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थोक महंगाई 30 साल के टॉप लेवल पर, सब चीजें होती जा रहीं महंगी

Wholesale price : नवम्बर 2020 की तुलना में नवम्बर 2021 में दाम 14 फीसदी बढ़ गए हैं।

Neel Mani Lal
Report Neel Mani LalPublished By Ragini Sinha
Published on: 25 Dec 2021 7:59 PM IST
थोक महंगाई 30 साल के टॉप लेवल पर, सब चीजें होती जा रहीं महंगी
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Wholesale price : महंगाई का आलम ये है कि नवम्बर महीने में होलसेल प्राइस इंडेक्स यानी थोक मूल्य सूचकांक 30 साल के शीर्ष स्तर पर रहा है। कोई ऐसा सेक्टर नहीं है जहां कीमतों में वृद्धि नहीं देखी गई है। पहले जानते हैं कि भारत में महंगाई का पैमाना क्या है। एक पैमाना है थोक मूल्य सूचकांक जो ये नापता है कि थोक लेवल पर दाम किस तरह बदल रहे हैं। थोक लेवल यानी बिजनेस टू बिजनेस दाम क्या हैं। दूसरा पैमाना है कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक। ये बताता है कि रोजमर्रा आधार पर सामानों और सेवाओं के दाम किस तरह बदल रहे हैं।

सूचकांक फिलवक्त 14.2 फीसदी पर है

थोक और उपभोक्ता सूचकांक के बीच संबंध तो है लेकिन ये अलग अलग जानकारी देते हैं। मिसाल के तौर पर थोक सूचकांक फिलवक्त 14.2 फीसदी पर है।यानी इसका मतलब ये है कि नवम्बर 2020 की तुलना में नवम्बर 2021 में दाम 14 फीसदी बढ़ गए हैं। ये बहुत बड़ी वृद्धि मानी जायेगी। ऐसा 1991 के बाद से नहीं देखा गया है। एक तरफ जहां थोक सूचकांक इतनी ज्यादा वृद्धि दिखा रहा है वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अब भी 4.9 फीसदी पर टिका है। वैसे तो ये भी बड़ी बढ़ोतरी है लेकिन थोक की तुलना में काफी कम है। अब सवाल ये उठता है कि ये फर्क क्यों है। वस्तुतः जब भी थोक और उपभोक्ता सूचकांक अलग अलग नम्बर दिखाते हैं तो कहा जाता है कि ऐसा होने की वजह दोनों सूचकांकों के निर्माण में भिन्नता होना है। मिसाल के तौर पर उपभोक्ता सूचकांक का 50 फीसदी हिस्सा खाने पीने की चीजों के दामों से बना हुआ है। लेकिन थोक सूचकांक में खाद्य पदार्थों का हिस्सा सिर्ग 15 फीसदी है। सबसे अधिक वजन विनिर्मित उत्पादों को दिया जाता है जिनमें टेक्सटी5, सीमेंट, केमिकल, मेटल जैसी चीजें हैं जिनका इस्तेमाल व्यवसाय में किया जाता है। थोक सूचकांक में विनिर्मित वस्तुओं का हिस्सा 64 फीसदी से ज्यादा है। यानी थोक सूचकांक को बढ़ाने में रॉ मैटेरियल का हाथ है।
दाम बढ़ने का असर लोगों के बजट पर
इसमें एक थ्योरी ये है कि महामारी से व्यापार बहुत तेजी से उबर रहा है सो ये सेक्टर ज्यादा उत्पादन करने के लिए अधिकाधिक कच्चे माल की डिमांड कर रहा है। ऐसे में ज्यादा डिमांड होने से दाम भी बढ़ते हैं। इसके अलावा सप्लाई चेन में व्यवधान बना हुआ है। इन सबका नतीजा दाम बढ़ने में रिफ्लेक्ट होता है। दाम बढ़ने का असर लोगों के बटुए पर भी पड़ रहा है। एफएमसीजी कंपनियां धीरे धीरे दाम बढ़ा रही हैं। पेंट कंपनियों ने अपने दाम बढ़ा दिए हैं। दवाएँ महंगी हो गई हैं। सर्विस सेक्टर भी इसी राह पर है। टेलिकॉम कंपनियों ने दामों में 25 फीसदी की वृद्धि कर दी है। एंटरटेनमेंट उद्योग ने भी दामों को रिवाइज कर दिया है।
ये सब उपभोक्ता सूचकांक में इसलिए रिफ्लेक्ट नहीं हो रहा क्योंकि इस सूचकांक में खाद्य पदार्थों का बोलबाला है। अगर इस सूचकांक से खाने पीने की चीजें और ईंधन को हटा दें तब पाएंगे कि नवम्बर में ये सूचकांक 5 महीने के उच्चतम लेवल पर है।



Ragini Sinha

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