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Biological-E: भारत की इस कम्पनी पर अमेरिका ने लगाया दांव, जानिए बायोलाॅजिकल ई के बारें में सब कुछ

Biological-E : बायोलाॅजिकल ई का पिछला रिकॉर्ड कुछ ऐसा रहा है कि अमेरिका ने इस पर भरोसा जताते हुए कोरोना की वैक्सीन डेवलप करने का काम इसे सौंपा है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shivani
Published on: 27 July 2021 3:15 PM IST
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Biological E : सीरम इंस्टिट्यूट (Serum Institute) का नाम तो बहुत प्रचलित हो चुका है लेकिन भारत में वैक्सीन (Made In India Vaccine) बनाने वाली कई और कंपनियां (Indian Pharma Compies) हैं जिनके नाम कम ही लोग जानते हैं। ऐसी ही एक कम्पनी है हैदराबाद स्थित बायोलॉजिकल ई (Biological E) जिसकी कोरोना वैक्सीन कॉर्बेवैक्स (corbevax Vaccine) की काफी चर्चा है। ये पहली वैक्सीन है जिसको मंजूरी मिलने से पहले ही भारत सरकार ने 30 करोड़ डोज़ का आर्डर और 1500 करोड़ रुपए भी एडवांस (Vaccine Advance Order) में दे दिए हैं।

दरअसल इस वैक्सीन को बनाने वाली कम्पनी बायोलॉजिकल ई कुछ खास है। बायोलॉजिकल ई कम्पनी का नाम भी बहुत से लोगों ने अभी तक नहीं सुना होगा लेकिन इस कम्पनी का पिछला रिकॉर्ड कुछ ऐसा रहा है कि अमेरिका ने इस पर भरोसा जताते हुए कोरोना की वैक्सीन डेवलप करने का काम इसे सौंपा है और इसके लिए यूएस इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरशन (US International Finance Corporation) के जरिये बड़ी फंडिंग भी की है। अमेरिका से हुए करार के तहत इस कंपनी ने 2022 के अंत तक एक अरब डोज़ बनाने का वादा किया है। करार के तहत ये कम्पनी जॉनसन एंड जॉनसन के कोरोना टीके (Johnson And Johnson Covid Vaccine) में प्रयोग होने वाला मैटेरियल भी बना रही है।

क्या है बायोलॉजिकल ई (Biological-E Kya hai)

हैदराबाद बायोलॉजिकल ई की स्थापना डॉ डी वी के राजू ने 1953 में एक ऑर्गेनिक प्रोडक्ट कंपनी के रूप में की थी जिसने भारत में 'हेपरिन' के उत्पादन का बीड़ा उठाया था। हेपरिन खून का थक्का बनने से रोकता है इसीलिए इसका इस्तेमाल हार्ट अटैक और एनजाइना में किया जाता है।


1962 आते-आते बायोलॉजिकल ई कम्पनी बड़े पैमाने पर वैक्सीन बनाने के क्षेत्र में उतर गई और डीपीटी वैक्सीनों का उत्पादन शुरू कर दिया। आज यह भारत में प्रमुख वैक्सीन निर्माताओं में से एक है और इसका दावा है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी टेटनस टीका उत्पादक कम्पनी है।

बायोलॉजिकल ई कम्पनी डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस, हेपेटाइटिस बी और हीमोफिलस इन्फ्लूएंजा टाइप-बी संक्रमण की वैक्सीन बनाती है। इसके टीकों की आपूर्ति 100 से अधिक देशों को की जाती है और इसने पिछले 10 वर्षों में ही दो अरब से अधिक खुराक की आपूर्ति की है।

तीसरी पीढ़ी चला रही कम्पनी

बायोलॉजिकल ई कम्पनी 2013 से महिमा दतला के प्रबंधन में है। महिमा इस कम्पनी के संस्थापक परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं। महिमा के प्रबंध निदेशक के रूप में कंपनी ने जापानी इंसेफेलाइटिस, डीटीडब्ल्यूपी, खसरा और रूबेला टीकों की डब्ल्यूएचओ की मंजूरी प्राप्त की है। इसके अलावा कम्पनी ने अमेरिका में वाणिज्यिक संचालन भी शुरू किया है।


- 1964 में यूनाइटेड किंगडम की इवान्स मेडिकल्स ने बायोलॉजिकल ई में 40 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली थी। 31 साल बाद 1995 में बायोलॉजिकल ई के प्रमोटरों ने वापस ये हिस्सेदारी खरीद ली।

- साठ और सत्तर के दशक में बायोलॉजिकल ई ने खांसी और पाचन तंत्र की दवाइयां डेवलप कीन्त थीं। इसके बाद वैक्सीन के क्षेत्र में उतरी।

- बायोलॉजिकल ई की खासियत सस्ती वैक्सीन बनाने की है।

- 2008 में बायोलॉजिकल ई ने हेपटाइटिस बी की वैक्सीन पेंटावेलेंट बनाना शुरू किया जो इसकी बड़ी पहचान बनी है।

- बायोलॉजिकल ई विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और गेट्स फाउंडेशन की एक बड़ी सप्लायर है।

कॉर्बेवैक्स वैक्सीन पर रिसर्च अमेरिका में

कॉर्बेवैक्स वैक्सीन के लिए अमेरिका के बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्च शुरू की गई थी। दरअसल ये रिसर्च एक दशक से सारस और मर्स जैसे कोरोनवायरस के अन्य रूपों के लिए प्रोटीन टीकों पर हो रही थी और कोरोना प्रकोप होने पर इसे भी रिसर्च में शामिल कर लिया गया। शोधकर्ताओं ने फरवरी 2020 से कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के लिए जीन सीक्वेंसिंग, क्लोनिंग, इंजीनियरिंग करना शुरू किया। बायलर कॉलेज ने परीक्षण करने के लिए पिछले साल अगस्त में अपनी वैक्सीन का फॉर्मूला और प्रोडक्शन सेल बैंक को बायोलॉजिकल ई के साथ साझा किया। बायोलॉजिकल ई को वैक्सीन बनाने का काम सौंपा गया।



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