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Baby Rani Maurya: संवैधानिक पद पर रहने के बाद हमेशा से लौटे हैं नेता सक्रिय राजनीति में

Baby Rani Maurya: संवैधानिक पद पर रहने के बाद लौटकर सक्रिय राजनीति की राह पकड़ने की तो कई नजीरें है। पर विधानसभा की सियासत करने व राज्य में मंत्री बने हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Deepak Kumar
Published on: 25 March 2022 7:16 PM IST
baby rani maurya
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बेबी रानी मौर्य। (Social Media)

Baby Rani Maurya: संवैधानिक पद पर रहने के बाद लौटकर सक्रिय राजनीति की राह पकड़ने की तो कई नजीरें है। पर विधानसभा की सियासत करने व राज्य में मंत्री बन जाने के उदाहरण बिरले ही मिलते हैं। बेबी रानी मौर्य जाटव (baby rani maurya) जब योगी कबीना में मंत्री पद की शपथ ले रहीं थीं तब वह इसी तरह के इतिहास की पुनरावृत्ति कर रही थीं। बेबी रानी (baby rani maurya) आगरा की महापौर रही हैं। उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफ़ा देने के बाद उन्हें पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उतारा। वह विजयी रहीं। आज यहां उन्होंने कबीना मंत्री की शपथ ली।

क्या एक संवैधानिक पद पर जाने के बाद किसी राज्य की राजनीति में लौटना उस पद और उस स्टेटस के खिलाफ माना जायेगा? यह एक बड़ा सवाल है जिसके बारे में अलग अलग मत हो सकते हैं। सच्चाई यह है कि कई लोग गवर्नर जैसे संवैधानिक पद पर रहने के बाद राज्य स्तरीय राजनीति में लौट आये हैं। यूपी में बेबी रानी मौर्य (baby rani maurya) सबसे ताजा उदाहरण है जिन्होंने उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर विधायक का चुनाव लड़ा। बेबी रानी मौर्य (baby rani maurya) ने एक संविधानिक पद पर रहने के बाद राज्य की राजनीति में वापसी की है लेकिन ऐसा करने वाली वह अकेली नहीं हैं। उनके पहले भी कई नेता ऐसा कर चुके हैं।

सबसे बड़ा उदाहरण सी राजगोपालाचारी (C Rajagopalachari) का है जो भारत के गवर्नर जनरल रहने के बाद मद्रास स्टेट के मुख्यमंत्री बने। गवर्नर जनरल भारत का सबसे ऊंचा पद हुआ करता था। मेघालय के पूर्व राज्यपाल प बंगाल की राजनीति में लौटे। उन्होंने भाजपा जॉइन की है और अब राजनीति में सक्रिय हो गए हैं। 2019 में महाराष्ट्र के राज्यपाल की पारी खेलने के बाद सी. विद्यासागर राव (C. Vidyasagar Rao) तेलंगाना राज्य की राजनीति में लौट आये और भाजपा की सदस्यता ले ली।

राम नाईक (Ram Naik) यूपी में राज्यपाल रहने के बाद महाराष्ट्र लौट गए और वहां भाजपा जॉइन कर ली। केशरीनाथ त्रिपाठी (Kesharinath Tripathi) बंगाल के राज्यपाल का अपना टर्म पूरा करने के बाद यूपी लौट आये और भाजपा की सदस्यता ले ली। राजस्थान में गवर्नर रहने के बाद कल्याण सिंह भी यूपी भाजपा में लौट आये।

कांग्रेस शासन के दौरान भी ऐसा हुआ

राज्यपालों को अराजनीतिक माना जाता था लेकिन जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के समय से ही राज्यपाल राजनीतिक वर्ग से आते थे-खासकर कांग्रेस पार्टी (Congress Party) से। हमारे लोकतंत्र के शुरुआती दिनों में, कुछ राज्यपाल कार्यालय के अंदर और बाहर तटस्थ रहे। लेकिन वे दिन जा चुके हैं। इंदिरा गांधी (Indra Gandhi) के प्रधानमंत्रित्व काल में राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों ही उनकी कठपुतली थे। कांग्रेस ने जो मिसाल कायम की है उनमें राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग सबसे आम था। बहरहाल, केंद्र में कांग्रेस शासन के दौरान अर्जुन सिंह पंजाब के गवर्नर रहे फिर बाद में वह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। इसी तरह हरचरण सिंह बराड़ उड़ीसा और हरियाणा के गवर्नर रहे थे और बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए। डॉ एम चेन्ना रेड्डी (Dr M Chenna Reddy) उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे। कार्यकाल पूरा होने पर कांग्रेस में लौट आये और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।

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