वह थी क्षेत्रीय अस्मिता की लड़ाई ममता बनर्जी बंगाल की बेटी बनकर लड़ी और भाजपा को बाहरी बताने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी जबकि भाजपा के पास कोई बंगाली चेहरा नहीं था। इन सबके बीच मतदाताओं के मन में कहीं न कहीं ममता के सुशासन की स्वीकारोक्ति का भी भाव था जिसके चलते पिछली बार के मुकाबले टीएमसी की सीटें बढ़ीं। ममता का मंदिर जाना और चंडी पाठ भी कहीं न कहीं हिन्दू वोटों में सेंध लगाने का काम कर गया।

अगर देखा जाए तो केरल में भाजपा का सफाया होने में भी कहीं न कहीं उसकी रणनीति जिम्मेदार रही। वहां पर भी कांग्रेस ने अपनी रणनीति वामपंथी शासन के खिलाफ मजबूत करने के बजाय भाजपा को रोकने पर केंद्रित रखी जिसमें वह कामयाब रही। तमिलनाडु में ऐसा कुछ नहीं था द्रमुक और अन्नाद्रमुक की लड़ाई में भाजपा को इस राज्य में पैर जमाने का मौका मिल गया। और इसे एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है।

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Shweta

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