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Bahuda Yatra: भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त कौन, क्यों और किस मुस्लिम की मजार पर रुकती है रथ यात्रा

Bahuda Yatra: हर साल रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का रथ एक मुस्लिम भक्त की मजार पर कुछ देर के लिए जरूर रोका जाता है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Shivani
Published on: 6 July 2021 11:43 AM GMT (Updated on: 6 July 2021 11:46 AM GMT)
Bahuda Yatra
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Bahuda Yatra: उड़ीसा के पुरी (Jagannath Puri Rath Yatra 2021) में हर साल आयोजित होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) देश-विदेश के भक्तों के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र होती है। भक्तों को साल भर इस रथयात्रा का इंतजार रहता है। हालांकि पिछले साल कोरोना महामारी के कारण भक्त इस प्रसिद्ध रथयात्रा में हिस्सा नहीं ले सके थे। इस साल भी कोरोना महामारी के कारण रथयात्रा अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं निकल पाएगी।

वैसे पुरी की रथयात्रा के साथ एक हैरान करने वाली सच्चाई भी जुड़ी हुई है। हर साल रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का रथ एक मुस्लिम भक्त की मजार (Muslim Bhakt Ki Mazar) पर कुछ देर के लिए जरूर रोका जाता है। यह दृश्य देखने वाले भी हैरान हो जाते हैं कि आखिर एक मुस्लिम की मजार पर भगवान का रथ (
Mazar Par Rath Yatra Kyu Rukti Hai
) क्यों रोका जाता है।

पुरी में किस मुस्लिम भक्त की मजार है (Puri Me Kis Muslim Bhakt Ki Mazar hai)

जानकारों के मुताबिक, यह मजार मुगल सैनिक सालबेग (Muslim Soldier Salbeg) की है जो भगवान जगन्नाथ का अनन्य भक्त था। मुस्लिम होने के कारण सालबेग कभी भगवान जगन्नाथ के दर्शन तो नहीं कर पाया मगर मरने से पहले उसने कहा था कि यदि मेरी भक्ति में सच्चाई है तो प्रभु मेरी मजार पर जरूर आएंगे। बाद में सालबेग की यह बात पूरी तरह सच साबित हुई।

भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त कौन है (Bhagwan Jagannath ka Sabse Bada Bhakt Kaun Hai)

सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत के दौर के मुगल सैनिक सालबेग को भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग के पिता मुस्लिम थे जबकि मां ब्राह्मण थीं। पिता के मुगल सेना में सूबेदार होने के कारण सालबेग भी युवा होने पर मुगल सेना में भर्ती हो गया था। सालबेग मुस्लिम धर्म का कट्टर अनुयायी था मगर उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उसे भगवान जगन्नाथ का अनन्य भक्त बना दिया।

एक युद्ध के दौरान सालबेग बुरी तरह घायल हो गया था। अपने घाव के इलाज के लिए सालबेग ने कई हकीमो और वैद्यों के यहां चक्कर लगाए मगर उसकी चोट ठीक नहीं हो सकी। घाव गंभीर हो जाने के कारण सालबेग को मुगल सेना से भी निकाल दिया गया। इस कारण सालबेग मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान रहने लगा।

भगवान जगन्नाथ का चमत्कार (Bhagwan Jagannath Ka Chamatkar)

इलाज के बावजूद फायदा न होने पर सालबेग की मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और सालबेग से भी ऐसा ही करने को कहा। मां के कहने पर सालबेग ने भी भगवान जगन्नाथ की पूजा की। सालबेग भगवान जगन्नाथ की भक्ति में इतना डूब गया कि वह दिन-रात पूजा-अर्चना में ही जुटा रहता था। भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना के कारण सालबेग को काफी मानसिक शांति मिली और उसके जीवन में नई आशा का संचार हुआ।

सालबेग की अनन्य भक्ति और पूजा-अर्चना से भगवान जगन्नाथ प्रसन्न हुए और उन्हें सपने में दर्शन दिया। कहा जाता है कि सपने में ही भगवान जगन्नाथ उसे घाव पर लगाने के लिए भभूत दिया जिसे सालबेग ने सपने में ही अपने घाव पर लगा लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सालबेग अपने जख्मों से मुक्ति मिल गई और वह पूरी तरह ठीक हो गया।

मुस्लिम होने के कारण दर्शन की अनुमति नहीं

बाद में सालबेग ने भगवान जगन्नाथ के मंदिर जाकर दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन मुस्लिम होने के कारण उसे प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद सालबेग ने मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की पूजा की और भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़िया भाषा में लिखे गए सालबेग के गीत काफी प्रसिद्ध हुए।

मंदिर में प्रवेश की अनुमति न मिलने पर सालबेग का कहना था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ उनकी मजार पर खुद दर्शन देने के लिए जरूर आएंगे। बाद में जब सालबेग की मौत हुई तो उसे जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच दफना दिया गया।

इस तरह हुई मजार पर रथ को रोकने की शुरुआत

कहा जाता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद रथयात्रा निकाले जाने पर रथ के पहिए मजार के पास जाकर रुक गए। रथ को आगे बढ़ाने की काफी कोशिश की गई मगर हर कोशिश नाकाम साबित हुई। रथ को एक पग भी आगे नहीं बढ़ाया जा सका। रथयात्रा में शामिल सभी लोग इसे लेकर काफी परेशान हो गए।

तब मौके पर मौजूद एक जानकार व्यक्ति ने सालबेग के बारे में जानकारी दी और सालबेग का का जयकारा लगवाने का अनुरोध किया। सालबेग का जयकारा लगाते ही रथ अपने आप ही आगे बढ़ निकला।
जानकारों का कहना है कि तभी से सालबेग की मजार पर रथ को कुछ देर के लिए जरूर रोका जाता है। एक मुस्लिम भक्त की मजार पर रख को रोके जाने की यह घटना आज भी लोगों को हैरान कर देती है।
Shivani

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