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बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा #BakraLivesMatter
ईद पर बकरे की कुर्बानी को लेकर लोगों ने सोशल मीडिया पर एक बार फिर मुहिम चलाई है। ट्विटर पर #BakraLivesMatter जमकर ट्रेंड कर रहा है।
आज देशभर में ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। ईद-उल-अजहा जिसे बकरीद भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म को मनने वालों का यह दूसरा बड़ा त्योहार है। बकरीद का त्योहार रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ मस्जिदों में एकत्रित होकर नमाज अदा कर खुदा का शुक्रिया करते हैं। वहीं, ईद-उल- अजहा को कुर्बानी के तौर पर मनाया जाता है।
वैसे तो बकरीद पर मुस्लिम समाज द्वारा बकरे की कुर्बानी ही दी जाती है। लेकिन बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी के मामले में अब मुस्लिम समाज के लोगों में भी विचार मंथन होने लगा है। वहीं कई जगहों पर इसकी शुरूआत भी कर दी गई है। अब ईद के मौके पर ज्यादातर मुस्लिम समुदाय बकरे की कुर्बानी देने से बच रहे हैं और केक काटकर त्योहार मना रहे हैं। कई जगहों पर ये भी देखा गया है कि बकरा न काटकर बकरे की आकृति का बना हुआ केक काटकर लोग इस त्योहार को मना रहे हैं।
हालांकि, ईद पर कई स्तरों पर मांग हुई कि 'मिट्टी के बकरे' की क़ुर्बानी दी जाए। क्योंकि एक ही दिन लाखों बकरों की एकसाथ कुर्बानी पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है। इसके लिए समय समय पर सोशल मीडिया पर भी विरोध होता आया है। लेकिन अभी तक इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई गई है। वहीं एक बार फिर लोगों ने बकरे की कुर्बानी को लेकर सोशल मीडिया पर एक मुहिम चलाई है। ट्विटर पर #BakraLivesMatter जमकर ट्रेंड कर रहा है।
Shefali Vaidya.नाम के यूजर ने ट्वीट कर लिखा है कि Hi@PetaIndia, time for you to trend #BakraLivesMatter. पूरे दिन भर ट्वीटर पर इस हैश टैग के साथ मीम्स तैयार किए गए और ट्रोल भी किया गया।
क्या है बकरीद का इतिहास?
बकरीद पर्व मनाने के पीछे कुछ ऐतिहासिक किंवदंती भी है। इसके अनुसार हजरत इब्राहिम को अल्लाह का बंदा माना जाता हैं, जिनकी इबादत पैगम्बर के तौर पर की जाती है, जिन्हें इस्लाम मानने वाले हर अनुयायी अल्लाह का दर्जा प्राप्त है। एक बार खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए आदेश दिया कि हजरत अपनी सबसे अजीज की कुर्बानी देंगे, तभी वे खुश होंगे। हजरत के लिए सबसे अजीज उनका बेटा हजरत इस्माइल था, जिसकी कुर्बानी के लिए वे तैयार हो गए।
ऐसा कहा जाता है कि जब कुर्बानी का समय आया तो हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दी। लेकिन जब आंखों पर से पट्टी हटाई तो बेटा सुरक्षित था। उसकी जगह इब्राहीम के अजीज बकरे की कुर्बानी अल्लाह ने कुबूल की। हजरत इब्राहिम की इस कुर्बानी से खुश होकर अल्लाह ने बच्चे इस्माइल की जान बक्श दी और उसकी जगह बकरे की कुर्बानी को कुबूल किया गया। तभी से बकरीद को बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है।