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Black Fungus: कोविड मरीजों में ब्लैक फंगस कहां सेः स्टेरॉयड, ऑक्सीजन या कुछ और...
बीएचयू के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विजय नाथ मिश्र भी स्टेरॉयड से ब्लैक फंगस की थ्योरी से इत्तेफाक नहीं रखते हैं।
Black Fungus: कोरोना संकट के बीच देशभर में ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) के बढ़ते मामले अब डराने लगे हैं। कुछ राज्यों ने ब्लैक फंगस को अपने यहां महामारी भी घोषित कर दिया है। ब्लैक फंगस नाम की बीमारी ने लोगों को नए टेंशन में डाल दिया है। स्टेरॉयड के गलत इस्तेमाल से ब्लैक फंगस का इंफेक्शन होने के सवाल पर विशेषज्ञों में मतभेद हैं। कुछ जहां इसे असली वजह बता रहे हैं, तो वहीं कई विशेषज्ञों का कहना है कि स्टेरॉयड काफी समय से तमाम मरीजों को दी जाती रही है लेकिन इस तरह का इंफेक्शन कभी सामने नहीं आया। वहीं कुछ विशेषज्ञ अशुद्ध ऑक्सीजन को इसकी मूल वजह बता रहे हैं, लेकिन सरकार या आईसीएमआर की तरफ से अभी तक इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है जिससे इसे लेकर एक असमंजस का माहौल बनता जा रहा है।
बीएचयू के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विजय नाथ मिश्र भी स्टेरॉयड से ब्लैक फंगस की थ्योरी से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उन्होंने ट्वीट किया है कि न्यूरोलॉजी में, ऐसे सैकड़ों मरीज हर वर्ष होते हैं जिन्हें, विभिन्न रोगों के लिए 4 से 6 महीने तक स्टेरॉड दिया जाता है। कई तो साल भर से भी ज्यादे स्टेरॉड लेते रहते हैं, पर किसी में ब्लैक फंगस नहीं हुआ। आखिर यह कैसे हुआ कि मात्र हफ्तों में, कोविड में, इतने ब्लैक फंगस आ गए!
शुरुआती दौर में कहा जा रहा था कि ब्लैक फंगस की मुख्य वजह स्टेरॉयड का दिया जाना है, लेकिन दुनिया के अन्य मुल्कों में जहां कोरोना फैला वहां ब्लैक फंगस के मामले न मिलना सवाल खड़े करता है। हाल ही में दिल्ली के प्रतिष्ठित अस्पताल एम्स की डॉक्टर प्रोफेसर उमा कुमार ने इस पर सवाल उठाया है और उनका दावा है कि इस बीमारी की कई और वजहें हैं।
''इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन की वजह से बढ़ रहे मामले''
डॉक्टर प्रोफेसर उमा कुमार ने ब्लैक फंगस के प्रसार की वजहों पर चर्चा करते हुए कहा है कि कोरोना मरीजों को मेडिकल ऑक्सीजन की जगह इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन दिए जाने की वजह से इसके मामले बढ़ रहे हैं। प्रो. उमाकुमार का यह भी कहना है कि ह्यूमिडिफायर में स्टेरायल वाटर की जगह गंदे पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा बिना धुले गंदे मास्क का उपयोग किया जा रहा है। साथ ही स्टेरॉयड का गलत इस्तेमाल भी इसकी बड़ी वजह है।
प्रोफेसर उमा कुमार के इस दावे का समर्थन कई विशेषज्ञ और कोविड मरीजों के उपचार से जुड़े डॉक्टर भी कर रहे हैं। अब कह रहे हैं कि ब्लैक फंगस के लिए स्टेरॉयड को दोष दिया जा रहा है, लेकिन वह समस्या का महज हिस्साभर हैं। भारत में कई जगहों पर रोगियों को ऑक्सीजन पहुंचाने का अनहाइजेनिक और गंदा तरीका इसकी मुख्य वजह बताया जा रहा है। जिन सिलेंडरों में लिक्विड ऑक्सीजन का भंडारण किया गया उनका परिवहन किन कंडीशन्स में हुआ और उपयोग कैसे किया गया यह सवाल पूरे मामले को अलग दिशा में ले जा रहे हैं। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ऑक्सीजन भंडारण से जुड़े इन तत्वों को सख्ती से साफ और कीटाणुरहित किया जाना चाहिए।
इन लोगों को अधिक शिकार बना रहा ब्लैक फंगस
दरअसल विशेषज्ञों की इस बात का आधार पोस्ट कोविड उन मरीजों में ब्लैक फंगस का बहुतायत से संक्रमण होना है जिन्हें या तो ऑक्सीजन दी गई थी या वेंटिलेटर पर ऱखा गया था।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि वास्तविक समाधान उत्पादन, भंडारण (सिलेंडर में) और वितरण (स्टेरायल वाटर,ऑक्सीजन की स्वच्छ प्रणाली) के लिए गुणवत्ता नियंत्रण और अनुपालन को लागू किया जाना चाहिए और साथ ही इस समस्या से निपटने के लिए स्टेरॉयड के अंधाधुंध उपयोग को भी रोकना होगा। साथ ही एंटी फंगल दवा के अधिक उपयोग से बचना चाहिए क्योंकि यह बेहद विषैली होती है।
देशभर में ब्लैक फंगस के सात हजार से अधिक मामले आ चुके हैं। जिसमें 219 लोगों की मौत भी हो गई है। केंद्र सरकार ने भी राज्यों से कहा था कि राज्यों को महामारी अधिनियम, 1897 के तहत ब्लैक फंगस को महामारी घोषित करना चाहिए। ब्लैक फंगस से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है महाराष्ट्र और यहां पर 1,500 मामले आ चुके हैं जबकि 90 मौतें भी हो चुकी हैं।
एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ब्लैक फंगस की बड़ी वजह स्टेरॉयड को मानते हैं। उनका कहना है कम लक्षण वाले कोरोना मरीजों को शुरुआती दिनों में स्टेरॉयड देने से बचना चाहिए, क्योंकि शुरूआती दिनों में स्टेरॉयड लेने से शरीर पर गलत प्रभाव पड़ सकते हैं। कम लक्षण वाले कोरोना मरीज अगर स्टेरॉयड लेते हैं तो उनमें ऑक्सीजन की कमी हो सकती है और अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ सकती है।
डॉ गुलेरिया इससे पहले हल्के कोरोना वायरस के मामलों में सीटी स्कैन कराने को लेकर भी चेतावनी दे चुके हैं। उन्होंने कहा, इसके साइड इफेक्ट हैं और इससे नुकसान हो सकते हैं। डॉ गुलेरिया के मुताबिक 'एक सीटी स्कैन 300 से 400 छाती एक्स-रे के समान है। युवा अवस्था में बार-बार सीटी स्कैन कराने से बाद में कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
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